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कश्‍मीरी सेब की मिठास पर भारी न पड़ जाए माहौल की खटास, न मजदूर मिल रहे और न ट्रक

Kashmiri Apple. जम्मू-कश्मीर में इस बार हालात की खटास यहां के फल उत्‍पादकों व व्‍यापारियों का मन ही कसैला कर रही है।

By Sachin MishraEdited By: Updated: Fri, 23 Aug 2019 04:12 PM (IST)
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कश्‍मीरी सेब की मिठास पर भारी न पड़ जाए माहौल की खटास, न मजदूर मिल रहे और न ट्रक
श्रीनगर, नवीन नवाज। अगस्‍त के आरंभ के साथ कश्‍मीर का रसीला सेब देश ही नहीं दुनिया के बाजार में अपनी मिठास बिखेरने लगता है। सेब यहां की पहचान और अर्थव्‍यवस्‍था की मजबूत रीढ़ भी। पर इस बार हालात की खटास यहां के फल उत्‍पादकों व व्‍यापारियों का मन ही कसैला कर रही है। पेड़ों से सेब उतारने के लिए न पर्याप्त श्रमिक मिल रहे हैं और न तैयार फसल को देश के विभिन्न मंडियों में पहुंचाने के लिए ट्रक। अगर ट्रक मिलता है तो भाड़ा पसीना निकाल रहा है।

प्रशासन इस चिंता को समझता है और इसके लिए बकायदा कई प्रबंध किए गए हैं, लेकिन सीजन की शुरुआत में ही वादी के सेब व्यापार को 150 करोड़ के नुकसान का दावा किया जा रहा है। हालत यह है कि स्थानीय बाजार में 70 से 100 रुपये किलो बिकने वाला सेब इस बार 50 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। बाहर जाने वाले ट्रकों की संख्या भी 10 से 20 फीसद तक घट चुकी है। 

कश्मीर में 18 लाख टन सेब पैदा होता है और यह पूरे देश की कुल पैदावार का 75 फीसद है। जवाहर सुरंग से लेकर उत्तरी कश्मीर में एलओसी के साथ सटे कुपवाड़ा तक वादी में सेब के बाग हैं। सोपोर, बारामुला, पुलवामा, शोपियां व कुलगाम सेब उत्‍पादन के बड़े केंद्र हैं। अगस्त के दूसरे सप्ताह से सेब वादी की मंडियों से देश और अन्‍य देशों की मंडियों में पहुंचना शुरू हो जाता है, लेकिन इस बार वादी की मंडियों में रौनक गायब है। दिसंबर की शुरुआत तक वादी से सेब निर्यात होता है।

बटमालू मंडी के फल व्यापारी मोहम्मद युसुफ ने कहा कि उसने हारवन में 122 कनाल के पांच बाग 15 लाख की लीज पर लिए थे। सेब तैयार हैं, लेकिन मजदूर नहीं मिल रहे। सेब उतारने के लिए कुपवाड़ा, सोपोर व दक्षिण कश्मीर से आने वाले स्थानीय किसान और श्रमिक भी नहीं आ रहे हैं। इक्‍का-दुक्‍का मिलता है तो उसने दिहाड़ी बढ़ा दी है। ज्यादातर सेब पेड़ पर ही खराब हो गए हैं नीचे गिरने वाला सेब निर्यात के काबिल नहीं होता।

युसुफ ने कहा कि मैं अभी तक दो ट्रक फल ही किसी तरह दिल्ली तक पहुंचा पाया हूं। ट्रक का किराया भी पिछले साल की तुलना में 30 फीसद ज्यादा है। स्थानीय ट्रक चालक मौजूदा हालात में बाहर जाने से बच रहा है और दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के ट्रक संचालक यहां कम ही आ रहे हैं।

सेबों की टोकरी के नाम से मशहूर सोपोर से मंडलायुक्त (डिवकॉम) कश्मीर बसीर अहमद खान से मिलने आए फल उत्पादक रियाज मकरु ने कहा सोपोर में फलमंडी बंद पड़ी है। वहां कोई व्यापारी हमारा माल लेने नहीं आ रहा है और बाहर भेजने के लिए ट्रक नहीं मिल रहे हैं। इसलिए आज हम सात लोग डिवकॉम से मिलने आए हैं, ताकि हमारा कोई बंदोबस्त करें। हमें पता चला है कि शोपियां की मंडी में भी कारोबार नहीं हो रहा है। हम चाहते हैं कि वह सेबों के ट्रकों की आवाजाही को पूरी तरह सुरक्षित बनाने और ट्रकों का भाड़ा कम कराने में हमारी मदद करें। सेब के ट्रकों को अनावश्यक रुप से कहीं नहीं रोका जाए।

रियाज मकरु ने कहा कि सोपोर में कोलकाता के व्यापारी ही अधिक आते थे, लेकिन इस बार नहीं आए। पहले व्यापारी हमारे बागों में मई-जून महीने में आकर ही सौदा तय करते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। दिल्ली से भी काेई नहीं आया। हरियाणा और दिल्ली की मंडियों में हम खुद ही सेब पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन न मजदूर मिल पा रहे हैं और न ट्रक। मजबूरी में हमारे कई साथियों ने अब स्थानीय बाजार में सेब बेचना शुरू कर दिया है, लेकिन यहां पर्याप्त दाम नहीं मिल रहा। अभी तक के अनुमान के मुताबिक, अब तक कश्मीर में सेब उत्‍पादकों को कम से कम 150 करोड़ का नुकसान हो चुका है।

श्रीनगर से करीब 20 किलोमीटर दूर खंदा में अपने बाग में खुले सेबों को एक ऑटो रिक्शा भरवा रहे ताहिर ने कहा कि मुझे लगता है कि इस बार कश्मीर में वही सेब बागवान बचेगा, जिसकी फसल अक्टूबर में तैयार होगी। पिछले साल मैंने अगस्त में ही छह ट्रक आजादपुर मंडी में भिजवाए थे लेकिन इस बार एक भी ट्रक नहीं भेज पाया हूं। मेरे पड़ोसी गुलाम मोहम्मद का भी यही हाल है। हमारा सेब यहीं बाग में न सड़ जाए, इसलिए अब लोकल बाजार में बेच रहा हूं।

परिंपोरा मंडी में खड़े ट्रक चालक शरीफ मोहम्मद ने अगस्त में सेब का सीजन शुरू होने पर मैं सप्ताह में कम से कम दो चक्कर आजादपुर मंडी दिल्ली से शोपियां या फिर यहीं परिंपोरा मंडी के लगाता था। वादी के माहौल को देखते हुए मैंने परिंपोरा से ही माल उठाना बेहतर समझा है। यहां इस बार बहुत कम ट्रक हैं। इससे हमारा किराया बढ़ गया है। कई बार इस मामले पर यहां लोगों से मनमुटाव भी हो जाता है। आजकल यहां मुश्किल से 100-120 ट्रक ही निकल रहे हैं। अगर हालात सही होते तो रोजाना यहां से 1100-1200 ट्रक निकलते।

डिवकॉम मीर अहमद खान ने कहा कि हमने बागवानों और फल व्यापारियों की मुश्किलों का संज्ञान लिया है। मुख्य सचिव ने भी इस बारे में एक बैठक बुलाई है। फिलहाल, नुकसान का पूरा ब्यौरा नहीं है। फसल कितनी पैदा हुई यह तो सीजन की समाप्ति पर ही सही पता चलेगा। अभी तो शुरुआत है। कई बागों में अभी सेब तैयार नहीं हुआ है। हमने बागवानी अधिकारियों के साथ बैठक कर सभी मंडियों को पूरी तरह क्रियाशील बनाने का निर्देश दिया है।

इसके अलावा ट्रक ऑपरेटरों के साथ भी बैठक कर रहे हैं, ताकि सेब निर्यात के लिए ट्रकों की उपलब्धता को आसान बनाया जा सके। माल-भाड़े का जो मुद्दे को भी हल करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा हाईवे पर फ्रूट से लदे ट्रकों को अनावश्यक न रोके जाने के आवश्यक कदम उठाए गए हैं। हमने सोपोर, श्रीनगर, शोपियां, कुलगाम, बीजबेहाड़ा समेत सभी प्रमुख फलमंडियों के व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधियों से भी बैठक कर उनकी दिक्कतों का संज्ञान लिया है।

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