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Kashmir Border Tourism: कश्मीर के केरन सेक्टर में कभी होती थी गोलियों की बौछार, अब पर्यटकों से है गुलजार

श्रीनगर से केरन की दूरी करीब 100 किलोमीटर है। केरन जाने के लिए श्रीनगर से आप टैक्सी बुक कर सकते हैं या श्रीनगर से कुपवाड़ा के करालपोरा के लिए बस सेवा का लाभ उठा सकते हैं। शेयरिंग टैक्सी की सुविधा भी उपलब्ध है।

By Jagran NewsEdited By: Rajat MouryaUpdated: Fri, 19 May 2023 07:53 PM (IST)
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केरन सेक्टर में कभी होती थी गोलियों की बौछार, अब पर्यटकों से है गुलजार

श्रीनगर, नवीन नवाज। समुद्रतल से करीब 9,364 फीट की ऊंचाई पर कुपवाड़ा में फरीकयान गली दर्रा पार कर आगे बढ़ते ही सुंदर घाटी दिखती है। ये है कश्मीर का केरन सेक्टर। एक तरफ हरी घास से ढके चारागाह और पहाड़ तो दूसरी ओर बहता दरिया। ऐसा लगता है कि जैसे किसी चित्रकार ने कैनवास पर कोई तस्वीर उतारी हो। यह प्रकृति द्वारा बनाई केरन की तस्वीर है।

जम्मू-कश्मीर और गुलाम जम्मू-कश्मीर के बीच बहने वाली किशनगंगा नदी के किनारे बसा केरन कुछ समय पहले तक पाकिस्तान की गोलाबारी और आतंकियों की घुसपैठ के कारण सुर्खियों में रहता था, लेकिन अब देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों से गुलजार है। पर्यटक यहां के सुंदर पहाड़ और वादियों को निहारने के साथ नियंत्रण रेखा के उस पार के जीवन को करीब से जानने के लिए यहां पहुंच रहे हैं। यह बदलाव बीते दो-तीन वर्षों में संभव हुआ है।

ग्रामीणों के चेहरों पर सुरक्षा और सुखद भविष्य का विश्वास नजर आता है। जीवन के 75 बसंत पार कर चुके मोहम्मद अफजल कहते हैं कि गांव में लोग अब किसी आगुंतक के आगमन पर डरकर दरवाजा बंद नहीं करते, बल्कि स्वागत के लिए खड़े नजर आते हैं। दरिया किनारे खड़े पर्यटकों की तरफ इशारा करते हुए अफजल कहते हैं कि यह प्रकृति का आनंद लेने आए हैं। नदी के उस पार नजर दिखने वाले गांव का नाम भी केरन ही है पर वह गुलाम जम्मू-कश्मीर में पड़ता है।

फरहद नामक युवक का कहना है कि दो वर्ष में यहां सबकुछ बदल गया है। बीते माह ईद के दो दिन बाद गांव में करीब 300 पर्यटक आए थे। उनमें से अधिकांश मुंबई और दिल्ली के थे। कोई ट्रेकिंग के लिए आया तो कोई मछली पकड़ने का आनंद लेने। सबसे अधिक उत्साह नियंत्रण रेखा को करीब से देखने का है। प्रशासन की मदद से स्थानीय लोगों ने होम स्टे की सुविधा आरंभ की है। यहां लकड़ी के लट्ठों से बने मकान दिखेंगे जो हमारी विरासत हैं।

तंबुओं में ठहरिए

किशनगंगा नदी के किनारे 'द एलओसी रेस्तरां' चलाने वाले जाहिद अहमद वानी बताते हैं कि पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। कई पर्यटक होम स्टे के बजाय तंबुओं में रहना पसंद करते हैं। इसलिए मैंने 20 तंबू लगाए हैं। प्रत्येक यात्री से 300 रुपये दैनिक शुल्क लेता हूं। यहां आकर नदी किनारे खड़े होकर गुलाम कश्मीर के गांव को देख सकते हैं। सेना ने यहां आने वाले सैलानियों के लिए कुछ सेल्फी और व्यू प्वाइंट भी विकसित किए हैं।

उपायुक्त कार्यालय से अनुमति आवश्यक

एक और स्थानीय तारिक बताते हैं कि केरन पहुंचने के लिए कुपवाड़ा में उपायुक्त कार्यालय से अनुमति लेनी होती है। पहले लंबी औपचारिकताएं होती थीं, लेकिन अब इसे सरल बना दिया गया है। सिर्फ कार्यालय जाकर आवेदन करना है। उसी समय अनुमति मिल जाएगी। ऑनलाइन भी आवेदन किया जा सकता है।

केरन का इतिहास

केरन को 10वीं सदी में राजा कर्ण ने बसाया था। लोककथाओं के मुताबिक, राजा कर्ण करनाह में गोमाल इलाके से शासन चलाते थे। एक बार उनकी आंखों की रोशनी चली गई। उन्हें बताया गया कि दो जलधाराओं के संगम से बनी नदी में स्नान करने से आंखों की रोशनी वापस आ जाएगी। वह शारदा क्षेत्र में पहुंचे। यह गुलाम जम्मू-कश्मीर में है। इसी गांव के बाहरी छोर पर पहाड़ी पर देवी शारदा का मंदिर भी है। इसे हम शारदा पीठ के नाम से भी जानते हैं।

राजा ने जब शारदा से कुछ दूरी पर दरिया में स्नान किया तो उनकी आंखों की रोशनी लौट आई। उन्होंने सबसे पहले किशनगंगा नदी के किनारे इस घाटी को देखा और वहीं बसने का निर्णय किया और अपना राज्य वजीर को सौंप दिया। उन्होंने ही कर्ण नामक कस्बा बसाया जो कालांतर में केरन हो गया। केरन किशनगंगा के दोनों तरफ बसा है।

केरन तक कैसे पहुंचें

श्रीनगर से केरन की दूरी करीब 100 किलोमीटर है। केरन जाने के लिए श्रीनगर से आप टैक्सी बुक कर सकते हैं या श्रीनगर से कुपवाड़ा के करालपोरा के लिए बस सेवा का लाभ उठा सकते हैं। शेयरिंग टैक्सी की सुविधा भी उपलब्ध है। करालपोरा से केरन के लिए फिर टैक्सी लेनी पड़ेगी। श्रीनगर के लिए दिल्ली, मुंबई व देश के कुछ अन्य शहरों से सीधी हवाई सेवा उपलब्ध है। जम्मू के रास्ते भी श्रीनगर-कुपवाड़ा-केरन जाया जा सकता है। केरन में जाने से पहले ऊनी कपड़े अवश्य रखें।

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