Lok Sabha ELection 2024: कभी रिमोट से चलाते थे राजनीति, आज खुद अस्तित्व के लिए जूझ रहे पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद
समय का चक्र ही है। जो कभी दिल्ली से बैठकर प्रदेश की राजनीति को कंट्रोल करने वाले पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद आज खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। ये लोकसभा चुनाव महज एक चुनाव नहीं है बल्कि प्रदेश के कुछ कद्दावर नेताओं के भविष्य को बताने वाला चुनाव है। जिनमें से एक DPAP के अध्यक्ष आजाद भी हैं।
नवीन नवाज, श्रीनगर। समय का फेर है, कभी दिल्ली में बैठ जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir News) की राजनीति और सरकार की दिशा तय करने में भूमिका निभाते थे। आज अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए पहाड़ और मैदान नाप रहे हैं।
यह कोई और नहीं पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad) हैं। जो कांग्रेस के शासनकाल में करीब 20 वर्ष तक केंद्रीय मंत्री रहे हैं। अनंतनाग-राजौरी संसदीय सीट (Anantnag-Rajouri seat) से चुनाव लड़ रहे आजाद के लिए यह चुनाव न सिर्फ जम्मू कश्मीर की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
यही कारण है कि वह अदालत द्वारा असंवैधानिक करार दिए रोशनी अधिनियम को फिर से लागू करने और प्रदेश में रोजगार व जमीन पर सिर्फ स्थानीय लोगों के अधिकार सुनिश्चित करने का यकीन दिला रहे हैं।दो वर्ष पहले कांग्रेस से अलग होने के बाद डेमोक्रेटिक प्राग्रेसिव आजाद (डीपीए) पार्टी का गठन करने वाले आजाद के विरोधी उन पर भाजपा का एजेंट होने का आरोप लगा रहे हैं।
आजाद की पार्टी ने प्रदेश की पांच में से सिर्फ दो सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। ऊधमपुर-डोडा संसदीय सीट (Udhampur-Doda seat) पर उन्होंने अपने विश्वस्त जीएम सरूरी को उम्मीदवार बनाया है। खुद वह अनंतनाग-राजौरी संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। जीवन के 75 वसंत पार कर चुके गुलाम नबी आजाद के लिए यह चुनाव अस्तित्व का सवाल है।
वह जम्मू कश्मीर में दूसरी बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने पहला संसदीय चुनाव 2014 में कांग्रेस के टिकट पर ऊधमपुर-कठुआ संसदीय सीट (Udhampur-Kathua seat) पर लड़ा। भाजपा के उम्मीदवार डा जितेंद्र सिंह से हार गए थे। अब वह दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। वह भी अनंतनाग-राजौरी सीट से। यह अलग बात है कि वह महाराष्ट्र से दो बार चुनाव जीत चुके हैं।
वह वोटरों को लुभाने के लिए अदालत द्वारा असंवैधानिक घोषित किए जा चुके रोशनी अधिनियम को फिर से बहाल करने का यकीन दिला रहे हैं। यह वह कानून है जिसकी आड़ में सरकारी और वनीय जमीनों पर उनके कब्जाधारकों को मालिकाना अधिकार दिया। इसका एक धर्म विशेष और कुछ रसूखदारों में जमकर लाभ उठाया। इनमें खुद आजाद के कई रिश्तेदारों के नाम भी आए। दूसरा मुद्दा वह जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करना और सरकारी रोजगार व जमीनों पर स्थानीय लोगों के अधिकार को सुनिश्चित बनाने की बात कर रहे हैं।
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