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Srinagar News: पीडीपी से सियासी टकराव में नेशनल कॉन्फ्रेंस को हो सकता नुकसान, जानिए कैसे तीन सीटें दे सकती है BJP को फायदा

पीडीपी से सियासी टकराव में नेशनल कॉन्फ्रेंस को नुकसान हो सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले सीट बंटवारे को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच सियासी उठापटक तेज हो गई है। अगर चुनावी मैदान में ये दोनों पार्टियां कश्मीर की तीन सीटों पर मुकाबला को लेकर आपस में उलझती हैं तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा।

By naveen sharma Edited By: Deepak Saxena Updated: Sat, 09 Mar 2024 09:57 PM (IST)
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पीडीपी से सियासी टकराव में नेशनल कॉन्फ्रेंस को हो सकता नुकसान (फाइल फोटो)।

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। लोकसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच टकराव के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। नेकां के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के बयान से आहत पीडीपी अगर चुनावी दंगल में उतरी तो कश्मीर की तीन सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय और बहुकोणीय हो जाएगा, जिसका नुकसान नेकां को होना तय है। अपनी जीत को लेकर खासी आश्वस्त नजर आ रही नेकां के पैरों तले जमीन खिसक सकती है, क्योंकि वोट बैंक सिर्फ नेकां का घटेगा।

पीडीपी न सिर्फ दक्षिण कश्मीर में बल्कि राजौरी-पुंछ के अलावा सेंट्रल कश्मीर और उत्तरी कश्मीर में भी अच्छा खासा प्रभाव रखती है। तीन सीटों पर वोट बंटने से इसका लाभ भाजपा के अलावा उसके समर्थक दल भी उठा सकते हैं। मौजूदा समय में भाजपा में कश्मीर में अपनी जबरदस्त पकड़ बना चुकी है। दो दिन पहले हुई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली इसकी गवाह है।

बता दें कि बारामुला-कुपवाड़ा और पुलवामा-श्रीनगर-गांदरबल समेत दो संसदीय क्षेत्र कश्मीर में हैं। जम्मू में रियासी-जम्मू और ऊधमपुर-डोडा-कठुआ संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हैं। अनंतनाग-राजौरी संसदीय क्षेत्र कश्मीर और और जम्मू में पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के दोनों तरफ फैला है। नेकां, पीडीपी और कांग्रेस के मिलकर पांचों सीटों पर साझा प्रत्याशी उतारने की योजना थी।

पीडीपी तीसरे नंबर की पार्टी- उमर

इसमें अनंतनाग-राजौरी सीट पर पीडीपी, जम्मू की दोनों सीटों पर कांग्रेस और कश्मीर की दोनों सीटों पर नेकां के लड़ने की बात हो रही थी। नेकां ने साफ कर दिया कि वह पीडीपी को गठबंधन से बाहर मानती है। वह कश्मीर की दोनों सीटों के अलावा अनंतनाग-राजौरी सीट पर अकेले चुनाव लड़ेगी। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि कि पीडीपी तीसरे नंबर की पार्टी है और तीनों संसदीय क्षेत्रों में वह काफी कमजोर स्थिति में है।

नेकां उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के एलान के बाद से पीडीपी में जबरदस्त हलचल हो रही है। पीडीपी ने भी साफ कर दिया है कि वह भी अकेले चुनाव लड़ने से घबराती नहीं है, लेकिन उसका मकसद एकता को बनाए रखना है। पीडीपी तीनों सीटों पर जीत का समीकरण बदल सकती है। जिला राजौरी में पीडीपी का अच्छा खासा प्रभाव रहा है। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी हर जगह नेकां पर भारी रही है। वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव वर्ष 2016 के हिंसक प्रदर्शनों के बाद हुए थे और उस समय लोगों में पीडीपी के प्रति नाराजगी थी।

अनंतनाग-राजौरी सीट पर महबूबा बन सकती नेकां के लिए मुसीबत

अगर पीडीपी अनंतनाग-राजौरी सीट पर महबूबा को उतारती है तो नेकां के लिए स्थिति मुश्किल हो जाएगी। दोनों का अनंतनाग, कुलगाम में नहीं राजौरी-पुंछ में वोट बंट जाएगा। भाजपा का राजौरी-पुंछ में मजबूत वोट बैंक है। इसके अलावा उसे गुज्जर-पहाड़ी समुदाय से इस बार वोट मिलने की उम्मीद है। दक्षिण कश्मीर में कुछ वर्षों में उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है। ऐसे में पीडीपी का चुनाव लड़ना नेकां की जीत की राह में रुकावट बन जाएगा। श्रीनगर-पुलवामा-गांदरबल सीट में अब वह इलाके शामिल हैं जहां पीडीपी को मजबूत माना जाता है।

इस सीट पर नेकां और पीडीपी के बीच सीधा या फिर जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा। ऐसी स्थिति में नेकां कमजोर होगी और उसकी जीत की संभावना घटेगी। इस संसदीय क्षेत्र में दो शिया बहुल क्षेत्र जो पहले नेकां का गढ़ माने जाते थे। अब उत्तरी कश्मीर की सीट में शामिल हो चुके हैं।

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सज्जाद गनी लोन को मिल सकता लाभ

श्रीनगर के सोनवार विधानसभा क्षेत्र में ही पीडीपी के उम्मीदवार ने वर्ष 2014 में उमर को हराया था। इससे पहले उमर गांदरबल में भी पीडीपी के उम्मीदवार से 2002 में चुनाव हारे थे। वर्ष 2014 में पीडीपी ने कश्मीर की तीनों सीटों पर जीत दर्ज की थी। बारामुला-कुपवाड़ा सीट पर अगर पीडीपी मैदान में नहीं उतरती है और वह अपने कैडर को सज्जाद लोन का समर्थन करने का संकेत देती है तो नेकां के लिए यहां स्थिति मुश्किल होगी और ऐसे में लाभ सज्जाद गनी लोन को ही होगा।

दो सीट पर हो सकता नुकसान

कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि चार वर्ष में महबूबा मुफ्ती ने हर जगह जाकर यही कहा है कि उनके लिए सीट नहीं, कश्मीर अहम है, उससे उन्होंने एक बार फिर आम कश्मीरियों में अपनी स्थिति को कुछ हद तक मजबूत बनाया है। वह दो सीटों पर नेकां की जीत को न सिर्फ मुश्किल बल्कि उसकी जीत की संभावना को हार में बदल सकती है।

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