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कश्मीर के सैदीवारा में कचरे को सोने में बदल चलाया स्वच्छता अभियान, पर्यटक भी होने लगे आकर्षित

यूं तो कश्मीर धरती का स्वर्ग कहा जाता है। लेकिन बढ़ता कचरे का ढेर और प्लास्टिक एक बड़ी समस्या है। गंदगी ने यहां के स्थानीय लोगों को गरीबी बेरोजगारी और बीमारी बांटनी शुरू कर दी थी। जिसके बाद चार वर्ष पूर्व तत्कालीन सरपंच फारूक अहमद गनई ने दूसरों को नसीहत देने से पहले खुद कचरा उठाने का फैसला किया और एक मुहिम शुरू की।

By naveen sharma Edited By: Prince Sharma Updated: Thu, 04 Jul 2024 08:26 PM (IST)
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सैदीवारा पंचायत के पूर्व सरपंच एडवोकेट फारूक अहमद गनई कचरा हटाओ अभियान के दौरान स्कूली छात्रों के साथ

नवीन नवाज, श्रीनगर। दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित सैदीवारा कभी ट्रेकरों और सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र होता था।

बेरीनाग जाने वाले पर्यटक भी यहां रुकना पसंद करते थे, लेकिन कचरे के फैलते ढेर ने जहां सैदीवारा से पर्यटकों को दूर कर दिया, वहीं स्थानीय लोगों को गरीबी, बेरोजगारी और बीमारी बांटनी शुरू कर दी। ऐसे में चार वर्ष पूर्व तत्कालीन सरपंच फारूक अहमद गनई ने दूसरों को नसीहत देने से पहले खुद कचरा उठाने का फैसला किया।

इसके साथ ही उन्होंने कचरा लाओ सोना ले जाओ नाम से एक अभियान भी शुरू किया था। यह अभियान जन आंदोलन बना और आज दक्षिण कश्मीर की सैदीवारा पंचायत प्लास्टिक और कचरा मुक्त होकर एक बार फिर पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करने लगी है। यह जनांदोलन सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि दक्षिण भारत में तेलंगाना राज्य तक भी पहुंच गया है। 

दैनिक जागरण से बातचीत में फारूक अहमद गनई ने कहा कि यह धरती हमारा आखिरी और असली बिछौना है। हम कैसे इसे कचरे का ढेर बना रहने दें।

हमारे गांव के पास से झेलम की सहायक नदी गुजरती है, जो गंदा नाल बन गई थी। आज यह नदी सवाल करती है कि कोई मुझे साफ क्यों नहीं करता? इसलिए मैंने अभियान शुरू किया कि कचरा फेंके नहीं, उससे कमाएं। यही सोचकर मैंने पॉलीथिन का कचरा जमा करने वालों को सोने का सिक्का देने का फैसला किया।

अब यहां कोई कचरा नहीं फैलाता है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हमारी पंचायत इस प्रदेश की पहली पंचायत होगी, जहां हमने घर-घर से शुल्क जमा कर सफाई साथियों को तैनात किया। 

एनजीओ सोशल रिकंस्ट्रक्शन सेंटर कश्मीर के संचालक एडवोकेट फारूक ने कहा कि कचरे से कमाई की प्रेरणा मुझे मेरी पत्नी से मिली। एक दिन मैं कचरा जमा कर रहा था तो मेरी बीबी ने मुझे गत्ता, लोहा और प्लास्टिक अलग-अलग करने को कहा। उसने कहा कि इसे कबाड़ी को बेचेंगे।

मैंने यह बात अपने साथियों से की और कहा कि वह घर-घर जाकर बताएं कि कचरा फेंकने से पहले वह देखें कि किसे बेचा जा सकता है और किसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका भी हमें लाभ हुआ और लोग कचरे को घर में ही छांटने लगे।

क्या है पॉलीथिन लाओ-सोना पाओ योजना 

पॉलीथिन लाओ-सोना पाओ, योजना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा प्लास्टिक का कचरा सबसे ज्यादा निकलता है और औरतों को अपने बच्चों के बाद सिर्फ सोना प्यारा होता है। मैंने इस विषय में जिला उपायुक्त से बातचीत की और उन्होंने कहा कि विचार अच्छा है।

सात जनवरी को मैंने इस पर काम करना शुरू किया, शिविर आयोजित किए और अपने गांव के आसपास के एक किमी के इलाके में 10 जगह पर सफाई कराई। नदी को भी साफ किया। स्थानीय युवा क्लब, आकाफ समिति और मजहबी नेताओं को हमने इसमें जोड़ा।

हमने 20 क्विंटल प्लास्टिक कचरा लाने वाले को सम्मानित करने व सोने का सिक्का देने का फैसला किया। सोने के सिक्के का वजन नहीं उसके पीछे की भावना ज्यादा अहम है। इसके अलावा हम पदक और ट्रॉफियां भी दे रहे हैं।

सोने का पहला सिक्का हमारे ही गांव के शौकत हुसैन और दूसरा गवास पंचायत के पूर्व डिप्टी सरपंच शाहिद हुसैन को मिला है। हमने नकद पुरस्कार भी बांटे हैं।   

पत्नी ने दिया सिक्के के लिए सोना

उन्होंने कहा कि मेरी पत्नी ने जब सुना कि मैंने सोने का सिक्का देने का एलान किया है तो उसने ही पहले दो सिक्कों के लिए सोना मुझे दिया। शबनम फारूक ने कहा कि यह सोना मुझे तो हक-ए-मेहर के समय मेरे ही पति ने मुझे दिया है। वह अच्छा काम कर रहे हैं, तो मेरा भी कुछ फर्ज बनता है।

प्लास्टिक के कचरे को ठिकाने लगाने के लिए जिला प्रशासन ने बॉलिंग मशीन सादीपोरा पंचायत को उपलब्ध कराई है। फारूक अहमद ने कहा कि हम एक ही जगह प्लास्टिक कचरा जमा करते हैं और उसे छांट कर उसके अलग-अलग बैग बनाकर, रिसाइकलिंग के लिए भेजते हैं। इससे होने वाली कमाई गांव की भलाई पर ही खर्च होती है।  

मेरी पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक विचारधारा कहीं मेल नहीं खाती। इसके बावजूद आम लोगों के कल्याण के प्रति जो उनका जज्बा है। उससे ही मुझे यहां काम करने की प्रेरणा मिलती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आधुनिक भारत के सबसे बड़े सोशल इंजीनियर हैं। 

 -फारूक अहमद गनई, पूर्व सरपंच  

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