Jharkhand Road Accident: पलक झपकते ही बुझ गया दो घरों का चिराग, देवघर सड़क हादसे में पांच लोगों की दर्दनाक मौत
विजया दशमी का उत्सव था। घर के चिराग मुकेश नानी-नाना के घर से लेकर दादा-दादी के घर जाने को व्याकुल था। नाना-नानी का घर देवघर के चितरा का आसनसोल गांव था।एक दिन पहले से घर में खुशियां भी थी और बेटी के जाने की वेदना भी..। खुशी और गम एक साथ घर में विचरण कर रहा था। उधर गिरिडीह के देवरी थानात्रेत्र के बांसडीह गांव में खुशियां ही खुशियां थी...।
आरसी सिन्हा, देवघर। राजदेव राय के घर का एकलौता चिराग मुकेश राय ढाई महीने के दीपक को लेकर विजया दशमी के दिन घर जो आने वाला था। खुशियां अंगड़ाई ले रही थी। सभी लोग सुबह की प्रतीक्षा कर रहे थे कि मुकेश पत्नी लवली, ढ़ाई साल की बिटिया रीवा और ढाई महीने के बेटे के साथ आ रहा है। सभी लोग तरह तरह के पकवान बनाने की तैयारी कर लिए थे।
मंगलवार की सुबह देवघर के चितरा से सटे आसनसोल गांव से मनोज चौधरी ने अपनी बिटिया को विदा किया। गाड़ी पर बेटी-दामाद, दोनों बच्चों के साथ मनोज का एकलौता बेटा रोशन भी अपनी बहन के ससुराल जाने को सवार हुआ। सभी ने खुशी-खुशी यात्रा शुरू की, पर ये क्या...। एक घंटे बाद ही दुख का ऐसा पहाड़ टूटा कि मंगल ने दो परिवार में अमंगल की खबर सुना दी।
(सुबह अजय नदी में पलट गया था वाहन)
सुख आने से पहले लुट गया मेरा संसार ....
देवघर सदर अस्पताल में मुकेश राय के पिता गिरिडीह से पहुंच गए थे। वह दहाड़ मारकर रो रहे थे...। उनके क्रुंदन से अस्पताल का कोना कोना रो रहा था। विपदा का ऐसा दिन कभी आएगा सोचा भी नहीं था।
मुकेश के दादा गणेश राय ने बताया कि बहुत मुश्किल से पोता को पाल पोसकर बड़ा किया। बहुत कष्ट से पढ़ाया लिखाया। पढ़ाने के लिए चौकीदार और नाइट गार्ड तक की नौकरी की। उस पर भी नहीं हुआ तो जमीन बेच दिया।
इधर दादा फफक रहे थे तो, उधर पिता के माथे पर हाथ रखे दुख के पहाड़ को नहीं सह पाने को बरबरा रहे थे। उनके मुंह से अचानक पीड़ा के शब्द निकले सुख आने से पहले ही दुख का पहाड़ माथे पर टूट गया। अब तो सारा संसार ही लुट गया।
(अजय के चाचा बार बार कफन हटाकर भतीजा को निहारते)
सॉफ्टवेयर इंजीनियर था मुकेश
मुकेश राय को पिता ने बहुत कठिनाई से पढ़ाया था। घर का एकमात्र चिराग था और बूढ़े पिता का सहारा था मुकेश। चार बहनों में एकलौता भाई जब 2018 में सॉफ्टवेयर इंजीनियर बना, तो बहनों ने खुशियों से भाई की मंगल आरती की थी। 18 लाख के पैकेज पर उसकी नौकरी थी।
राखी के त्यौहार में भाई को मिठाई खिलाकर इस बात पर इतराती थी कि मेरा भाई बहुत बड़ा इंजीनियर है, अब तो पिताजी का सारा दर्द दूर हो गया, लेकिन विधाता को तो कुछ और ही मंजूर था। जिन कंधों ने कष्ट का बोझ उठाया था अब उस कंधे पर पुत्र का जनाजा ...।
(राजदेव राय को समझाने की कोशिश करते गिरिडीह से आए उनके स्वजन)
महाअष्टमी घर आया था घर का चिराग
घर का चिराग गिरिडीह के बांसडीह में राजदेव राय के घर में माता की अराधना चल रही थी। संयुक्त परिवार का बड़ा आंगन, जिसमें सबलोग मंगल गीत गा रही थी।महाअष्टमी की वह शाम थी जब घर का चिराग आया था।
चाचा नागेंद्र ने बताया कि वह अष्टमी की शाम पुणे से आया था, अभी वहीं इंजीनियर के पद पर कार्यरत था। स्वभाव से इतना धनी था.., यह कहते कहते उनका गला रूंध गया। तब उनके सामने खड़े चचेरे भाई ने कहा कि भैया बहुत ही प्यारे थे। हमलोगों को तो यकीन ही नहीं हो रहा। बेटा के घर आने का दिन बना था...।
मुकेश के घरवाले बता रहे थे कि ढाई महीना पहले पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। वह देवघर में ही जन्म लिया था। बहु ससुराल से देवघर आयी थी। जब संतान का जन्म हुआ तो घर वाले मायके ले गए। बात हुई कि शुभ दिन बनाकर घर के चिराग को गिरिडीह ले जाएंगे।
यह बात हो ही रही थी कि थोड़ी सी दूर अस्पताल के बरामदे पर निढाल बैठे मुकेश के पिता के कान से यह बात टकरायी उसके बाद वह अचानक रो पड़े....। चारो ओर सन्नाटा पसर गया। किसी तरह बात आगे बढ़ी और बताया कि विजया दशमी को आने का दिन बना।
नदी में पलटी मुकेश की कार
महानवमी की शाम बांसडीह से भाड़े की एक गाड़ी लेकर मुकेश अपने परिवार को लेने देवघर के आसनसाेल आ गया। सबलोग रात में हंसे बोले, घुमे फिरे और सुबह जाने की तैयारी कर लिए। सुबह सबलोग निकल रहे थे तब छोटे बच्चे अभी नींद में ही थे।
उनको जगाकर ननिहाल में सबने खूब दुलार किया। दुलार करने में खुशी के टपके लोर अभी ठीक से पोछ भी नहीं पाए थे कि कभी ना रूकने वाला अश्रु की धार की खबर आ गयी। बताया गया कि वह कार मुकेश नदी में पलट गया और पूरा परिवार अब इस दुनिया में नहीं रहा।
मनोज चौधरी पर आयी दोहरी विपदा
मनोज चौधरी पर तो दोहरी विपदा आ गयी। एक तो उनका बेटी-दामाद और दूसरा उनका एकमात्र घर का चिराग रोशन भी इस दुर्घटना में घर को अंधेरा कर चला गया। वह तो खबर सुनकर केवल सबको देखता और देखते ही देखते जमीन पर लोट जाता। इस हादसे में राजदेव और मनोज के घर का इकलौता चिराग सदा के लिए बुझ गया।
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