मां के विसर्जन की अनोखी परंपरा: सड़क पर लेटकर शरीर के ऊपर से कलश पार करवाते हैं ग्रामीण, सदियों से है इसका चलन
बीते मंगलवार को विजयादशमी के पर्व के साथ ही देवी दुर्गा को विदाई दे दी गई। मां की विदाई की सबकी अपनी अलग रस्म होती है जिनका पालन लोग काफी लंबे समय से करते आ रहे हैं। ठीक इसी तरह से बोकारो के चंदनकियारी में ग्रामीण विसर्जन के रास्ते लेटकर अपने शरीर के ऊपर से कलश को पार करवाते हैं।
संजय झा, चंदनकियारी। विजयादशमी के उपलक्ष्य पर नवरात्र में आराध्य माता देवी दुर्गा की पूजा के उपरांत नवपत्रिका व कलश विसर्जन के दौरान यहां समग्र गांव वासी विसर्जन के रास्ते लेटकर अपने शरीर के ऊपर से कलश को पार करवाकर माता की विदाई करते हैं।
प्राचीनकाल से होता आ रहा परंपरा का पालन
यह प्राचीनकाल से ही अपने आप में आस्था का प्रतीक बना हुआ है। चंदनकियारी मुख्यालय में दुर्गोत्सव के दौरान आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा।
डेढ़ किमी तक सड़क पर लेटकर श्रद्धालु अपने शरीर के ऊपर से गुजारकर माता के कलश का विसर्जन किया। प्रखंड मुख्यालय स्थित मध्य बाजार दुर्गा मंदिर में भगवती दुर्गा देवी का पूजनोत्सव प्राचीनकाल से ही अपने आप मे आस्था व श्रद्धा भक्ति के लिए मिसाल बना हुआ है।
यहां पूजन, संध्या आरती व कलश विसर्जन की परंपरा अपने आप मे अनूठी है। उक्त मंदिर की पूजा-अर्चना व वैदिक परंपरा के बखूबी निर्वहन की ख्याति दूर-दराज तक मशहूर है। यहां ग्रामीण अपने शरीर के ऊपर से होकर कलश का विसर्जन करवाते हैं।
वर्षों पूरानी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं ग्रामीण
परंपरा के अनुसार यहां विजया दशमी के दिन पूजन विधि समाप्ति के पश्चात माता के कलश को निकटवर्ती गोकुलबांध तालाब में विसर्जित किया जाता है।
इस दौरान मंदिर से तालाब तक लगभग डेढ़ किमी की दूरी में सड़क पर ही गांव के खास व आम सभी महिला-पुरुष व वृद्ध श्रद्धालु गण कलश विसर्जन के रास्ते सड़क पर लेट जाते हैं। इस दौरान उक्त राह पर कहीं भी खाली स्थान नही रहता।
भक्तों की पूरी होती है मनोकामना
मान्यता है कि ऐसे में माता का आशीष व अनुग्रह भक्त जनों पर बना रहता है व उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। यहां सड़क पर लेटने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में होती है।
यह परंपरा अपने आप में आस्था का अनूठा प्रतीक बनी हुआ है। मंदिर में दुर्गोत्सव के पुजारी मारकेश्वर ठाकुर बताते हैं कि वह विगत पच्चीस वर्षों से अधिक समय से यहां पूजन कार्य कर रहे हैं, जिसके पूर्व से ही ऐसी परंपरा यहां बनी हुई है।
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