Baramulla News: ड्रग्स पर फतह पाकर लिखी फतेहपोरा पंचायत के विकास की कहानी, रोड-अस्पताल समेत मिल रहीं कई आधुनिक सुविधाएं
ड्रग्स की महामारी पूरे क्षेत्र में तेजी से फैल रही थी जिसे रोकना जरूरी था। ऐसे में हमने युवाओं को इस लड़ाई में भागीदार बनाया। उन्हें इस अभियान की जिम्मेदारी सौंपी। इसके साथ ही नागरिक और पुलिस प्रशसन की भी मदद ली। उन जगहों को चिह्नित किया गया जो ड्रग्स पीड़ितों व कारोबारियों की दृष्टि से हॉट स्पॉट कहे जाते थे।
नवीन नवाज, श्रीनगर। उत्तरी कश्मीर के जिला बारामूला के अंतर्गत फतेहपोरा पंचायत को कभी आकांक्षी और पिछड़ी पंचायत कहा जाता था। अब यह जिले की विकसित पंचायतों में एक है। यहां महिला सशक्तिकरण और नशा मुक्त वातावरण का अनुभव कोई भी कर सकता है।
इसके साथ विकास की दौड़ में भी पंचायत ने बाजी मारी और फतेहपोरा को दीन दयाल उपाध्याय सतत विकास पुरस्कार (डीडीयूपीएसवीपी), राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार 2022-23 मिला है। इसका श्रेय पूर्व सरंपच अमनदीप कौर को जाता है, जिन्होंने स्थानीय लोगों को साथ जोड़ा और फिर उनकी व प्रशासन के बीच की दूरी को कम करते हुए जनभागीदारी से स्थानीय विकास की डगर तैयार की।
ड्रग्स फ्री पंचायत फतेहपोरा
ड्रग्स की महामारी पूरे क्षेत्र में तेजी से फैल रही थी, जिसे रोकना जरूरी था। ऐसे में हमने युवाओं को इस लड़ाई में भागीदार बनाया। उन्हें इस अभियान की जिम्मेदारी सौंपी। इसके साथ ही नागरिक और पुलिस प्रशसन की भी मदद ली। उन जगहों को चिह्नित किया गया जो ड्रग्स पीड़ितों व कारोबारियों की दृष्टि से हॉट स्पॉट कहे जाते थे। मुहिम रंग लाई और आज फतेहपोरा को आप ड्रग्स फ्री पंचायत कह सकते हैं।
सड़क से स्कूल तक दिखी विकास की रूपरेखा
फतेहपोरा पंचायत को स्थानीय सतत विकास लक्ष्यों (एलएसडीजी) में परिकल्पित पंचायत को महिला अनुकूल बनाने के अलावा सेवाओं के वितरण में सुधार और विभिन्न संकेतकों में संतृप्ति प्राप्त करने में प्राप्त सर्वोत्तम प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
आज फतेहपोरा में अस्पताल है। गांव के हर घर में नल से जल है। सड़कें पक्की हैं और गलियों-नालियों का पानी नहीं बहता। अच्छा मिड डे मील मिल रहा है। बच्चों को दिए जाने वाले भोजन की निरंतर जांच होती और वह ग्रामीण खुद समय-समय पर करते हैं। छात्राओ के लिए स्कूल में सैनेटरी पैड वेंडिंग मशीन है। लड़के-लड़कियों के लए स्कूल में अलग-अलग शौचालय हैं।
38 महिला स्वयं सहायता समूह
अमनदीप कौर ने कहा कि आज मैं सरपंच नहीं हूं, लेकिन मुझे खुशी होती है कि स्थानीय लोगों ने मुझसे जो उम्मीदें रखी थीं, मैं उन्हें पूरा करने में किसी हद तक कामयाब रही हूं। सच पूछो तो बारामूला की पूर्व जिला उपायुक्त सहरीश असगर का योगदान कम नहीं है।
उसने कहा कि हमने सिर्फ एक गांव या मोहल्ले को प्राथमिकता नहीं दी, हमने स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता दी। हमने सभी पंचों के अलावा इलाके के गणमान्य नागरिकों और युवाओं से बातचीत की और उसके आधार पर अपनी पंचायत के विकास की रूपरेखा तय की।
इससे यहां मौलिक सुविधाओं का विकास तेज हुआ है, पैसे का यथासंभव सदुपयोग हुआ। हमने स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया। उन्हें बताया कि वह कैसे घर बैठकर अपनी आय बढ़ा सकती हैं। मशरुम की खेती को प्रोत्साहित किया।
महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाए। लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। स्कूलों में ही नहीं पंचायत के अधीनस्थ विभिन्न गांवों में विभिन्न मुद्दों पर जब कोई शिविर लगता तो सभी को अपनी बात कहने का पूरा अवसर दिया जाता, उनके सुझाव लिए जाते। इससे लोगों का विश्वास बढ़ा।
पारदर्शिता से हुआ पीएम आवास योजना के लिए चयन
प्रधानमत्री ग्रामीण आवास योजना के लाभार्थी परिवारों का चयन पूरी पारदर्शिता के साथ किया गया। समाज कल्याण की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को चिन्हित किया गया है और सभी को नियमानुसार संबधित योजनआों का लाभ पहुंचाया गया।
हमारा प्रयास रहा है कि पंचायत में कोई भी नागरिक तर्क के आधार पर पंच-सरपंचों से किसी भी मुद्दे पर बात करे, विकास योजनाओं को गति देने में सहयोग करे। हमने यही बताने का प्रयास किया कि हम सिर्फ प्रतिनिधि हैं, जिन्होंने उन्हें वोट देकर पंचायत का जिम्मा सौंपा है, इसलिए वह किसी भी कोताही पर सवाल कर सकते हैं। इससे लोगों में जहां पंचायत राज व्यवस्था मे यकीन बना, वही उन्होंने वोट की ताकत को भी पहचाना।