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छठ की डोर से बंधा पूरा परिवार

नौकरी के दबाव में वे चाहकर भी कई बार देवघर नहीं आ पाते। लेकिन छठ में तो उन्हें हर हाल में आना ही है। इसकी तैयारी वे महीनों पहले से करते हैं। छठ के दौरान तीन-चार दिन कैसे बीत जाता है उन्हें पता ही नहीं चलता। यहां से जाने के बाद परिवार संग बिताए इन खुशियों के पल की याद कर यहीं सोचते हैं कि एक वर्ष जल्दी से बीत जाते ताकि फिर से छठ में वे अपने घर आ सकें। इस दौरान सबसे ज्यादा खुश इनके पिता व मां नजर आते हैं। क्योंकि जीवन अब ढलान पर है। ऐसे में अपने बच्चों व पूरे परिवार को साथ देख उनके आंखों की चमक बढ़ जाती है। वहीं सभी भाइयों को छठ मईया की कृपा के साथ मां-पिता का प्यार व आशीर्वाद भी मिल जाता है।

By JagranEdited By: Updated: Fri, 01 Nov 2019 05:55 PM (IST)
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छठ की डोर से बंधा पूरा परिवार

कंचन सौरभ मिश्र, देवघर

छठ महापर्व सिर्फ आस्था ही नहीं पारिवारिक व सामाजिक प्रेम तथा भाईचारा का प्रतीक भी है। ये अपनों से मिलने-जुलने का एक माध्यम है। आज के भौतिकवादी युग में एक परिवार के लोग रोजगार की जुगत में घर परिवार से दूर दूसरे प्रदेश में रहने को मजबूर हैं। ऐसे में छठ के बहाने बहुत से लोगों को साल में एक बार अपने परिवार व अपनी मिट्टी से मिलने व जुड़ने का मौका मिलता है। देवघर के करनीबाग मोहल्ले के ज्योति नगर में रहने वाले भरत झा के घर में इन दिनों काफी कोलाहल है। उनके घर में आम दिनों की तुलना में काफी ज्यादा चहल-पहल है और देर रात तक हंसी ठिठोली की आवाज सुनाई पड़ रही है। कारण है छठ के मौके पर उनका पूरा परिवार एकजुट है। भरत की मां छठ पूजा करती हैं। उनकी मां व पिता शहर के बंपास टाउन मोहल्ले में रहते हैं। जबकि भरत अपने परिवार के साथ करनीबाग के घर में रहते हैं। चार भाइयों में भरत सबसे बड़े हैं। उनके तीन अनुज मुकेश झा, रुपेश झा व ज्ञानी झा दूसरे प्रदेश में नौकरी करते हैं। मुकेश दिल्ली के एक न्यूज चैनल में कार्यरत है तो रुपेश व ज्ञानी गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में नौकरी करते हैं। उनकी बहन रीता झा की भी शादी हो चुकी है। यूं तो परिवार कहने को काफी बड़ा है लेकिन सभी के बाहर रहने के कारण घर आमतौर पर खाली-खाली नजर आता है। लेकिन छठ के मौके पर साल में एक बार सभी भाई पूरे परिवार के साथ देवघर आते हैं। चारों भाई का कहना है कि वे भले ही नौकरी बाहर करते हों लेकिन उनके दिल आज भी देवघर में ही बसता है। यहां आते ही बचपन के यादें ताजा हो जाती हैं ऐसा लगता है ये पल कल ही गुजरा हो। इस दौरान मां, पिता ही नहीं दोस्ता व अन्य रिश्तेदारों से भी मिलने का उन्हें मौका मिल जाता है। नौकरी के दबाव में वे चाहकर भी कई बार देवघर नहीं आ पाते। लेकिन छठ में तो उन्हें हर हाल में आना ही है। इसकी तैयारी वे महीनों पहले से करते हैं। छठ के दौरान तीन-चार दिन कैसे बीत जाता है उन्हें पता ही नहीं चलता। यहां से जाने के बाद परिवार संग बिताए इन खुशियों के पल की याद कर यहीं सोचते हैं कि एक वर्ष जल्दी से बीत जाते ताकि फिर से छठ में वे अपने घर आ सकें। इस दौरान सबसे ज्यादा खुश इनके पिता व मां नजर आते हैं। क्योंकि जीवन अब ढलान पर है। ऐसे में अपने बच्चों व पूरे परिवार को साथ देख उनके आंखों की चमक बढ़ जाती है। वहीं सभी भाइयों को छठ मईया की कृपा के साथ मां-पिता का प्यार व आशीर्वाद भी मिल जाता है।

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