झारखंड के साहिबगंज के रास्ते मवेशियों की तस्करी, 50 हजार के भैंसे की कीमत बांग्लादेश में डेढ़ लाख रुपये
झारखंड के साहिबगंज के रास्ते पशु तस्करी का खेल काफी पुराना है। एक अनुमान के अनुसार जिले के विभिन्न रूट से प्रतिवर्ष दो लाख से अधिक पशुओं को तस्करी के माध्यम से पश्चिम बंगाल तथा वहां से बांग्लादेश भेजा जाता है। सारा खेल रात के अंधेरे में होता है।
By Deepak Kumar PandeyEdited By: Updated: Thu, 21 Jul 2022 01:03 PM (IST)
नव कुमार मिश्रा, उधवा (साहिबगंज): साहिबगंज के रास्ते पशु तस्करी का खेल काफी पुराना है। एक अनुमान के अनुसार, जिले के विभिन्न रूट से प्रतिवर्ष दो लाख से अधिक पशुओं को तस्करी के माध्यम से पश्चिम बंगाल तथा वहां से बांग्लादेश भेजा जाता है। सारा खेल रात के अंधेरे में होता है। पशु तस्करों का एक बड़ा रैकेट है। इसमें झारखंड, बिहार और बंगाल के तस्कर शामिल हैं।
जिले की पुलिस पशु तस्करी रोकने के नाम पर कभी-कभी कार्रवाई करके सिर्फ खानापूर्ति करती है। इतने बड़े पैमाने पर पशु तस्करी होने के बाद भी जिले में केस-मुकदमे कभी-कभार ही होते हैं। इस साल अब तक मिर्जाचौकी व तीनपहाड़ में पशु तस्करी का मात्र एक-एक मामला दर्ज किया गया है, जिससे आप पशु तस्करों की पकड़ का अंदाजा लगा सकते हैं। पशु तस्करों ने हाल में अपने कारोबार का ट्रेड भी बदला है। वे कूरियर के रूप में स्थानीय लोगों का उपयोग कर रहे हैं। कूरियर को एक जोड़ी मवेशी के लिए चार सौ रुपये मिलते हैं। नदी होकर मवेशियों को सीमा पार कराने में ज्यादा राशि दी जाती है।
सड़क मार्ग के साथ-साथ नदी का उपयोग
बांग्लादेश भेजे जानेवाले पशुओं में गायों की संख्या अधिक है। पशु तस्कर सड़क मार्ग के साथ-साथ नदी घाटों का भी उपयोग करते हैं। तस्करों को सब कुछ खर्च करने के बाद भी प्रति पशु 10 से 18 हजार रुपये का मुनाफा होता है। यहां 50 हजार रुपये में बिकने वाला भैंसा बांग्लादेश में डेढ़ लाख रुपये में बिक जाता है। बड़े साइज के बैल की कीमत वहां 80 हजार रुपये के लगभग है। गायों की औसत कीमत 40 से 60 हजार रुपए तक है। अधिकतर पशु तस्कर करोड़पति हैं, पर वे गरीब, अनपढ़ तथा बेरोजगार व्यक्तियों को कुछ हजार रुपये का लालच देकर पशु तस्करी कराते हैं। बांग्लादेश में पशुओं की खरीद-बिक्री वहां की सरकार के लिए राजस्व का जरिया है। भारत का तस्कर बांग्लादेश की सीमा में प्रवेश करते ही पशुओं के बदले कर चुकाता है और बाकायदा व्यापारी कहलाता है। बांग्लादेश में पशुओं को खरीदकर ज्यादा कीमत पर गोमांस का सेवन करने वाले दूसरे देशों में भी बेचा जाता है।
ऐसा होता है सारा खेल
झारखंड के तस्कर राज्य के विभिन्न भागों के अलावा उत्तरप्रदेश व हरियाणा से पशुओं को खरीद कर पिकअप वैन में भरकर झारखंड के दुमका, जामताड़ा, पाकुड़, साहिबगंज जिला होकर पश्चिम बंगाल के मालदा व मुर्शिदाबाद के रास्ते तथा बिहार के तस्कर कटिहार, पूर्णिया तथा किशनगंज होकर नक्सलबाड़ी तथा बालुरघाट, पतिराम तथा हिली बाॅर्डर से बांग्लादेश सीमा पार भेजते हैं। बांग्लादेश के सीमावर्ती क्षेत्र नवगांव तथा राजशाही जिलों में लगने वाले पशु बाजार में यह पशु ऊंचे कीमत पर बेचे जाते हैं। हाल में पाकुड़ जिले में पकड़े गए 30 ऊंटों के कारोबार में औरंगाबाद के तस्कर जमीरुल शेख का नाम आया था। इस गिरोह में शामिल मोस्ताक रहमान तथा तोफीकुल आलम की न सिर्फ मुर्शिदाबाद, बल्कि मालदा तथा दक्षिण दिनाजपुर जिले में भी सक्रियता है।
साहिबगंज में इस रूट से होती मवेशियों की तस्करीसाहिबगंज जिले में बोरियो, बरहेट, बरहड़वा, उधवा तथा राजमहल के रास्ते अब भी पशु तस्करी की जाती है।पियारपुर-पलाशगाछी फेरीघाट से नाव पर पश्चिम बंगाल के मोथाबाड़ी थाना क्षेत्र के पंचानंदपुर घाट होकर कालियाचक वैष्णवनगर के रास्ते बांग्लादेश भेजा जाता है। बरहड़वा-फरक्का मुख्य मार्ग होकर धुलियान के रास्ते नदी मार्ग से पशुओं को बांग्लादेश भेजा जाता है।
वाहन को पार कराने के लिए तस्कर के एजेंट करते हैं एस्काॅर्ट
पशु की तस्करी के लिए हाइवा, ट्रक, कंटेनर का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही बोलेरो पिकअप एवं 407 व अन्य छोटे वाहनों का भी इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे वाहन को पार कराने के लिए पहले से ही तस्करों के एजेंट बोलेरो, स्काॅर्पियो से एस्काॅर्ट करते हैं। रास्ता अगर क्लियर रहा तो रात के अंधेरे में पशु लदे वाहन पार हो जाते हैं। जहां कम संख्या में पशु रहते हैं ऐसे वाहन अथवा पैदल ले जाने वाले के लिए मोटरसाइकिल से एस्काॅर्ट किया जाता है। अगर कहीं कोई मिल भी जाए तो कह दिया जाता है पालने के लिए ले जा रहे हैं।
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