जल संरक्षण :::::::: तालाबों के गांव में सालों भर खेतों में छाई रहती है हरियाली
संजय शर्मा इटखोरी (चतरा) जल संरक्षण के प्रति हमारे पूर्वज हम लोगों से ज्यादा संवेदनशील थे। ग
संजय शर्मा, इटखोरी (चतरा): जल संरक्षण के प्रति हमारे पूर्वज हम लोगों से ज्यादा संवेदनशील थे। गांव में तालाबों का निर्माण पूर्वजों की जल संरक्षण के प्रति गहरी निष्ठा का ही प्रमाण है। गांव के तालाब जल संरक्षण के लिए कारगर तो है ही, खेती किसानी को भी इन तालाबों से काफी बल मिलता है। ऐसे गांव में खेत-बाड़ी तालाबों की वजह से सालों भर हरे भरे रहते हैं। ऐसा ही एक गांव इटखोरी प्रखंड में भी है। प्रखंड मुख्यालय से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव का नाम करनी है। इटखोरी-जिहू पथ के किनारे स्थित दो हजार की आबादी वाले इस गांव में दस तालाब है। सभी तालाब एक सौ वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। गांव के लोगों ने आज भी इन तालाबों को जीवित रखा है। बदले में तालाब ग्रामीणों के लिए जीविका का साधन बने हुए हैं। करनी गांव के निवासी व पंचायत के मुखिया सीताराम दांगी बताते हैं कि उनके गांव के पूर्वजों ने सदियों पहले तालाबों का निर्माण करके उनके गांव को बहुत बड़ी पूंजी दी है। गांव में आज भी बारिश का पानी इधर-उधर बहकर बर्बाद नहीं होता है। बल्कि निचले क्षेत्रों में बनाए गए तालाबों में जाकर संग्रहित हो जाता है। तालाबों के माध्यम से हो रहे इस जल संरक्षण की वजह से गांव में खेती किसानी को काफी बल मिलता है। किसान सालों भर खेतों में भिन्न भिन्न प्रकार की फसल उपजाते हैं। जिससे किसानों का घर परिवार आसानी से चलता है। बड़की जोराही नाम से प्रसिद्ध करनी गांव के इस सबसे पुराने तालाब के आसपास तीन और तालाब है। गांव के लोग बताते हैं कि यह चारों तालाब गांव के लिए वरदान साबित हुए हैं। इन तालाबों का पानी गर्मी के मौसम में भी नहीं सूखता है।
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