Vasant Panchami: देवघर में मिथिलावासी बाबा बैद्यनाथ को चढ़ाएंगे तिलक, अर्पित करेंगे धान की बाली और घर का घी
Baba Baidyanath Tilak on Vasant Panchami बसंत पंचमी के अवसर पर सवा लाख से अधिक मिथिलावासी बाबा बैद्यनाथ की पूजा करेंगे परंपरा के मुताबिक उनको तिलक चढ़ाएंगे और एक-दूसरे को गुलाल लगाएंगे। भक्त बाबा को खेत के धान की पहली बाली और घर का बना घी भी अर्पित करते हैं।
By Ravish SinhaEdited By: Ashish PandeyUpdated: Wed, 25 Jan 2023 01:47 PM (IST)
आरसी सिन्हा, देवघर: द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा बैद्यनाथ के आंगन में मिथिलावासी हर्षोल्लास से झूम रहे हैं और नचारी गाकर अपने शिव बाबा को रिझा रहे हैं। गुरूवार को बसंत पंचमी के अवसर पर सवा लाख से अधिक मिथिलावासी बाबा बैद्यनाथ की पूजा करेंगे, परंपरा के मुताबिक उनको तिलक चढ़ाएंगे और एक-दूसरे को गुलाल लगाकर लौट जाएंगे।
जिला प्रशासन ने भीड़ को नियंत्रित करने की पूरी रणनीति सावन माह की तरह ही बनाई है। दो दिन पहले से ही कतारबद्ध सिस्टम से पूजा-अर्चना कराई जा रही है। बाबा तक पहुंचने वाला कांवरिया पथ गेरूआमय हो गया है। भीड़ को देखते हुए दंडाधिकारी एवं पुलिस बल की प्रतिनियुक्ति भी कर दी गई है। उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री ने कहा कि सवा लाख से अधिक भक्त बसंत पंचमी के दिन देवघर में रहेंगे। कतार व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम किया गया है। शीघ्रदर्शनम की भी सुविधा उपलब्ध रहेगी। पांच सौ रुपए देकर कोई भी कांवरिया शीघ्रदर्शन कर सकता है।
देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर से तीन प्राचीन मेले प्रमुख रूप से जुड़े हैं और लंबे समय से आयोजित होते चले आ रहे हैं। यह तीन मेले हैं भादो मेला, शिवरात्रि मेला और बसंत पंचमी का मेला। बसंत पंचमी मेले की ख्याति विशेष तौर पर मिथिला से जुड़ी हुई है। अढ़ाई दिन के इस मेले में केवल मिथिलावासी ही आते हैं। दरभंगा से लेकर सीतामढ़ी तक से श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं। दो दिन पहले से ही भक्त पहुंचने लगे हैं और शिवभक्तों के आने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी है।
परंपराओं से जुड़ा है तिलकोत्सव
बसंत पंचमी के अवसर पर भगवान शंकर का तिलकोत्सव भारतीय सभ्यता व संस्कृति का अटूट बंधन है। इस दिन मिथिलावासी बाबा को अपने खेत में उपजे धान की पहली बाली और घर में तैयार घी अर्पित करते हैं। भक्त बाबा को बेसन का लड्डू भी चढ़ाते हैं। इसके बाद एक-दूसरे को गुलाल लगाकर तिलकोत्सव की खुशियां बांटते हैं। यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। पहले ऋषि-मुनी भी यहां आते थे।बाबा बैद्यनाथ के दरबार की कथा निराली और एतिहासिक है। मिथिलावासी आज से नहीं, सदियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। भारतीय सभ्यता की थाथी में (धी) बेटी और सवासिन (बहन) का मायके के धन पर अंश है। यह परंपरा है...। बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाने के पीछे भी यही कहानी है। तिरहुत यानि मिथिलांचल, हिमालय की तराई में बसा है। यहां के लोगों का मानना है कि हमलोग हिम राजा की प्रजा हैं और पार्वती हिमालय की बेटी हैं। मिथिलावासी अपने को लड़की पक्ष का मानते हैं और बसंत पंचमी के दिन बाबा को तिलक चढ़ाकर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को बारात लेकर आने का न्यौता देते हैं। यही परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही है।
अखिल भारतीय तीर्थपुरोहित महासभा के वरीय पदाधिकारी और तीर्थपुरोहित दुलर्भ मिश्र कहते हैं कि बाबा को तिलक चढ़ाने की परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। मिथिलावासी बसंत पंचमी के दिन लड़की पक्ष की तरह अपने साथ लाई धान की बाली, घी, बेसन के लड्डू से बाबा को तिलक चढ़ाने की रस्म करते हैं। बाबा भोलेनाथ, और बाबा भैरवनाथ की पूजा करने के बाद गुलाल खेलते हैं और मिथिला लौट जाते हैं। यह सारी रस्में इनके पुरोहित कराते हैं।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।