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बच्चों की मुस्कान बता रही, कश्मीर में सब ठीक है... 14 साल बाद चला सबसे लंबा और नियमित अकादमिक सत्र

कश्मीर में एक हायर सेकेंडरी स्कूल में शिक्षक फारूक शाह ने कहा कि मैं तो हैरान हूं जब हमने स्कूलों में सर्दियों के लिए अवकाश का एलान किया तो छात्रों के चेहरे पर ज्यादा खुशी या रोमांच नहीं था। शायद वह घर बैठकर तंग आ चुके हैं।

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Fri, 24 Feb 2023 06:53 PM (IST)
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श्रीनगर में छुट्टी के बाद खुशी-खुशी सहपाठियों के साथ घर जाते स्कूली बच्चे।
नवीन नवाज, श्रीनगर। कभी बंद-कभी हड़ताल। कभी आतंकी हिंसा, सिलसिलेवार प्रदर्शन तो कभी विनाशकारी बाढ़। कश्मीर में सबसे ज्यादा प्रभावित स्कूली बच्चे और अकादमिक सत्र ही होता आया है, लेकिन वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद आ रहे बदलाव का असर अब साफ नजर आने लगा है।

कश्मीर घाटी में लगभग 14 वर्ष के बाद बीते वर्ष पहली बार अब तक का सबसे लंबा और नियमित अकादमिक सत्र चला है। इस सत्र में कश्मीर में अधिकांश स्कूलों में 200 या इससे भी ज्यादा दिन कक्षाओं का संचालन किया गया।

इससे न केवल स्कूल शिक्षा विभाग, शिक्षण संस्थान और अध्यापक उत्साहित हैं बल्कि बच्चे और अभिभावक भी खुश हैं। कश्मीर में अब बच्चों को इस बात की प्रतीक्षा रहती है कि स्कूल की घंटी बजे और वे पढ़ने जाएं।

कश्मीर में एक हायर सेकेंडरी स्कूल में शिक्षक फारूक शाह ने कहा कि मैं तो हैरान हूं, जब हमने स्कूलों में सर्दियों के लिए अवकाश का एलान किया तो छात्रों के चेहरे पर ज्यादा खुशी या रोमांच नहीं था। शायद वह घर बैठकर तंग आ चुके हैं।

उनके ही स्कूल में 12वीं कक्षा के छात्र दानिश ने कहा कि पिछले साल दो मार्च को लगभग तीन वर्ष बाद जब मैं स्कूल पहुंचा था तो ऐसा लगा जैसे किसी कैदखाने से आजादी मिली हो। पुराने दोस्तों से मुलाकात हुई, कक्षा में बैठकर शिक्षकों से पढ़ने का मौका मिला।

घर बैठना वाकई मुश्किलभरा था। यह सत्र अच्छा रहा। रेडक्रास मार्ग पर स्थित कोठीबाग गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में नौंवी की छात्रा इरम ने कहा कि पहले मैं अमीराकदल गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी। इसी साल मुझे मेरे माता-पिता ने कोठीबाग में दाखिल कराया है।

अमीरकदल स्कूल में अगस्त 2019 के बाद शायद ही मैं एक महीना नियमित तौर पर पढ़ने गई। कोठीबाग में इस सत्र में निसयमित पढ़ने का अच्छा अनुभव रहा और बहुत कुछ सीखा भी। नियाज इलाही ने कहा कि मैं अध्यापक रह चुका हूं।

मेरी पढ़ाई लिखाई भी यहीं कश्मीर में हुई है और मुझे नहीं लगता कि 1990 के बाद से कभी कश्मीर में इतना लंबा अकादमिक सत्र चला हो। इसके कई कारण हो सकते हैं। लोग इसे पांच अगस्त 2019 का परिणाम बताते हैं, लेकिन सब इस बदलाव से खुश हैं और इसे कश्मीर में शिक्षा के सुनहरे दिनों की वापसी का आगाज मानते हैं।

उन्होंने कहा कि कश्मीर में जब आतंकी हिंसा शुरू हुई तो स्कूल कालेजों का बंद होना एक सामान्य बात हो गई थी। वर्ष 1996 के बाद में इसमे कुछ सुधार आया, लेकिन कभी अलगाववादियों का आह्वान तो कभी कर्फ्यू तो कभी हड़ताल के कारण शायद ही कभी 200 दिन नियमित तौर पर स्कूल खुले हों।

स्कूल में अच्छा लगता है

अभिभावक फिरदौसा अख्तर ने कहा कि स्कूल बंद होने से मेरी बेटी सफा के व्यवहार में काफी बदलाव आ गया था, वह घर बैठकर बहुत परेशान हो गई थी। इस वर्ष स्कूल नियमित खुलने से वह काफी खुश रहने लगी है और उसका पढ़ाई में भी मन लग रहा है। मिशनरी स्कूल की छात्रा सफा ने कहा कि मैं लगभग तीन साल तक घर में ही रही हूं। सहपाठियों से दूर हो गई थी। अब स्कूल में साथ-साथ बैठकर पढ़ने में अच्छा लगता है।

स्कूलों की कमी नहीं हो सकती पूरी

समाजसेवी रफी रज्जाकी ने कहा कि नियमित स्कूल चलना बहुत जरूरी है। कश्मीर में जब लंबे समय के लिए स्कूल बंद हुए तो मोहल्ला कमेटियों, मोहल्लों में रहने वाले अध्यापकों और पढ़े-लिखे नौजवानों ने अपने-अपने स्तर पर कम्युनिटी टीचिंग शुरू की। यह अच्छी पहल थी, लेकिन इससे स्कूलों की कमी पूरी नहीं हो सकती।

इस बार बच्चों का पाठयक्रम भी हुआ पूरा

प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन कश्मीर के अध्यक्ष जीएन वार ने कहा कि आनलाइन कक्षाओं की तुलना आप एक नियमित स्कूल से नहीं कर सकते। हम खुश हैं कि मौजूदा अकादमिक सत्र में 200 या इससे ज्यादा दिनों तक स्कूल खुले रहे हैं। कश्मीर में बीते 15 वर्ष से एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल में पढ़ा रहे दिल्ली के रहने वाले तुषार ने कहा कि हम लोगों ने इस बार छात्रों का पाठयक्रम बीते कुछ वर्षों में पहली बार पूरा किया है।

मनोचिकित्सक बोले, स्कूल बंद होने का बच्चों पर होता है नकारात्मक असर

कश्मीर में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. मोहम्मद इकबाल डार ने कहा कि औपचारिक शिक्षा बंद होने का असर युवाओं विशेषकर किशोरावस्था के छात्रों की मनोदशा पर भी पड़ता है। दोस्तों से अलगाव, एकाकीपन के कारण कइयों में अवसाद, चिड़चिड़ापन पैदा होता है। हमारे पास अभिभावकों के साथ ऐसे कई छात्र आए। हमें उनकी कांउसलिंग करनी पड़ी।

कई का उपचार भी किया गया। स्कूलों का अपना एक वातावरण होता है, छात्रों का अपना एक अलग संसार होता है, आप उन्हें जब उससे वंचित करेंगे तो उसका नकारात्मक असर उनके जीवन पर होता है। बच्चों की पढ़ाई के प्रभावित होने से कई अभिभावक भी मानसिक तनाव का शिकार हुए। अच्छा है कि अब स्थिति बदल गई है।

इस सत्र में कोई व्यवधान नहीं पड़ा : सचिव

जम्मू-कश्मीर स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव आलोक कुमार ने कहा कि बीते कुछ वर्षों के दौरान यह अब तक का सबसे लंबा और नियमित अकादमिक सत्र रहा है। इसमें कोई व्यवधान नहीं आया है। पाठयक्रम को पूरा किया गया है और छात्रों ने अकादमिक गतिविधियों के साथ रचनात्मक व खेल गतिविधियों में भी पूरे उत्साह के साथ भाग लिया है।

हम छात्रों को अब वोकेशनल ट्रेनिंग भी दे रहे हैं, उन्हें रोजगारोन्मुख हुनर सिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना और उससे पहले वादी में हालात से जो छात्रों की पढ़ाई का जो नुकसान हुआ है, उसे अतिरिक्त कक्षाओं, प्रशिक्षिण कार्यशालाओं से दूर किया जा रहा है।

बता दें कि प्रदेश सरकार ने गत अक्टूबर में पूरे प्रदेश के लिए एक ही अकादमिक सत्र भी लागू करने का एलान किया है। पहले घाटी के सभी और जम्मू संभाग के उच्च पर्वतीय स्कूलों का अकादमिक सत्र नवंबर से नवंबर चलता था, जबकि जम्मू संभाग के निचले और मैदानी इलाकों में देश के अन्य भागों की तरह मार्च से मार्च तक का अकादमिक सत्र होता है। अब कश्मीर में हो या जम्मू, सभी जगह मार्च से मार्च तक के ही अकादमिक सत्र की व्यवस्था की गई है।

घाटी में साल-दर-साल प्रभावित रही शिक्षा

  • वर्ष 2008 में श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन के दौरान लगभग ढाई माह स्कूल पूरी तरह बंद रहे और उन्हें सामान्य रूप से खुलने में लगभग एक माह लगा और फिर वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो गई थीं।
  • वर्ष 2009 में शोपियां में दो युवतियों की मौत के कारण करीब एक माह तक श्रीनगर में लगातार स्कूल बंद रहे और उसके बाद भी कई बार स्कूल बंद ही रहे।
  • वर्ष 2010 में मई में सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरू हुआ था, जो अक्टूबर के बाद तक चला था। परीक्षाओं का आयोजन मुश्किल से हुआ, पाठयक्रम में भी कटौती रही।
  • वर्ष 2011-12, वर्ष 2012-13 का अकादमिक सत्र भी हिंसा और प्रदर्शनों से प्रभावित रहा।
  • वर्ष 2014 में विनाशकारी बाढ़ ने नुकसान पहुंचाया। वर्ष 2015 में भी यही स्थिति रही।
  • वर्ष 2016 में आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद वादी में हुए सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शनों में स्कूल बंद ही रहे।
  • वर्ष 2017 और 2018 में भी आए दिन स्कूल कालेज बंद रहे।
  • वर्ष 2019 में लगभग पांच माह स्कूल बंद रहे, क्योंकि पांच अगस्त 2019 के बाद हालात काफी तनावपूर्ण थे।
  • वर्ष 2020 और वर्ष 2021 में कोरोना लाकडाउन ने स्कूलों के दरवाजों का ताला नहीं खुलने दिया।
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