हालांकि, परिवार के सदस्य को टिकट नहीं मिला तो समरेश सिंह ने अपनी सेहत की बात करते हुए चुनाव से किनारा कर लिया था। इसी बीच उनकी बड़ी बहू डा. परिंदा सिंह कांग्रेस में शामिल हो गईं और जब विधानसभा चुनाव की बारी आई तो छोटी बहू श्वेता सिंह कांग्रेस का टिकट लेकर मैदान में उतर गई।
वर्तमान में समरेश सिंह की दोनों बहुओं के राजनीतिक रंग अलग-अलग हैं। बड़ी बहू डा. परिंदा सिंह भाजपा में हैं। वह समरेश सिंह के शिष्य और धनबाद के भाजपा प्रत्याशी ढुलू महतो संग प्रधानमंत्री मोदी का गुणगान कर रही हैं। वहीं, छोटी बहू श्वेता सिंह कांग्रेस प्रत्याशी अनुपमा सिंह के साथ है।
बाबू जी (स्व. समरेश सिंह ) ने भाजपा को इस क्षेत्र में उन्होंने स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। कोयलांचल की जनता चाहती थी कि वह धनबाद से सांसद बनें, लेकिन भाजपा के कुछ बड़े नेता उनके विरोधी रहे, जिनका खामियाजा चुनाव में उन्हें भुगतना पड़ा। चुनाव में हार और जीत एक अलग पहलु है, लेकिन बोकारो की देवतुल्य जनता ने सहर्ष मुझे अपने सेवा के लिए स्वीकार किया। धनबाद की जनता इस चुनाव में भी यहीं सोचकर फैसला करेगी- श्वेता सिंह, प्रदेश महासचिव
बाबू जी (स्व. समरेश सिंह) जनसंघ के समय से इसी विचारधारा के साथ रहे हैं। उनके समर्थक भी इसी विचारधारा में विश्वास रखते हैं। गांव या शहर जहां भी जा रही हूं। लोगों का भरपूर प्यार मिल रहा है। बाबूजी ने जिस विचारधारा को आगे बढ़ाया था मैं उसके साथ हूं- डा. परिंदा सिंह , नेत्री भाजपा
दोनों के समर्थकों की है अपनी- अपनी दलीलें
जो लोग श्वेता सिंह के साथ हैं, वैसे स्व. समरेश सिंह के समर्थकों का कहना है कि दादा ने भाजपा को यहां खड़ा किया। पर जब दादा के धनबाद से सांसद बनने के बारी आई तो प्रो. रीता वर्मा को टिकट दे दिया।
भाजपा ने दादा के साथ हमेशा धोखा दिया है। इसलिए इस चुनाव में दादा के सारे समर्थक श्वेता सिंह के साथ रहेंगे। वहीं इसके विपरीत डा. परिंदा सिंह के साथ रहने वाले दादा के चाहने वालों का कहना है कि भाजपा को यहां दादा ने स्थापित किया था। ढुल्लू महतो दादा के शिष्य रहे हैं। उन्हें जीत दिलाकर दादा के सपने को पूरा करेंगे।
समरेश सिंह की फाइल फोटो।
सांसद बनना था स्व. समरेश सिंह का सपना
स्व. समरेश सिंह वर्ष 1977 में बोकारो विधानसभा में चुनाव लड़ा और इमामुल हई खान को पराजित कर प्रथम बार विधायक चुने गए। इसके बाद 1985 1990, 2000 और 2009 में बोकारो विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि भाजपा के शुरुआती सदस्यों में से एक स्व. समरेश सिंह सांसद नहीं बन सके।1989 में हुए लोकसभा चुनाव में समरेश सिंह ने धनबाद सीट पर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और मासस के एके राय से मात्र 13 हजार वोटों से हारे। इसके बाद हुए 1991 के चुनाव में भाजपा ने समरेश सिंह को टिकट काट दिया। उनके स्थान पर प्रो. रीता वर्मा को प्रत्याशी बनाया।
1991 में गिरिडीह उप चुनाव में भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया पर वे चुनाव हार गए। 1996 में जनता दल और 2004 के चुनाव में वह निर्दलीय लड़े, लेिकन दोनों चुनावों में हार मिली।
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