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सिर्फ देवताओं को देवलोक का ही नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों को भी परलोक जाने का रास्‍ता दिखाता है यह दीया

देवघर देवताओं का धाम है। ब्रह्ममुहूर्त में बाबा बैद्यनाथ मंदिर का पट खुलते ही देवता स्‍वर्गलोक से इसके प्रांगण में पधारते हैं। बाबा मंदिर की हर बात निराली है। बाबा मंदिर के शिखर पर जलाए जाने वाले आकाशदीप को लेकर मान्‍यता है कि यह देवलोक जाने के रास्ते को प्रकाशित करता है। साथ ही परलोक जाने वाले पूर्वजों को भी यही रास्‍ता दिखाता है।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Fri, 10 Nov 2023 11:21 AM (IST)
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बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर अमर ज्योति जलाता भंडारी।

आरसी सिन्हा, देवघर। देवघर देवताओं का घर है। ब्रह्ममुहूर्त में जब बाबा बैद्यनाथ मंदिर का पट खुलता है, तब देवता भी इस प्रांगण में पधारते हैं। भगवान तो भाव से पूजे जाते हैं और यही भाव भारतीय सभ्यता को संस्कृति से जोड़कर सनातन की राह को आगे बढ़ाता है।

देवलोक जाने के रास्‍ते को प्रकाशित करता है यह दीपक

बाबा मंदिर में भी पूजन की कई विशेष परंपराएं निभाई जाती हैं, जो आदिकाल से चली आ रही है। पुण्य मास कार्तिक का बाबाधाम में विशेष महत्व है। इस अवधि में पूरे महीने यहां चकाचौंध रोशनी के बीच बाबा मंदिर के शिखर पर आकाशदीप जलाया जाता है।

मंदिर के शिखर पर घी का यह दीपक पूरी रात जले, इसके लिए दीपक को शीशे के घेरे में रखा जाता है। मान्यता है कि यह आकाशदीप देवलोक जाने के रास्ते को प्रकाशित करता है। यह आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक जलाया जाता है।

प्रकाश पर्व के बारे में बताने के लिए जलाया गया दीया

दीपावली में जब पृथ्वीलोक दीपों की रोशनी से जगमग हो रहा होता है। तब देवलोक भी जगमग रहे, इसलिए यह रीत निभाई जा रही है। मंदिर के शिखर और प्रांगण के तुलसी चौड़ा पर यह दीप हर दिन जलाया जाता है।

अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के पूर्व पदाधिकारी दुर्लभ मिश्र कहते हैं कि देवघर जो आज देख रहे हैं वह कल घनघोर जंगल था। इलाके में बाबा मंदिर के शिखर से ऊंचा कोई स्थान नहीं था। प्रकाश पर्व आ गया इसे बताने के लिए मंदिर के शिखर पर यह दीया जलाने की परंपरा शुरू हुई।

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इस दीए के सहारे परलोक जाते हैं पूर्वज

दरअसल, कार्तिक के कृष्ण पक्ष में अंधेरा रहता है। दीपावली में पृथ्वी लोक तो जगमग हो जाता है। देवलोक जाने का रास्ता भी प्रकाशपुंज हो इसलिए यह परंपरा चली आ रही है। यह परंपरा सतयुग में शुरू हुई, जो बाद में त्रेतायुग में भगवान राम से जोड़ दिया गया।

जब वह रावण को परास्त कर अयोध्या लौटे थे। तब से पृथ्वीलोक पर इस रूप में दीपावली पर घर-घर दीये जलाने की परंपरा चल रही है। इसमें एक मान्यता यह भी है कि पितृपक्ष में इस लोक में आए पूर्वज परलोक में जाने का रास्ता नहीं भटक जाएं इसलिए यह दीप जलाया जाता है।

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