Jammu Kashmir Election 2024: नेकां, पीडीपी का विकल्प बनने उतरे थे नए दल, अब लड़ रहे हैं अस्तित्व की लड़ाई
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल- 370 हटने के बाद पहली बार विधानसभा होने जा रहा है। जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के बाद प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य बदलने एक दर्जन से अधिक नए दल उभरे थे। ये नए दल नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का विकल्प बनने उतरे थे लेकिन अब उनका ही एजेंडा आगे बढ़ाने लगे हैं। इस विधानसभा चुनाव में ये पार्टियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए उतरेंगी।
बदलाव के वातावरण में संभावनाएं तलाश रहे हैं नए दल
जम्मू-कश्मीर में नेकां, पीडीपी और पैंथर्स सरीखे क्षेत्रीय दल पहले से ही हैं। पांच अगस्त, 2019 के बाद प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदला। बदलाव के वातावरण में अपने लिए संभावनाएं तलाशने के लिए दर्जन भर नए दल उभरे।18 सितंबर को पहले चरण के लिए होगी वोटिंग
फिलहाल, विधानसभा चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और पहले चरण के चुनाव 18 सितंबर को हैं, किंतु यह अपना प्रभाव छोड़ते नजर नहीं आ रहे। पीडीपी से अलग होकर अल्ताफ बुखारी ने जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी और कांग्रेस से अलग हुए आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी खूब चर्चा में भी रहे पर लोकसभा चुनाव में कोई प्रभाव नहीं दिखा पाए।यह नए दल भी बने
लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस
सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पूरी तरह से उत्तरी कश्मीर में और वह भी कुपवाड़ा जिले में सीमित नजर आ रही है। 2014 के विधानसभा चुनाव में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने कुपवाड़ा जिले में दो सीटें जीती थीं।जो नए दल बने, उनमें अधिकतर कश्मीर केंद्रित हैं। यह दल हर मुद्दे पर नेकां, पीडीपी और कांग्रेस की आलोचना करते और खुद को दिल्ली का करीबी होने का दावा करते पर जनता के मन तक नहीं पहुंच पाए। इन दलों के नेताओं ने सबक नहीं लिया। यही कारण है कि आज जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी से लगभग 20 बड़े नेता अलग हो चुके हैं।
-रमीज मखदूमी, जम्मू कश्मीर के राजनीतिक मामलों के जानकार
बुखारी की अपनी पार्टी
सैयद अल्ताफ बुखारी की जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी मार्च, 2020 में अस्तित्व में आई। इसने एक नई राजनीतिक आवाज और सोच देने का यकीन दिलाया और स्वयं को नेकां, पीडीपी के विकल्प के रूप में पेश किया था। वर्तमान में यह पार्टी संगठन छोड़ रहे नेताओं को किसी तरह से रोकने के प्रयास में है। अब यह तीन से चार विधानसभा क्षेत्रों तक सिमटी लग रही है।आजाद की डीपीएपी
कांग्रेस से अलग हुए गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) असमंजस में हैं। पार्टी के चार उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान से अपने नाम वापस ले लिए हैं।यह भी पढ़ें- J&K Election: 'राम माधव सम्पर्क में हैं', उमर अब्दुल्ला ने PDP पर लगाया आरोप; महबूबा बोलीं- अपने भीतर झांकना चाहिएइन नेताओं का अपने-अपने इलाके में जरूर प्रभाव रहना चाहिए। जीत दर्ज में करने में असमर्थता उनकी राजनीतिक यात्रा को समाप्त कर सकती है। इसलिए अब यह दल भी पीएसए, स्थानीय पहचान और पुराने कानूनों की वापसी का मुद्दा उठा रहे हैं। कुछ समय पहले तक वह इनसे बचने का प्रयास कर रहे थे।
प्रो. हरि ओम, राजनीतिक मामलों के जानकार
भाजपा के साथ जुड़ने से नुकसान हुआ- बुखारी
अपनी पार्टी अध्यक्ष सैयद अल्ताफ बुखारी और महासचिव रफी अहमद का कहना है कि लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा के साथ गठजोड़ का नुकसान हुआ है। इसलिए वह अब किसी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। डीपीएपी से अलग होने वाले पूर्व मंत्री ताज मोहिउद्दीन ने कहा कि लोगों ने हमें यहां भाजपा की बी-टीम मान लिया है और इसका पार्टी को नुकसान हुआ है।यह भी पढ़ें- AAP और कांग्रेस में हो सकता है गठबंधन, राहुल गांधी ने नेताओं से की चर्चा; विनेश फोगाट पर भी जल्द खत्म होगा सस्पेंसराजनीतिक दल रातों-रात मजबूत नहीं होते। उन्हें समय लगता है। नए दलों ने खुद को नेकां और पीडीपी का विरोधी बताया तो उन दलों के नेताओं ने नए राजनीतिक दल कश्मीरियों को राजनीतिक रूप से कमजोर बनाने की रणनीति के तौर पर प्रचारित करना शुरू कर दिया। यह बात लोगों के दिल में घर कर गई।
-प्रो. नूर मोहम्मद बाबा, राजनीतिक मामलों के जानकार