Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

गरीबी का दंश... पहाड़ से भी कठोर झारखंड के पहाड़िया की कहानी, रेल पटरी पर पैदल ही नाप दी दिल्ली से धनबाद की दूरी

बरुजन ने भरी आंखों से दास्तां सुनाई। अक्टूबर में दो दर्जन लोगों के साथ नौकरी की तलाश में दिल्ली गया था। बांसकोला के राजेश ठाकुर ने सबके जाने की व्यवस्था की। सभी यहां से पश्चिम बंगाल के फरक्का गए वहां से ट्रेन से नई दिल्ली।

By MritunjayEdited By: Updated: Mon, 15 Mar 2021 06:44 AM (IST)
Hero Image
साहिबगंज का बरुजन बामड़ा पहाड़िया ( फोटो जागरण)।

साहिबगंज [ डॉ. प्रणेश ]। उसके कदम साथ नहीं दे रहे थे, पर वह चलता जा रहा था। एक ही तड़प थी कि किसी प्रकार अपने घर पहुंच जाए। स्वजनों से मिले। पांच माह तक पैदल चला। अंतत: अपने घर साहिबगंज पहुंच ही गया। जी हां, हम बात कर रहे हैं पांच माह में दिल्ली से करीब 1270 किमी पैदल चलकर अपने घर आए साहिबगंज की तालझारी पंचायत के अमरभिट्टा गांव के बरुजन बामड़ा पहाडिय़ा की। अक्टूबर से अब तक उसने इतने दर्द झेले कि बयां करते-करते रो पड़ा।

मारने की बात तो डर गया

बरुजन ने भरी आंखों से दास्तां सुनाई। अक्टूबर में दो दर्जन लोगों के साथ नौकरी की तलाश में दिल्ली गया था। बांसकोला के राजेश ठाकुर ने सबके जाने की व्यवस्था की। सभी यहां से पश्चिम बंगाल के फरक्का गए, वहां से ट्रेन से नई दिल्ली। बंगाल में ही वह साथियों से बिछड़ गया। सब मजदूर अलग-अलग चले गए थे। दिल्ली पहुंचा तो बरुजन वहां के लोगों की बात समझ नहीं पाता था, वहां के लोग उसकी पहाडिय़ा भाषा नहीं समझ पाते थे। किसी तरह एक सप्ताह दिल्ली में मजदूरी की। कुछ लोग उस पर नाराज होकर मारने की बात कहने लगे तो वह डर गया। अपना बैग छोड़ वहां से भाग निकला। पास में पैसे नहीं थे तो रेलवे लाइन पकड़ कर चलने लगा। कई जगह भटक भी गया। कई दिन तो ऐसे हुए कि खाना भी नसीब नहीं हुआ। कोई दे देता तो खा लेता। जहां जगह मिलती सो जाता। करीब पांच माह की पैदल यात्रा के बाद दो दिन पूर्व धनबाद पहुंचा। वहां जीआरपी के कुछ जवानों ने पूछताछ की, खाना खिलाया। फिर उसे ट्रेन से साहिबगंज भेजा। शनिवार को वह घर पहुंचा।

सात हजार रुपया प्रतिमाह देने की हुई थी बात

राजेश ठाकुर ने इलाके के कई मजदूरों को दिल्ली भेजा था। सात हजार रुपया प्रतिमाह देने की बात हुई थी। एक माह का अग्रिम भुगतान स्वजनों को दिया था। बरुजन के निर्धारित स्थान पर नहीं पहुंचने पर करीब एक सप्ताह बाद राजेश ने घरवालों को जानकारी दी। कहा- उसे खोजने दिल्ली जाना होगा और पैसे वापस ले लिए। यह भी कहा कि अगर थाना-पुलिस हुआ तो नहीं खोजेगा।

बेहतर जिंदगी की चाह ले गई दिल्ली

बेहतर जीवन की चाह में बरुजन दिल्ली गया था ताकि काम कर परिवार की गुजर-बसर अच्छे से कर सके। उसकी तीन बेटियां हैं। दो की शादी हो चुकी है, एक अपने दो बच्चों के साथ अमरभिट्टा गांव में ही रहती है। अब परिवार में बरुजन, उसकी पत्नी, दो बेटियां व दो बेटियों के दो बच्चे हैं। जिले में उद्योग-धंधा नहीं है। यहां के हजारों मजदूर दिल्ली, मुंबई, केरल में काम करते हैं।

लोकल न्यूज़ का भरोसेमंद साथी!जागरण लोकल ऐपडाउनलोड करें