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श्री श्री ठाकुर के अगले चेतन प्रतीक का बीजारोपण, बबाई दा बने नए आचार्य देव

Satsang Ashram Head Arkadyut Chakraborty सत्संग आश्रम देवघर के नए अचार्य देव होंगे बुबाई दा। इसकी घोषणा रविवार को सत्संग आश्रम में दिवंगत आचार्य देव अशोक दा के पारलौकिक कार्यक्रम कार्यक्रम के दौरान हुई। 16 दिसंबर को अशोक दा का निधन हो गया था।

By MritunjayEdited By: Updated: Mon, 27 Dec 2021 05:39 AM (IST)
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सत्संग आश्रम देवघर के नए आचार्य देव बुबाई दा ( फोटो जागरण)।

आरसी सिन्हा, देवघर। सत्संग आश्रम की परंपराओं व जीवंत आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए अर्कद्युत चक्रवर्ती उर्फ बबाई दा वर्तमान आचार्य देव बने।  आश्रम के आचार्य देव अनुयायियों के ईष्ट श्रीश्री अनुकूल चंद्र ठाकुर के चेतन प्रतीक होते हैं। निवर्तमान आचार्य देव अशोक कुमार चक्रवर्ती के ज्येष्ठ पुत्र हैं। पारलौकिक कार्यक्रम पूरा होते ही सत्संग आश्रम के प्रेसिडेंट सह अशोक दा के मंझले भाई डा. आलोक रंजन चक्रवर्ती ने बड़ दा बाड़ी में इसकी विधिवत घोषणा किया। इसके बाद जय गुरू और वंदे पुरूषोत्तम से सत्संग आश्रम परिसर गूंज उठा। सुबह से चल रहा पुण्य पारलौकिक कार्यक्रम का समापन शाम में उसी स्थान पर सत्संग के बाद संपन्न हो जाएगा।

लाखों अनुयायियों का आस्था का केंद्र सत्संग आश्रम

लाखों अनुयायियों की आस्था का केंद्र यह आश्रम है। यहां आचार्य की परंपरा है। जानकार बताते हैं कि श्रीश्री ठाकुर अनुकूल चंद्र ने अपने काल में अनुयायियों व स्वजनों से कहा था कि सत्संग की परंपरा और यहां के आदर्शों को ज्येष्ठ ही आगे लेकर जाएगा। उसी परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। आचार्य का मतलब वह जो ईष्टदेव यानि श्रीश्री ठाकुर के पथ पर अनुयायियों को परिचालित करेंगे।  अनुयायियों के ईष्ट श्रीश्री ठाकुर का अनमोल संदेश आज भी जीवंत है।  ईष्ट गुरू पुरूषोत्तम, प्रतीक गुरू वंशधर। रेत: शरीर से सुप्तम रहकर जीवंत वे निरंतर...। इस पंक्ति के एक एक शब्द और वाक्य पर ही सत्संग आश्रम की आदि से चिरकाल तक की अविरल यात्रा है।

बचपन से ही बबाई दा आश्रम के आवरण में

54 वर्षीय बबाई दा बचपन से ही आश्रम के आवरण में अपने को ढ़ाल चुके थे। 27 साल की उम्र संभालते ही युवाओं के बीच श्रीश्री ठाकुर के उपदेश को लेकर चलने लगे। देश के कई प्रांतों में जहां आश्रम है वहां जाकर युवाओं को मानव प्रेम और ठाकुर के आदर्शों से अवगत कराना शुरू कर दिया था। आचरण सिद्ध् व्यक्तित्व ही आचार्य देव होते हैं। आचार्य देव के रूप में बबाई दा की घोषणा के वक्त सबकी निगाह प्रेसिडेंट की ओर टिकी थी। उनकी बोली लड़खड़ा रही थी, ठीक वैसे ही जैसे सनातन धर्म में परलोक सिधारने के बाद ज्येष्ठ को पगड़ी बांधने की परंपरा के वक्त का माहौल होता है।

पारलाैकिक कार्यक्रम में हजारों की भागीदारी

शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ के उच्च स्थान की प्रधानता है। सुबह से ही अशोक दा के पुण्य पारलौकिक क्रिया में भाग लेने के लिए 20 हजार से अधिक अनुयायी बिहार, बंगाल, असम से पहुंच चुके थे। सबके चेहरे पर मास्क लगा था। आनंद बाजार के विशाल मैदान में दो एलईडी लगा था जिस पर सारा कार्यक्रम का प्रसारण हो रहा था। कहीं भी भीड़ नहीं होने दी गयी। आश्रम के अंदर बड़ दा बाड़ी में जहां सारा क्रिया कर्म चल रहा था वहां कोविड का दो टीका लेने वाले को ही अनुमति दी गयी थी। 

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