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Kaobal Gali: कारगिल युद्ध के बाद से अब पर्यटकों के लिए खुला काओबल गली दर्रा, रोमांच और खूबसूरती का संगम मोह लेगा आपका दिल

कारगिल युद्ध के बाद से अब पर्यटकों के लिए 130 किलोमीटर लंबे काओबल गली (Kaobal Gali) मार्ग को आम लोगों के लिए खोल दिया है। काओबल गली की सैर करते हुए आपको एक तरफ पाकिस्तानी सैनिकों की चौकियां नजर आएंगी तो दूसरी तरह बर्फ से लदे पहाड़ व गहरी खाइयां भी हैं। वहीं यहां पर महाभारत काल को लेकर कहा जाता है कि द्रौपदी ने यहां स्नान किया था।

By Jagran NewsEdited By: Deepak SaxenaUpdated: Fri, 17 Nov 2023 07:12 PM (IST)
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कारगिल युद्ध के बाद से अब पर्यटकों के लिए खुली काओबल गली।

नवीन नवाज, श्रीनगर। काओबल गली की सैर किसी रोमांच या कल्पना से कम नहीं है। मार्ग पर कस्तूरी मृग, आइबेक्स (जंगली पहाड़ी बकरी की प्रजाति) और मर्मोट्स (बड़े आकार की गिलहरी) जैसे जानवर घूमते नजर आएंगे। इन जानवरों को खुले में देखना ही अपने आप में रोमांच है। रास्ते में ग्लेशियर, चरागाहें और जंगली ट्यूलिप के फूलों को देखकर कोई भी मदहोश हो जाए।

समुद्रतल से 4167 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह एक दर्रा है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण उत्तरी कश्मीर में बांडीपोरा जिले में नियंत्रण रेखा के साथ सटे तुलैल गुरेज घाटी को कारगिल के द्रास में स्थित मश्कोह घाटी से जोड़ता है, मश्कोह में ही टाइगिर हिल है। जहां वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया था। इन्हें यहां से खदेड़ तो दिया गया, लेकिन इसके बाद एलओसी पर अक्सर होने वाली पाकिस्तानी गोलाबारी के कारण काओबल गली सड़क को आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया था। लगभग 130 किलोमीटर लंबे काओबल गली मार्ग को अब 24 वर्ष बाद फिर खोल दिया गया है। काओबल गली को काबल गली भी कहते हैं।

काओबल गली की सैर करते हुए आपको एक तरफ पाकिस्तानी सैनिकों की चौकियां नजर आएंगी तो दूसरी तरह बर्फ से लदे पहाड़ व गहरी खाइयां भी हैं। इनके बीच से गुजरते हुए झीलें व जंगल भी नजर आएंगे। इसी इलाके में एक काओबल सर झील है। इसे द्रौपदी कुंड भी कहा जाता है। मान्यता है कि द्रौपदी ने यहां स्नान किया था। काओबल गली में बुरनेई, बदोआब, नीरु, शेखपोरा और चकवाली जैसे छोटे-छोटे गांव बसे हैं। इन गांवों को जब दूर से देखेंगे तो लगेगा कि जैसे किसी चित्रकार ने कोई तस्वीर तैयार कर रखी है। चकवाली गांव जम्मू कश्मीर का अंतिम गांव हैं जो गुरेज और मश्कोह घाटी की सीमा पर है। गुरेज और मश्कोह में दार्द शीना समुदाय बसा है।

काओबल गली के पश्चिम में गुरेज (बांडीपोरा) और पूर्व में मश्कोह द्रास (कारगिल) है। इसे संयोग कहा जाए या फिर कुछ और जब यह सड़क बंद की गई तो उस समय गुरेज घाटी और मश्कोह घाटी एक ही राज्य जम्मू कश्मीर का हिस्सा थी। आज मश्कोह घाटी लद्दाख प्रदेश में कारगिल जिले की द्रास तहसील का हिस्सा है।

31 अक्टूबर, 2019 को जम्मू कश्मीर राज्य के दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित होने के बाद एलओसी के साथ सटी मश्कोह घाटी जो शुरू से ही द्रास का हिस्सा है, केंद्र शासित लद्दाख प्रदेश में चली गई। अब जब एलओसी पर शांति बहाल है और जम्मू कश्मीर व लद्दाख दो अलग प्रदेश हो चुके हैं ऐसे में गुरेज और मश्कोह फिर से जुड़ रहे हैं। काओबल गली बंद होने के बाद गुरेज से मश्कोह पहुंचने में कम से कम दो दिन लगते थे। इसके लिए बांडीपोरा, सोनमर्ग से होते जोजि ला पार कर द्रास पहुंचना पड़ता था।

रोमांच के शौकीनों के लिए स्वर्ग

बांडीपोरा के जिला उपायुक्त डा. उवैस अहमद ने कहा कि काओबल गली को जंगबंदी की बहाली के कारण ही खोला जा सका है। उम्मीद करें कि यह जंगबंदी बनी रहे, अन्यथा इसे नहीं खोला जा सकता था, क्योंकि पाकिस्तानी गोलाबारी यहां से गुजरने वालों के लिए खतरा पैदा कर सकती है। अभी हमने इस सिर्फ फोर बाई फोर वाहनों के लिए खोला है और एक कार रैली का भी आयोजन किया है। एडवेंचर टूर ऑपरेटर भी इसे खोलने की मांग कर रहे थे। यह रोमांच के शौकीनों के लिए स्वर्ग है।

एक सपना सच हो रहा...यह सब देखने को मिलेगा

तुलैल से जिला विकास परिषद के सदस्य राजा एजाज ने कहा कि काओबल गली सड़क को आम लोगों के लिए खोलने की हमारी एक पुरानी मांग थी। यह हमारे लिए एक सपने के सच होने जैसा है। इससे पर्यटन भी बढ़ेगा और यहां रोजगार और विकास के नए अवसर पैदा होंगे। यह सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। हमारे पिता-दादा इसी रास्ते का इस्तेमाल कर मश्कोह, द्रास, कारगिल, तिब्बत और गिलगित आते-जाते थे।

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बर्फ भी खूब जमी, पर्यटक पहुंचने लगे

बदोआब गांव में रहने वाले अरशद रियाज ने कहा कि इस वर्ष काओबल गली की सड़क खोली गई है। हालांकि, बर्फ भी खूब है, लेकिन पर्यटकों का आगमन शुरू हो चुका है। पेशे से जुंबा (याक की एक प्रजाति जो सामान्य याक से आकार में छोटी होती है) पालक अरशद ने कहा कि आप हैरान होंगे कि हमारे गांव में कई परिवार वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान मश्कोह से आकर बसे थे। उस समय मश्कोह में जंग चल रही थी। हम शीना भाषी हैं और मश्कोह में भी शीना भाषी समुदाय ही है। हमारी संस्कृति और भाषा एक ही है। अब सड़क खुलने से हम एक बार फिर एक हो जाएंगे।

दो सौ वर्ष पुराने घरों का होगा दीदार

स्थानीय निवासी आबिद नबी ने कहा कि गुरेज में ही आपको लकड़ी के लट्ठों से बने मकान मिलेंगे। इनमें से कई मकान तो सौ-दो सौ साल पुराने हैं। यहां हालात की बेहतरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब अगर हमारे जानवर गलती से एलओसी पार चले जाएं तो पाकिस्तानी सेना उन्हें लौटा देती है। सितंबर, 2021 में यह प्रक्रिया शुरू हुई थी और अब तक जारी है। उस समय सलीम पोस्ट और नादान क्रासिंग के बीच पाकिस्तानी और भारतीय सैनिकों के बीच बैठक में हमारे 29 जुंबा याक लौटाए गए थे।

आर्थिक खुशहाली का बनेगा रास्ता

बांडीपोरा के जिला उपायुक्त डा. उवैस अहमद ने कहा कि अब गुरेज और मश्कोह का सीधा संपर्क बहाल हो गया है। फिलहाल, सड़क फोर बाई फोर वाहनों की आवाजाही के लायक है, लेकिन सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की मदद से हम इसे अन्य वाहनों के गुजरने लायक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। काओबली गली की सड़क इस पूरे क्षेत्र में आर्थिक खुशहाली का रास्ता तैयार कर रही है।

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