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जागरण विशेष : कोयले के कचरे से तैयार हुआ लाभ का गणित, बोकारो स्टील प्लांट ने खोजी तकनीक

पर्यावरण के लिए खतरनाक अपशिष्ट डिकैंटर टार स्लज को पहले भूमि के नीचे दबाया जाता था। अब इसे कोयले के साथ मिलाकर कोक बनाया जा रहा है। यह लोहा गलाने में काम आता है। बोकारो स्टील प्लांट ने यह तकनीक ईजाद की है।

By Jagran NewsEdited By: Yogesh SahuUpdated: Wed, 14 Dec 2022 06:37 PM (IST)
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कोयले के कचरे से तैयार हुआ लाभ का गणित, बोकारो स्टील प्लांट ने खोजी तकनीक
बोकारो, बीके पाण्डेय। बोकारो स्टील प्लांट ने अपने यहां से निकलने वाले खतरनाक अपशिष्ट डिकैंटर टार स्लज को उपयोगी बना लिया है। एक दौर था कि इसके निस्तारण में प्रबंधन को बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती थी, आज यही कचरा कोक अवन में कोयले के साथ विशेष तकनीक से मिलाकर प्रयोग किया जा रहा है। नतीजा कोयले की खपत में भी कमी आई है, एक साल में करीब छह करोड़ रुपये से अधिक का फायदा कंपनी को हुआ है। साथ ही अपशिष्ट के सटीक निस्तारण से पर्यावरण का संरक्षण भी हो रहा है।

दरअसल, लोहा गलाने के लिए कोक का प्रयोग होता है, जो कोयले से बनता है। डिकैंटर टार स्लज कोक अवन बैटरी में कार्बोनाइजेशन के दौरान बनी कोक ओवन गैस से टार को अलग करने की प्रक्रिया में निकलता है। कोयले से कोक बनाने के दौरान निकला यह अपशिष्ट बहुत खतरनाक प्रदूषक है, इसलिए इसे विशेष प्रकार की संरचनाएं (पिट) बनाकर जमीन के अंदर दबा दिया जाता था।

इनके भर जाने पर नई संरचनाएं बनाने में काफी खर्च होता था। ऐसे में इसके सटीक प्रबंधन पर मंथन किया गया। कोक अवन बाई प्रोडेक्ट प्लांट के वरीय महाप्रबंधक राकेश कुमार, सहायक महाप्रबंधक आरएन प्रधान, पर्यावरण विभाग के महाप्रबंधक नवीन प्रकाश श्रीवास्तव, वरीय प्रबंधक अशोक कुमार गुप्ता ने डिकैंटर टार स्लज के रासायनिक गुणों का अध्ययन किया। इस अपशिष्ट में तारकोल व कोक चूरा होता है।

पता लगा कि इसमें भी काफी ऊष्मा होती है। इसे कोयले में मिलाकर उसे प्राप्त किया जा सकता है। समस्या ये थी कि यह गीला चिपचिपा और सेमी सॉलिड है। इसलिए कोयले में समान अनुपात में मिलाने की कोशिश हुई। कई प्रयोगों के बाद तकनीक तैयार हुई। फिर क्या था, जो प्लांट के लिए अभिशाप था, वही वरदान बन गया। यह भी कोयले के साथ मिलकर कोक बन ऊर्जा देने लगा। बोकारो स्टील सेल का पहला प्लांट है, जहां इसका उपयोग हो रहा है।

अन्य स्टील प्लांट में भी हो सकता प्रयोग

बोकारो ने देश के अन्य स्टील प्लांट को भी इस तकनीक से एक राह दिखाई है। जिन प्लांट में यह अपशिष्ट निकलता है, वहां इसका निस्तारण इस विधि के अनुरूप हो सकता है।

बोकारो स्टील के इंजीनियर पहले भी दिखा चुके हैं कमाल

बोकारो स्टील प्लांट में बीते पांच वर्ष में कई प्रयोग हुए। पहला प्रयोग गंदे पानी के दोबारा उपयोग का था। इसमें कंपनी ने सफलता पाई। इसी प्रकार प्लांट से निकलने वाले स्लैग का उपयोग सड़क और सीमेंट बनाने में किया गया। प्लांट में बेकार पड़े लोहे के सामान से कई उपकरण भी बनाए गए। जो बड़ी-बड़ी मशीनों की मरम्मत में काम आए। इससे भी कंपनी को काफी फायदा हुआ। बोकारो के निदेशक प्रभारी अमरेन्दू प्रकाश भी ऐसी कोशिशों पर अभियंताओं को हर मदद देते हैं। फ्लाई एश के पहाड़ पर यहां खस के पौधे लगाए गए हैं।

खतरनाक अपशिष्ट के निस्तारण को बोकारो स्टील प्रबंधन ने शानदार तकनीक तैयार की। इससे कंपनी को आर्थिक लाभ तो हुआ ही, सबसे बड़ा फायदा पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में हुआ। इस तरह के प्रयास आगे भी चलते रहेंगे। - मणिकांत धान, प्रमुख, संचार बोकारो

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