श्रीनगर की दीवारें बताएंगी घाटी की समृद्ध सभ्यता की कहानी
संवाद सहयोगी श्रीनगर कश्मीर घूमने आने वाले पर्यटकों को अब यहां की सभ्यता कला व संस्कृति के ब
संवाद सहयोगी, श्रीनगर : कश्मीर घूमने आने वाले पर्यटकों को अब यहां की सभ्यता, कला व संस्कृति के बारे में न तो किसी से पूछने की जरूरत पड़ेगी और न ही इसके लिए किताबों का सहारा लेना पड़ेग। अब यह सारी बातें यहा की दीवार ही बयां करेंगी। क्योंकि वर्ष 2017 में घाटी के दिल कहे जाने वाले श्रीनगर शहर को और खूबसूरत बनाने के लिए शुरू किया गया स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट गति पकड़ने लगा है। शहर को खूबसूरत बनाने की योजना में प्रमुख स्थानों, सड़कों व गली-नुक्कड़ की दीवारों पर यहा की शानदार सभ्यता व संस्कृति को ब्रश से उतारा जा रहा है, ताकि आने वाले मेहमान यहा के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें। शहर के मौलाना आजाद रोड, जहांगीर चौक, जीपीओ रोड पोलोव्यू, डलगेट व अन्य इलाकों की सड़कों, चौराहों व नुक्कड़ की दीवारों पर चित्रकारी के माध्यम से यहा की कला व संस्कृति को दर्शाया जा रहा है। 35 सदस्यों की टीम कर रही चित्रकारी
इस काम की जिम्मेदारी केलिस्टो आर्ट एंड कल्चर के नामी युवा चित्रकारों के समूह को सौंपी गई हैं। 35 सदस्यों वाली इस टीम में अधिकतर युवा विभिन्न आर्ट कालेजों से संबंधित हैं। समूह के संचालक जहूर कश्मीरी ने कहा, हमें फिलहाल शहर के लालचौक व इसके इर्द-गिर्द के इलाकों की सड़कों, नुक्कड़ व चौराहों की दीवारों पर यहा की कला, संस्कृति से संबंधित चित्रकारी को कहा गया है। हम इन दीवारों पर विभिन्न विषयों के जरिए अपनी कला व संस्कृति को दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं। खासकर उन वस्तुओं को जिनका चलन पहले यहां था, लेकिन आधुनिकता के दौर में खत्म हो गया। जहूर ने कहा हमने एक दीवार पर यहा के एक नुक्कड़ नाटक भाडपाथर जिसे विशेष कलाकार खेलते थे, को उतारा है। साथ ही कश्मीरी संगीत रोफ जिसे शादी-ब्याह व तीज-त्योहारों पर यहा की महिलाएं गाया करती थीं, की भी चित्रकारी की है। एक दीवार पर यहा इस्तेमाल होने वाली विशेष वस्तुओं जैसे समावार (नमकीन चाय बनाने के लिए ताबे का एक विशेष बर्तन), कागड़ी (सर्दी में ठंड से बचाने वाली कश्मीरी अंगीठी) व इस तरह की दूसरी चीजें जो आजकल मुश्किल से ही नजर आती हैं, को दर्शाया है। जहूर ने कहा, इसी तरह हम अलग-अलग दीवारों से अलग-अलग विषयों के माध्यम से यहा की कला व संस्कृति, हस्तकला, हस्तशिल्प को दर्शा रहे हैं, ताकि बाहर से आने वाले मेहमान हमारी सभ्यता के बारे में सब कुछ जान सकें। जहूर के अनुसार एक दीवार पर चित्रकारी करने में कितना समय लगता है, यह इस बात पर निर्भर है कि इस पर किस तरह की चित्रकारी करनी है। दीवार कितनी बड़ी है। पहले चरण में लालचौक के इर्द-गिर्द ही हो रहा काम