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Jammu Kashmir Day : जम्मू कश्मीर में कभी कागजों में सीमित था लोकतंत्र, अब 30 हजार प्रहरी

अनुच्छेद 370 को हटाए जाने और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद पहली बार जम्‍मू कश्‍मीर में बदलाव दिख रहा है। 30 हजार से अधिक प्रतिनिधि लोकतंत्र के पहरेदार बन गांांव-गांव सरकार की विकास योजनाओं को पहुंचा रहे हैं।

By naveen sharmaEdited By: Rahul SharmaUpdated: Mon, 31 Oct 2022 12:30 AM (IST)
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जम्मू कश्मीर में त्रि-स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था बहाल हो चुकी है।

नवीन नवाज, श्रीनगर : कभी जम्‍मू कश्‍मीर में लोकतंत्र कागजों तक सिमटा दिखता था। सत्‍ता और सियासत कुछ परिवारों तक सिमटी थी। अब पहली बार जम्मू कश्मीर में त्रि-स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था पूरी तरह बहाल हो चुकी है। अब 30 हजार से अधिक लोकतंत्र के प्रहरी गांव-गांव में लोकतंत्र की अलख जगा रहे हैं।

स्वतंत्रता के बाद यह पहला अवसर है जब पंच, सरपंच, ब्लाक विकास परिषद और जिला विकास परिषद पूरी तरह से प्रभावी है। यह सिर्फ अनुच्छेद 370 को हटाए जाने और 31 अक्टूबर, 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के कारण ही संभव हुआ है। पहली बार पंचायती राज व्यवस्था कागजों से बाहर निकलकर जमीनी स्तर पर अपना प्रभाव दिखा रही है। हालांकि जम्मू कश्मीर में पहले भी पंचायत चुनाव हुए हैं, लेकिन कभी भी ब्लाक या जिला विकास परिषद का गठन नहीं हुआ था और न कभी पंच-सरपंचों को पूरी तरह सशक्त बनाने का प्रयास हुआ था।

ग्राम स्वराज, किसान क्रेडिट कार्ड, सायल हेल्थ कार्ड, पीएम किसान फसल बीमा योजना, आधार, जनधन योजना, अटल पेंशन योजना, समग्र शिक्षा योजना, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड पर तेजी से काम चल रहा है। इसके अलावा हर गांव हरियाली, माई स्कूल माई प्राइड, जल जीवन मिशन, यूथ क्लब, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, भारत नेट, रूरल हाट, वृद्धावस्था पेंशन, हर घर बिजली, उज्जवला और ग्रामीण आजीविका मिशन, ग्रामीण पर्यटन समेत विभिन्न योजनाएं भी चल रही हैं, जो ग्रामीण परिदृश्य की तस्वीर बदल रही हैं। इन योजनाओं को कार्यान्वित करने में पंच-सरपंच ही मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। वही इन योजनाओं के लाभान्वितों को चिह्नित कर रहे हैं। पहले ग्रामीण विकास की योजनाओं को कार्यान्वित करने में राजनीतिक प्रभाव और नौकरशाही हावी रहती थी।

जम्मू कश्मीर में वर्ष 1978 के बाद पहली वार वर्ष 2001-2002 में पंचायत चुनाव हुए थे। उस समय जम्मू कश्मीर में डा. फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस की सरकार थी। इसके बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में सत्तासीन हुई पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार के समय में सभी पंचायतों को भंग कर दिया गया था। इसके बाद वर्ष 2011 में उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री काल में पंचायत चुनाव हुए थे। इसके बाद वर्ष 2016 में पंचायत चुनाव होने थे, लेकिन तत्कालीन पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार ने इन चुनावों को स्थगित रखा। पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के भंग होने के बाद दिसंबर 2018 में पंचायत चुनाव कराए गए। जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद ही पहली बार ब्लाक विकास परिषद के चेयरमैन चुने गए हैं और नवंबर-दिसंबर 2020 में प्रदेश के सभी 20 जिलों में जिला विकास परिषद के चुनाव हुए। प्रत्येक जिले में जिला विकास परिषद के 14 सदस्यों को चुना गया।

पंच-सरपंचों को दिए गए पूरे अधिकार :

पहले जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम और उसके बाद जम्मू कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित होने पर केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को पंचायत राज संस्थानों और संबंधित योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए करीब दो हजार करोड़ की राशि प्रदान की है। प्रत्येक पंचायत को उसके क्षेत्रफल और आबादी के आधार पर विकास राशि प्रदान की गई हैं, जो 80 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक है। स्थानीय योजनाओं की रूप रेखा तैयार करने से लेकर उन्हें कार्यान्वित करने में पंच सरपंचों को पूरी तरह भागीदार बनाया गया है।

ग्रामीण लोकतंत्र को मजबूत बनाने और निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनके सभी संवैधानिक अधिकार प्रदान करने के लिए प्रदेश सरकार ने स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर पंच-सरपंचों को अपने-अपने कार्याधिकार क्षेत्र में राष्ट्रध्वज फहराने का पूरा अधिकार दिया है। पंचायतों को अपने-अपने कार्याधिकार क्षेत्र में सामाजिक लेखा परीक्षण, स्थानीय लोगों की शिकायतों का संज्ञान लेने व उन्हें हल करने और अपने लिए संसाधन जुटाने का पूरा अधिकार दिया गया है। पंचायत लेखा सहायक पंचायत सचिव भी नियुक्त किए गए हैं।

अब वरिष्ठ नौकरशाह किसी पंचायत में बिताते एक-दो रात :

प्रत्येक पंचायत प्रतिनिधि को आतंकी हिंसा में मारे जाने पर 25 लाख रुपये का बीमा लाभ प्रदान किया जाता है। बीते तीन वर्ष में लगभग 200 पंचायत घरों के निर्माण को मंजूरी मिली है और इनमें से अधिकांश तैयार हो चुके हैं। इनके अलावा 200 पंचायत घरों की मरम्मत की गई है। ग्रामीणों को उनके द्वार पर ही शासन उपलब्ध कराने और विकास के प्रति उनकी आकांक्षाओं का जायजा लेने के लिए गांव की ओर कार्यक्रम भी शुरू किया गया है, जिसका चौथा चरण शुरू हो चुका है।

इस कार्यक्रम के तहत वरिष्ठ नौकरशाह एक या दो रात किसी पंचायत में बिताते हैं, स्थानीय लोगों से मिलते हैं और विकास योजनाओं का जायजा लेते हैं। वह ग्रामीणों द्वारा प्राथमिकता के आधार पर चिन्हित किए गए विकास कार्य भी शुरू कराते हैं। पहले तीन चरणों में करीब 19 हजार लोगों को 372 करोड़ रुपये की राशि वित्तीय सहायता और ऋण के रूप में प्रदान की जा चुकी है। पंचायत प्रतिनिधियों के जरिए करीब 15200 उद्यमियों (जिनमें 4600 महिला उद्यमी) को गांव की ओर कार्यक्रम के तहत ही ऋण प्रदान किया गया है। प्रत्येक पंचायत में खेल का मैदान है।

अब चेयरमैन सीधे केंद्रीय मंत्रियों के संपर्क में :

जिला विकास परिषद बारामुला की अध्यक्ष सफीना बेग ने कहा कि पहले यहां कभी किसी ने जिला विकास परिषद का नाम नहीं सुना था, आज जिला विकास परिषद के सभी सदस्य, ब्लाक विकास परिषद के चेयरमैन और पंच-सरपंच सीधे केंद्रीय मंत्रियों के साथ संपर्क में रहते हुए अपने-अपने क्षेत्र की विकास योजनाओं का खाका बुनते हैं और उन्हें लागू करते हैं। पहले यह काम वातानुकूलित कमरों में बैठे चंद नौकरशाह और कुछ राजनीतिक लोग अपने वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए करते थे, जिससे ग्रामीण इलाकों में विकास कभी जमीन पर नजर नहीं आता था। आज ग्रामीण खुद को पहले से ज्यादा सशक्त महसूस करते हैं।