Jammu Kashmir News: धर्म, धन और संरक्षण पर चल रहा आतंकवाद का खेल, मजहबी कार्ड का इस्तेमाल कर बढ़ा रहे नेटवर्क
Jammu Kashmir News जम्मू प्रांत में आंतकवादी घटना अचानक बढ़ने के पीछे धर्म धन और संरक्षण का पूरा खेल है। इसका खुलासा पकड़े गए आतंकियों के विभिन्न मददगारों से पूछताछ में हुआ है। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और आतंकी हैंडलरों ने मजहबी कार्ड का पूरी तरह से इस्तेमाल कर आतंकी नेटवर्क बढ़ाया है। हालांकि इस तंत्र के नाश के लिए एजेंसियों ने योजना तैयार कर ली है।
नवीन नवाज, जागरण,जम्मू। जम्मू प्रांत में मरनासन्न आतंकवाद के जिन्न ने यूं ही अचानक सिर नहीं उठाया है, इसके पीछे धर्म, धन और संरक्षण का पूरा खेल चला है। इसकी पुष्टि कठुआ से लेकर पुंछ तक पकड़े गए आतंकियों के विभिन्न मददगारों से पूछताछ में हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय सीमा से लेकर प्रदेश के आंतरिक भागों में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों पर बीते दो दशक से भी ज्यादा समय से राष्ट्रविरोधी तत्वों की सुनियोजित बसावट , पशु तस्करों व मादक पदार्थों के तस्करों का गठजोड़ और मजहबी कार्ड को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और आतंकी हैंडलरों ने पूरी तरह इस्तेमाल किया है।
अब इस पूरे तंत्र के समूल नाश के लिए सभी सुरक्षा एजेंसियों ने खुफिया तंत्र की मदद से एक व्यापक कार्ययोजना तैयार कर उसपर कार्रवाई शुरू कर दी है। इस कार्ययोजना का एक मुख्य घटक जनभागीदारी है।
जम्मू प्रांत में लगभग 80 आतंकी सक्रिय
जम्मू प्रांत के राजौरी-पुंछ, रियासी, कठुआ और डोडा में आतंकियों ने बीते चार वर्ष के दौरान अपनी गतिविधियों का विस्तार किया है। उन्होंने एक बार नहीं कई बार सैन्य दलों सनसनीखेज तरीके से हमला कर, उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया है।
यह इलाका कुछ वर्ष पहले तक आतंकियों से पूरी तरह मुक्त माना जाता था, लेकिन पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियों के ताजा आंकड़ों के आधार पर जम्मू प्रांत में लगभग 80 आतंकी सक्रिय हैं। इनमें से अधिकांश विदेशी हैं। इन आतंकियों के जिला कठुआ और जिला सांबा के अलावा जिला राजौरी-पुंछ में अंतरराष्ट्रीय सीमा व एलओसी के रास्ते ही घुसपैठ की सूचना है।
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उन्होंने पशु तस्करों और मादक पदार्थों के तस्करों को भी आपस में जोड़ा, उन्हें आतंकियों के पुराने गाइडों के साथ जोड़कर एक नया नेटवर्क तैयार किया। इस नेटवर्क की जिम्मेदारी उसने सिर्फ आतंकियों को उनके सेफ हाउस तक पहुंचाने और उनके लिए राशन का बंदोबस्त करने तक रखी है और उसका नुकसान हमें जम्मू प्रांत में आतंकी हमलों मे बढ़ोत्तरी के रूप में उठाना पड़ रहा है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।स्थानीय नेटवर्क की मदद आंतकवादी कर रहे हमले
राजौरी-पुंछ से लेकर डोडा तक हुए विभिन्न आतंकी हमलों की जांच से जुड़े सूत्रों ने बताया कि यह सभी हमले सीमा पार से दाखिल हुए आतंकियों ने किए हैं और उन्होंने हमले के लिए जगह का चुनाव स्थानीय नेटवर्क की मदद से ही किया है।उन्होंने बताया कि जांच में एक बात और सामने आई है, इन क्षेत्रों मे आतंकियों के जो नए मददगार सामने आए हैं, वह धर्म, धन और समर्थन के आधार पर ही उनकी मदद कर रहे हैं। आतंकियों ने घुसपैठ के लिए जिन रास्तों का इस्तेमाल किया है, वहां बीते दो दशकों से भी ज्यादा समय के दौरान अवैध बस्तियां बसी हैं और इनमें रहने वालों में से कईयों का प्रत्यक्ष परोक्ष संबंध पशु और सीमा पार से अवैध नशीले पदार्थ की तस्करी से है। यह सभी राष्ट्रीय राजमार्ग के आस-पास, उन नदी नालों और पहाड़ों पर कथित तौर पर बसाए गए हैं जिन्हें सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।रियासी हमले में पकड़ा गया आतंकी देता था मजहब की तालीम
उन्होंने बताया कि रियासी हमले में पकड़ा गया हाकिम दीन अपने इलाके में मजहब की तालीम भी देता रहा है। उसका दूसरा साथी पशु तस्करी में भी लिप्त रहा है। इसी तरह कठुआ के सैडा में जैश के दो आतंकियों के मारे जाने के बाद पुलिस ने उनके दो गाइडों आशिक अली और मसकीन अली को पकड़ा था। यह दोनों कुख्यात पशु तस्कर हैं और हीरानगर सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा के साथ सटी एक बस्ती में ही रहते हैं। उन्होंने बताया कि डोडा और बदनौटा कठुआ में हाल ही में हुए आतंकी हमलों की जांच के दौरान आतंकियों के जिन 9 मददगारों को पकड़ा गया है, वह भी गुज्जर-बक्करवाल समुदाय से संबधित हैं और आपस में रिश्तेदार हैं। यह सभी लोग उन इलाकों में बसे हैं जो आतंकियों के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा से घुसपैठ करने के बाद कश्मीर तक पहुंचने के रास्ते पर हैं।इनमें से भी दो मजहबी गतिविधियों के प्रचार में शामिल हैं और कुछ पशु तस्करी में भी शामिल रहे हैं। उन्होंने बताया कि पुंछ में भी आतंकी हमलों की जांच के दौरान पकड़े गए आतंकी मददगारों एलओसी के साथ सटे इलाकों के निकले हैं। पूछताछ में पता चला है कि इन्होंने धन और धर्म के अलावा सीमा पार से मिलने वाले समर्थन के आधार पर ही यह काम किया है। यह भी पढ़ें: Jammu Kashmir में 15 अगस्त की तैयारियां जोरो पर, जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग की बढ़ाई गई सुरक्षा; चप्पे-चप्पे पर तैनात जवानजम्मू-कश्मीर से लगभग एक हजार आंतकी लापता
इसके अलावा रियासी, डोडा, बसंतगढ़ ,माहौर और राजौरी-पुंछ के लगभग एक हजार आतंकी लापता हैं और उनमें से अधिकांश के पाकिस्तान या फिर गुलाम जम्मू कश्मीर में छिपे होने की सूचना है। यह वहां से अपने स्थानीय सपंर्क सूत्रों और रिश्तेदारों के साथ संपर्क साधते हैं। उन्हें विभिन्न माध्यमों से पैसा पहुंचाते हैं। इसके अलावा यह सुरक्षाबलों के साथ विभिन्न मुठभेड़ों में मारे गए आतंकियों या फिर जेलों में बंद आतंकियों के रिश्तेदारों से संपर्क कर, उन्हें हर संभव मदद का यकीन दिलाकर, उनके किसी परिजन को विदेश में एडजस्ट करने का लालच देकर अपने साथ जोड़ते हैं। इसके अलावा वह इंटरनेट मीडिया के जरिए उन तक जिहादी सामग्री पहुंचाते हैं और उस पर उनके साथ चर्चा कर, उन्हें जिहादी गतिविधियों के लिए तैयार करते हैं।स्थानीय नेटवर्क की वजह से आतंकी हमलों में हुई बढ़ोत्तरी
ब्रिगेडियर(सेवानिवृत्त) एसएस संब्याल ने कहा कि जम्मू प्रांत में आतंकी हिंसा पर काबू पाने के बाद सुरक्षाबलों ने ऑन ग्राउंड खुफिया तंत्र जो स्थानीय लोगों पर आधारित था, कहीं न कहीं नजरअंदाज किया। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सीमा पार बैठे आतंकी हैंडलरों ने इसका पूरा लाभ उठाया, उन्होंने इन क्षेत्रों में अपना नेटवर्क बढ़ाया और उनसे एक लंबे समय तक कोई काम नहीं लिया। यह भी पढ़ें: Jammu Kashmir Terror: आतंकियों के खात्मे का अभियान तेज, तीन जगहों पर सर्च ऑपरेशन जारी; जंगलों में छिपे बैठे हैं आतंकीउन्होंने पशु तस्करों और मादक पदार्थों के तस्करों को भी आपस में जोड़ा, उन्हें आतंकियों के पुराने गाइडों के साथ जोड़कर एक नया नेटवर्क तैयार किया। इस नेटवर्क की जिम्मेदारी उसने सिर्फ आतंकियों को उनके सेफ हाउस तक पहुंचाने और उनके लिए राशन का बंदोबस्त करने तक रखी है और उसका नुकसान हमें जम्मू प्रांत में आतंकी हमलों मे बढ़ोत्तरी के रूप में उठाना पड़ रहा है।