Diwali 2023: 'लोकल फॉर वोकल' कैसे होगा सफल? नहीं मिल रहे दीए के खरीदार चाइनीज असरदार
वैसे तो देश में लोकल फॉर वोकल पर बहुत जोर दिया जा रहा है। लगातार प्रोमोट करने की कोशिश हो रही है लेकिन फिर भी दीपक बनाने वालों के जीवन में इस दिवाली भी अंधेरा छाया हुआ है। दीए के खरीदार नहीं मिल रहे हैं। मार्केट में चाइनीज लाइट की इतनी मांग है कि इन सब के आगे दीए की रोशनी का रंग फीका हो गया है।
संवाद सहयोगी, करौं(देवघर)। दीपावली का त्योहार आमलोगों में अपार खुशी लेकर आती है, परंतु अब यह बात नहीं रह गई। मिट्टी के दीया व ढिबरी की जगह अब चाइनीज लाईट ले लिया है। बाजार में रंग-बिरंगे चाइनीज लाईट के बढ़ते प्रचलन के कारण मिट्टी के दीए की मांग नहीं के बराबर रह गई है।
फलस्वरूप, दीपावली के मौके पर भी चाक से दीया बनाने वालों के घर खुशी नहीं आती है। इनलोगों द्वारा कमोवेश जो दीया बनाया जाता है, उसकी बिक्री नहीं हो पाती है। इस कारण कुम्हारों के समक्ष भूखमरी की नौबत उत्पन्न हो रही है।
पुश्तैनी धंधा से मुंह मोड़ने लगे लोग
कुछ साल तक कुम्हार जाति के लोग दीपावली की महीनों से तैयारी करते थे। जगह-जगह से मिट्टी एवं तैयार दीया को पकाने के लिए सामग्री इकट्ठा किया जाता था। दीपावली के मौके पर दीया बेचकर इनलोगों को अच्छी आमदनी होती थी।
हालांकि, अब इस पेशे में कोई दम नहीं रहा। इस कारण लोग अब इस धंधे से मुंह मोड़ने लगे हैं। ऐसे में इस जाति के लोग मजदूरी व अन्य काम करके अपने परिवार की परवरिश करते हैं।
क्या कहते हैं कुम्हार जाति के लोग
बेढ़ाजाल के नकुल पंडित, जयदेव पंडित, केंदवरिया के विनोद पंडित, साधन पंडित, दशरथ पंडित आदि कहते हैं कि पहले वेलोग दीपावली में अच्छी आमदनी कमा लेते थे, लेकिन अब मिट्टी के दीया जैसा लाईट बाजार में बिकने लगा है। लोग उसी का उपयोग करते हैं।
हम लोग जो दीया बनाते हैं उसकी बिक्री कम हो पाती है। इस धंधे में लागत मूल्य भी वसूल नहीं हो पाता है। कहा कि सरकार उनलोगों के रोजगार के लिए कुछ नहीं सोच रही है और न ही दूसरे रोजगार के लिए कोई सहायता दी जा रही है। ऐसे में लोग रोजी की खोज में पलायन करने को विवश हैं।
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