रमजान में बेचते थे टोपी, इस बार बेच रहे मास्क
दस बजे तक गहमा-गहमी का माहौल रहता था। शहर के अलावा प्रखंडों के लोग ईद की तैयारियों को लेकर खरीदारी करने में व्यस्त रहते थे। पंद्रह रमजान के बाद तो उमंग और भी बढ़ जाता था। लेकिन इस बार वैसा कुछ नहीं देखने को मिल रहा है। सुबह से लेकर शाम तक सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। बस सिर्फ आवश्यक सामग्रियों की दुकानें खुली हुई है।
संवाद सूत्र, चतरा : स्थानीय जामे मस्जिद के मुख्य द्वार पर स्थित रशीदिया बुक डीपू के संचालक मो. मोईन आमतौर पर रमजान में टोपी, रुमाल, इत्र, सूरमा, डोपट्टा, मेंहदी, हेजाब आदि सामान बेचते थे। टोपी और इत्र की कई प्रकार की क्वालिटी रहती थी। पल्ला टोपी से लेकर देवबंदी तक और इत्र में मजमुआ से लेकर जीन तक उनके उपलब्ध रहता था। बिक्री भी शानदार होती थी। सुबह से लेकर रात को दस बजे तक ग्राहकों के आने जाने का क्रम जारी रहता था। लेकिन इस बार नोवेल कोरोना ने हालात ही बदल दिया है। पिछले 25 मार्च से दुकान में ताला लटका हुआ है। टोपी और इत्र की जगह पर मो. मोईन मास्क बेच रहे हैं। कहते हैं कि लॉकडाउन का डेढ़ महीना हो चुका है। देश में कोरोना के मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वे कहते हैं कि लॉकडाउन कब खुलेगा, कुछ नहीं कहा जा सकता है। दुकान बंद रहने की वजह से आर्थिक संकट उत्पन्न होने लगी है। उच्च एवं निम्न वर्ग के लोगों को शायद इसका असर नहीं पड़ रहा हो। चूंकि उच्च वर्ग के पास दौलत है और निम्न वर्ग पर सरकार मेहरबान है। मध्यम वर्गीय परिवारों की चिता किसी को नहीं है। मोईन कहते हैं कि यह पहला रमजान है, जब शहर में चहल पहल देखने को नहीं मिल रहा है। आमतौर पर रमजान के दिनों में शहर के जामा मस्जिद के आसपास सुबह के आठ बजे से लेकर रात के दस बजे तक गहमा-गहमी का माहौल रहता था। शहर के अलावा प्रखंडों के लोग ईद की तैयारियों को लेकर खरीदारी करने में व्यस्त रहते थे। पंद्रह रमजान के बाद तो उमंग और भी बढ़ जाता था। लेकिन इस बार वैसा कुछ नहीं देखने को मिल रहा है। सुबह से लेकर शाम तक सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। बस सिर्फ आवश्यक सामग्रियों की दुकानें खुली हुई है।