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CM बनते ही उमर अब्दुल्ला के सामने ये 5 बड़ी चुनौतियां; आतंकवाद पर कसनी होगी लगाम, केंद्र से तालमेल भी जरूरी

जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बन गई है। उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) के नेतृत्व वाली इस सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं जिनमें आतंकवाद का मुकाबला विकास को गति देना केंद्र के साथ संबंधों को संतुलित करना और जम्मू-कश्मीर के दोनों संभागों के लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करना शामिल है। अब देखना होगा कि उमर अब्दुल्ला इन चुनौतियां का सामना कैसे करते हैं।

By Jagran News Edited By: Nitish Kumar Kushwaha Updated: Thu, 17 Oct 2024 12:26 PM (IST)
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मुख्यमंत्री बनने के बाद उमर अब्दुल्ला के सामने हैं कई चुनौतियां।

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में बुधवार को अंतत: नेकां सरकार सत्तासीन हो गई। तीन दशक में नेकां अब तक तक सबसे बड़ा जनसमर्थन जुटाने में सफल रही। दस वर्ष बाद अब्दुल्ला परिवार की सत्ता में वापसी हुई। ऐसे में भले ही बहुमत की चिंता उमर अब्दुल्ला को न हो पर नई सरकार के समक्ष चुनौतियों का भी पहाड़ है।

एक तरफ चुनाव में उठाए भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दों को आगे बढ़ाने की चुनौती है और वहीं केंद्रशासित प्रदेश में उपराज्यपाल प्रशासन और केंद्र को साथ में लेकर चलना आसान नहीं है। पिछले पांच साल से चल रही तेज विकास की गाड़ी पर ब्रेक न लग जाए, नई सरकार को यह सबसे पहले सुनिश्चित करना होगा।

चुनौती नंबर-1:

जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य बनाना

सबको लेकर चलना होगा साथ

विधानसभा चुनाव में एक ओर कश्मीर में 370 और अन्य भावनात्मक मुद्दों की गूंज सुनाई दी थी और जम्मू अपने हक की लड़ाई बता रहा था। इन मुद्दों पर कश्मीर में नेकां शानदार प्रदर्शन में सफल रही पर जम्मू में राजौरी, पुंछ और रामबन से बाहर गठबंधन का एक भी प्रत्याशी नहीं जीत पाया।

ऐसे में जम्मू के लोगों की अपेक्षाओं और उनके मुद्दों पर उमर अब्दुल्ला और उनकी सरकार को काफी कुछ मंथन करना होगा, ताकि पूरे केंद्रशासित प्रदेश को साथ लेकर चला जा सके।

चुनौती नंबर-2:

जम्मू पर फोकस जरूरी

जम्मू संभाग को उपमुख्यमंत्री का पद देकर और तीन मंत्री बनाकर भले ही उमर ने इस खाई को पाटने का प्रयास किया हो और आम जनमानस को साधना उनके लिए आसान नहीं होगा। इसके अलावा विकास योजनाओं के लिए जम्मू-कश्मीर केंद्र पर निरंतर आश्रित है और ऐसे में वह केंद्र से सीधी लड़ाई लड़ने के मूड में नहीं दिखाई देते और साथ मिलकर चलने का वादा करते हैं।

आतंक के खिलाफ जारी लड़ाई जारी रहे, साथ ही आतंक का समूल नाश किया जा सके। ऐसे में अगर पत्थरबाजों और अलगाववादियों की रिहाई के वादे को पूरा करने का प्रयास करती है, तो लोगों को आशंका है कि जम्मू-कश्मीर में पुराने दिन लौट सकते हैं। कश्मीर में एक बड़ा खेमा इस विषय को तूल देने का प्रयास अभी से करने में लगा है।

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चुनौती नंबर-3:

केंद्र के साथ मिलाना होगा तालमेल

उमर के लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती राज्य का दर्जा बहाली है और पांच अगस्त 2019 के केंद्र के फैसले के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव लाना है। अगर उमर यह प्रस्ताव लाएंगे तो केंद्र से टकराव बढ़ेगा। इन सभी के बीच एक और बड़ी चुनौती होगी, औद्योगिक निवेश और रोजगार। पांच वर्ष के दौरान 90 हजार करोड़ के निवेश के प्रस्ताव मिले हैं, उन्हें धरातल पर उतारने की जिम्मेदारी उमर की है।

अगर जमीन आवंटन जैसे मुद्दों पर विवाद बढ़े, तो निवेश की गाड़ी पटरी से उतरेगी। प्रदेश के वित्तीय ढांचे को बेहतर बनाने की चुनौती है।

चुनौती नंबर-4:

10 साल बाद पटरी पर वापस आना होगा

कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि रोजगार के नए अवसर जुटाना, स्वरोजगार को बढ़ावा देना, औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहित करना, नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। दस्तकारी क्षेत्र को पांच से छह लाख लोगों को रोजगार देने में समर्थ है। ऐसे में उसे पटरी पर लाना होगा। कश्मीर मामलों के जानकार सैयद अमजद शाह ने कहा कि उमर ने मंत्रिमंडल को तय करने में जो निर्णय लिए हैं, वह उनकी राजनीतिक परिपक्वता को दर्शा रहे हैं।

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