JK News: केंद्र को साथ लेकर चलना उमर अब्दुल्ला की होगी मजबूरी, जम्मू और कश्मीर में बनाए रखनी होगी विकास की रफ्तार
केंद्रशासित जम्मू-कश्मीर में बड़ी शक्तियां अब भी उपराज्यपाल के पास हैं और उमर कभी नहीं चाहेंगे कि दिल्ली की तरह वह उपराज्यपाल से टकराव मोल लें। अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर इसका असर जम्मू-कश्मीर में विकास की रफ्तार पर पड़ेगा। यही वजह है कि वह बार-बार केंद्र के साथ मिलकर प्रदेश में लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप काम करने की बात कर रहे हैं।
नवीन नवाज, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में बुधवार को सत्तासीन हुई उमर अब्दुल्ला की सरकार के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। उमर को चुनाव के दौरान जनता से किए वादों को तो पूरा करने के साथ ही जम्मू और कश्मीर में संतुलन साधने और विकास की रफ्तार बनाए रखने की चुनौती से पार पाना होगा।
गठबंधन के सहयोगियों को साथ लेकर चलने के साथ ही विवादास्पद मुद्दों पर राजभवन और केंद्र से टकराव को छोड़ तालमेल बनाना होगा। शपथ ग्रहण समारोह में स्पष्ट हो गया कि उमर ने क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए जम्मू से निर्दलीय समेत तीन विधायकों को मत्रिमंडल में शामिल किया। इनमें दो हिंदू है।
जम्मू-कश्मीर में बड़ी शक्तियां अब भी उपराज्यपाल के पास
केंद्रशासित जम्मू-कश्मीर में बड़ी शक्तियां अब भी उपराज्यपाल के पास हैं और उमर कभी नहीं चाहेंगे कि दिल्ली की तरह वह उपराज्यपाल से टकराव मोल लें। अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर इसका असर जम्मू-कश्मीर में विकास की रफ्तार पर पड़ेगा। यही वजह है कि वह बार-बार केंद्र के साथ मिलकर प्रदेश में लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप काम करने की बात कर रहे हैं।
उमर के शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा का कोई बड़ा चेहरा या केंद्र सरकार का प्रतिनिधि नजर नहीं आया। सिर्फ इंडी गठबंधन में शामिल दलों के दिग्गज श्रीनगर पहुंचे थे। क्षेत्रीय संतुलन साधने, गुज्जर-बक्करवाल समुदाय को साथ बनाए रखने और जम्मू में उमर ने मास्टर स्ट्रोक खेल जहां सुरेंद्र चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाया है।
कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर कही ये बात
निर्दलीय सतीश शर्मा को मंत्री बनाकर जम्मू के हिंदू बहुल क्षेत्रों में स्थिति मजबूत बनाने का प्रयास किया है। सतीश दिवंगत पूर्व कांग्रेस सांसद मदल लाल शर्मा के पुत्र हैं। जावेद राणा के जरिए राजौरी-पुंछ से लेकर कश्मीर के गुज्जर-बक्करवाल समुदाय को साधा है। कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि रोजगार के नए अवसर जुटाना, स्वरोजगार को बढ़ावा देना, औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहित करना, नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। दस्तकारी क्षेत्र को जो पांच से छह लाख लोगों को रोजगार देने में समर्थ है, उसे पटरी पर लाना होगा। सैयद अमजद शाह ने कहा कि उमर ने मंत्रिमंडल को तय करने मे जो निर्णय लिए हैं,वह उनकी राजनीतिक परिपक्वता को दर्शा रहे हैं।
नई सरकार.. नई चुनौतियां
-थमे न विकास का पहिया, तेज हो काम की रफ्तार
-कश्मीर के साथ जम्मू से भावनात्मक जुड़ाव भी अनिवार्य
-टकराव छोड़ केंद्र के साथ मिलकर प्रदेश को आगे बढ़ाने की चुनौती
-आतंक का समूल नाश का अभियान थमना नहीं चाहिए
-चुनावी घोषणाएं भी बढ़ा रही हैं अपेक्षाओं का बोझ इनसे भी बचना होगा
उमर के लिए बड़ी चुनौती पांच अगस्त 2019 के केंद्र के फैसले के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाना है। उन पर यह प्रस्ताव लाने का दबाव विधानसभा सत्र शुरू होने तक बढ़ेगा। अगर उमर यह प्रस्ताव लाएंगे तो केंद्र से टकराव बढ़ेगा। आतंकरोधी अभियानों में राजनीतिक हस्तक्षेप से बचते हुए आगे बढ़ना होगा।
वित्तीय ढांचे को बेहतर बनाने की चुनौती
पांच वर्ष के दौरान 90 हजार करोड़ के निवेश के प्रस्ताव मिले हैं, उन्हें धरातल पर उतारने की जिम्मेदारी उमर की है। अगर वह क्षेत्रीय और बाहरी का विवाद पैदा करेंगे तो निवेश की गाड़ी पटरी से उतरेगी। वित्तीय ढांचे को बेहतर बनाने की चुनौती है। वर्ष 2024-25 के बजट में केंद्र ने पूंजीगत व्यय के लिए 36094 करोड़ रुपये और राजस्व व्यय के लिए 81466 करोड़ आबंटित किए हैं। नई सरकार के लिए विकास पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी होगा।