Kejriwal Arrest: 'लोकतंत्र पर धब्बा...घबराई हुई है बीजेपी', केजरीवाल की गिरफ्तारी पर उमर अब्दुल्ला का फूटा गुस्सा
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal Arrest) की गिरफ्तारी पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के साथ खड़ी है। चुनाव से पहले इस तरह की प्रक्रिया लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है। उन्होंने इसे लोकतंत्र पर धब्बा भी बताया है।
पीटीआई, श्रीनगर। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद से आम आदमी पार्टी ने जगह-जगह प्रदर्शन कर रही है। वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने केजरीवाल का समर्थन किया है। उन्होंने दिल्ली के सीएम की गिरफ्तारी को लोकतंत्र पर 'धब्बा' बताया है। उन्होंने कहा कि इससे साफ हो रहा है कि बीजेपी कितनी घबराई हुई है। अब्दुल्ला ने ये भी कहा कि उनकी पार्टी केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के साथ खड़ी है।
अब्दुल्ला ने इसे लेकर कल एक्स पर पोस्ट भी किया था। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा, 'लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद ईडी का सीएम केजरीवाल को गिरफ्तार करना लोकतंत्र पर एक धब्बा है।' एक तरफ बीजेपी अबकी बार 400 पार का नारा लगा रही है, वहीं दूसरी ओर घबराई हुई भी दिख रही है।इसके बाद आज पत्रकारों से बातचीत के दौरान अब्दुल्ला ने कहा कि सीएम केजरीवाल की गिरफ्तारी साफतौर पर चुनाव से जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा, 'चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के कुछ ही दिनों के भीतर दिल्ली के मुख्यमंत्री और विपक्षी गठबंधन के एक महत्वपूर्ण हिस्से को ईडी ने मनमाने ढंग से गिरफ्तार कर लिया है। हालांकि, केजरीवाल अकेले नेता नहीं है जिनके साथ ये सब हो रहा हो।"
लोकतांत्रिक संस्थाओं का अस्तित्व खत्म: अब्दुल्ला
उन्होंने कहा कुछ हफ्ते पहले झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री भी इसी स्थिति में थे। यह दुर्भाग्य से उस प्रक्रिया का एक हिस्सा है जिसके तहत इस देश में लोकतांत्रिक संस्थाएं धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं और उनका अस्तित्व भी लगभग समाप्त हो गया है।
अब अदालतों पर विश्वास नहीं: अब्दुल्ला
चुनाव से पहले गिरफ्तारी दबाव की रणनीति जैसे सवाल पर अब्दुल्ला ने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है। यह कई वर्षों से चल रहा है और अब ऐसी कोई पार्टी नहीं बची है जो भाजपा का विरोध करती हो और उसे इस तरह से निशाना नहीं बनाया गया हो। यह हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में स्थापित हुए नए लोकतंत्र का एक छोटा सा हिस्सा है। सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं को एक-एक करके खोखला कर दिया गया है। अब लोगों को अदालतों पर भी विश्वास नहीं रहा है।उन्होंने कहा कि जब इंदिरा गांधी के समय आपातकाल था, तो कम से कम लोगों को यह विश्वास था कि वे न्याय पाने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं। लेकिन, आज दुर्भाग्य से जब न्यायाधीश के नाम की घोषणा की जाती है, तो हम जानते हैं कि क्या होता है उनका निर्णय होगा। अगर हमारी अदालतों की यह स्थिति है, तो लोग किस पर विश्वास करेंगे।
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