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    Kishtwar Cloudburst: लद्दाख में ग्लेशियर टूटने से आई थी तबाही? 10 दिन बाद भी रहस्य बरकरार; कारणों पर बंटे विशेषज्ञ

    किश्तवाड़ के चशोती में बादल फटने की घटना के 10 दिन बाद भी विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। श्रीनगर मौसम विभाग के अनुसार यह त्रासदी किश्तवाड़ से सटे लद्दाख में ग्लेशियर टूटने और बादल फटने से हुई। कुछ विशेषज्ञ इसे चशोती में बादल फटने का परिणाम मानते हैं। जम्मू-कश्मीर में मौसम निगरानी तंत्र की कमी से कारणों का पता लगाने में मुश्किल हो रही है।

    By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Sun, 24 Aug 2025 11:51 AM (IST)
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    Kishtwar Cloudburst: लद्दाख में ग्लेशियर टूटने से आई थी तबाही! फोटो जागरण

    रजिया नूर, श्रीनगर। किश्तवाड़ के चशोती में बादल फटा या ग्लेशियर टूटा, त्रासदी के 10 दिन बीत जाने के बाद भी मौसम विशेषज्ञ इसपर बंटे हुए हैं। हालांकि श्रीनगर मौसम विभाग ने दावा किया है कि यह त्रासदी किश्तवाड़ के साथ सटे लद्दाख के कुछ ऊपरी क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने व बादल फटने से संयुक्त रूप से आई है।

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    वहीं, कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि चशोती के ऊपरी हिस्से में बादल फटना ही तबाही का कारण बना। त्रासदी के कारणों की असली वजह अभी तक सामने न आने के पीछे जम्मू-कश्मीर में मौसम के निगरानी तंत्र की कमी है। मौसम का हाल बताने के लिए प्रदेश में केवल श्रीनगर में एक ही रडार है।

    जम्मू संभाग के किश्तवाड़ जिला में मचैल माता की यात्रा के मार्ग पर चशोती में 14 अगस्त को बादल फटने से भारी तबाही हुई थी। उस समय यात्रा चल रही थी और अभी भी वहां राहत अभियान जारी है। मलबे में दबे करीब 68 शव बरामद किए जा चुके हैं और करीब 70 लोग अभी लापता बताए जाते हैं।

    श्रीनगर मौसम विभाग के निदेशक डा. मुख्तार अहमद ने कहा, विभाग की तरफ से की गई जांच से पता चला है कि त्रासदी के दिन लद्दाख, जो चशोती के ऊपरी इलाके से सटा है, वहां स्थित कुछ ग्लेशियर के टूटने तथा चशोती में हुई बारिश इस त्रासदी का कारण बने। ग्लेशियर टूटने से बाढ़ आ गई होगी और चशोती में तबाही मची।

    मौसम निगरानी केंद्रों की कमी बढ़ा रही त्रासदियों का खतरा

    जम्मू-कश्मीर में मौसम की स्थिति को दर्शाने वाली आधारभूत संरचना में कमी है, जिससे खतरा बना रहता है। निदेशक डा. मुख्तार ने कहा कि जम्मू-कश्मीर एक पहाड़ी क्षेत्र है, लेकिन मौसम का हाल बताने के लिए अभी हमारे पास एक ही रडार है।

    हमने उच्चाधिकारियों से तीन और रडार की मांग की है। दो रडार दक्षिण व उत्तरी कश्मीर और एक रडार जम्मू में लगाया जाएगा। हम कोशिश करेंगे कि यह रडार हमारे पहाड़ी क्षेत्रों के निकट ही लगें, ताकि मौसम के बारे में हम पहले ही लोगों को सूचित कर सकें।

    ग्लेशियर फटा तो अन्य जगह क्यों नहीं हुई तबाही

    कश्मीर के वरिष्ठ मौसम विशेषज्ञ फैजान आरिफ केंग ने कहा, तकनीकी हिसाब से देखें तो चशोती में हुई त्रासदी वहां बादल फटने के कारण ही हुई। चशोती एक पहाड़ी क्षेत्र है और वहां बादलों का फटना आम बात है। उन्होंने किश्तवाड़ से जुड़े लद्दाख में स्थित ग्लेशियर के फटने की संभावना से इन्कार करते हुए कहा, यदि ऐसा होता तो बाढ़ पहले लद्दाख के उन हिस्सों में आ जाती जो उन ग्लेशियर के आसपास स्थित हैं।

    यह भी सवाल उठता है कि यदि ग्लेशियर फटे तो फ्लैश फल्ड चशोती में ही क्यों आया। ऐसा इसलिए कि वहां बादल ही फटा था। केंग ने कहा, 14 अगस्त के मौसम का आंकलन करें तो पता चलेगा कि उस दिन किश्तवाड़ के आसपास व नजदीकी क्षेत्र, जिनमें अनंतनाग आता है, वहां सुबह से घने बादल छाए हुए थे और दोपहर 1:30 से 2:30 बजे के बीच यह बादल किश्तवाड़ में बरसे भी थे, जबकि चशोती में बरसने के बजाए बादल फट गया।

    आपादा के दिन पूरी तरह सक्रिय था मानसून

    मौसम विशेषज्ञ केंग ने कहा, पूरे प्रदेश में जम्मू संभाग में मानसून का सबसे ज्यादा प्रभाव रहता है। मानसून में मौसम की अनिश्चितताएं पल-पल बदलती है। गरज के साथ बरसात शुरू होती है और ऐसे में बादल फटने की घनटाएं भी होती है।

    चूंकि किश्तवाड़, पुंछ, राजौरी, कठुआ जम्मू संभाग के पहाड़ी जिले हैं और इन क्षेत्रों में बादल फटने की ज्यादा आशंका रहती है। 14 अगस्त को घटना वाले दिन भी मानसून सक्रिय था।

    घटना वाले दिन किश्तवाड़ में नौ मिलीमीटर बारिश हुई। इतनी वर्षा त्रासदी का सबब नहीं बन सकती। हालांकि बादल कभी भी फट सकते हैं और यह मिनटों में खतरनाक रुख ले सकते हैं। ऐसे में वहां बादल फटने से भी इन्कार नहीं कर सकते।

    - डा. मुख्तार अहमद, निदेशक, मौसम विभाग