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पुण्यतिथि विशेष: वकील की टिप्पणी ने बदल दी बिनोद बाबू की जिंदगी, क्लर्क की नौकरी छोड़ रच दिया इतिहास

बिनोद बाबू की जिंदगी को एक मिसाल के रूप में देखा जाता है। उन्होंने धनबाद कोर्ट में क्लर्क की नौकरी छोड़कर पढ़ाई की और अधिवक्ता बन गरीबों के हक के लिए लड़े। आज पूरे झारखंड में लोग उनकी पुण्यतिथी पर उन्हें श्रद्धांजलि देंगे ।

By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Sun, 18 Dec 2022 11:02 AM (IST)
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पुण्यतिथि विशेष: वकील की टिप्पणी ने बदल दी बिनोद बाबू की जिंदगी, क्लर्क की नौकरी छोड़ रच दिया इतिहास
दिलीप सिन्हा, धनबाद: बिनोद बिहारी महतो धनबाद कोर्ट में क्लर्क थे। धनबाद कोर्ट के एक वकील की टिप्पणी ने उनकी जिंदगी बदल दी। बलियापुर के एक गरीब परिवार का यह युवक बाद में झारखंड आंदोलन का मूर्धन्य नेता एवं झामुमो का संस्थापक बना। पूर्व मुख्यमंत्री व झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन को तराशने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। यही कारण है कि शिबू सोरेन उन्हें अपना धर्मपिता मानते हैं।

पूरा झारखंड उन्हें बिनोद बाबू के नाम से जानता है। बिनोद बाबू धनबाद कोर्ट में क्लर्क की नौकरी पाकर बहुत खुश थे। इस क्रम में एक वकील ने यह कहकर उनका मजाक उड़ाया की कि कितने भी चतुर बन जाओ, लेकिन रहोगे क्लर्क ही। बस यह बात उन्हें चुभ गई और उन्होंने इंटर की पढ़ाई धनबाद के पीके राय कालेज से करने के बाद स्नातक की पढ़ाई रांची कालेज और फिर लॉ की पढ़ाई पटना ला कालेज से की।

वकील बनकर उन्होंने बीएसएल, डीवीसी, कोल इंडिया के विस्थापितों की लड़ाई अदालत में लड़ी और उन्हें उनका हक दिलाया। विस्थापितों को जमीन के बदले नौकरी दिलाने की व्यवस्था भी उन्हीं की देन है। शिवाजी समाज का गठन कर कुर्मी समाज में सामाजिक बदलाव की लड़ाई लड़ी साथ ही 'पढ़ो और लड़ो' का नारा भी उन्होंने ही दिया। पूरे झारखंड में स्कूल-कालेज खोलकर अगली पीढ़ी के लिए शिक्षा का द्वार खोल दिया।

प्रसिद्ध माक्सवादी चिंतक एके राय और शिबू सोरेन के साथ मिलकर 1973 में झामुमो का गठन किया। झामुमो के वह पहले अध्यक्ष बने। तीन बार वह विधायक एवं एक बार सांसद बने। सांसद रहते हुए उनका निधन दिल्ली में 18 दिसंबर 1991 को हो गया था। झारखंड की राजनीति आज बिनोद बाबू के इर्द-गिर्द केंद्रित है। आज भी बिनोद बिहारी महतो के नाम पर चुनाव जीतने वाले झारखंड में एक दर्जन से अधिक विधायक हैं।

लाल-हरा मैत्री से बदली कोयलांचल की तस्वीर

बिनोद बाबू ने अपना राजनीतिक सफर वामपंथी पार्टी भाकपा से शुरू किया था। भाकपा के विभाजन के बाद वह माकपा में गए। बाद में माकपा छोड़ दी। कामरेड एके राय एवं शिबू सोरेन के साथ मिलकर झामुमो का गठन किया। एके राय एवं उनकी दोस्ती एक मिसाल थी। एके राय के साथ मिलकर उन्होंने लाल-हरा मैत्री का समीकरण खड़ा किया और कोयलांचल की तस्वीर बदल दी। जीवन के अंतिम समय तक वह लाल-हरा मैत्री के साथ खड़े रहे। बिनोद बाबू के राजनीतिक सहयोगी रहे झारखंड आंदोलनकारी जगत महतो ने बताया कि लाल-हरा मैत्री से बिनोद बाबू ने ऐसा गठबंधन तैयार किया कि विरोधियों के होश उड़ गए। आज झामुमो सत्ता पर काबिज है, तो इसका श्रेय बिनोद बाबू को ही जाता है। वह मीसा के तहत चार साल जेल में रहे लेकिन कांग्रेस सरकार से समझौता नहीं किया।

बलियापुर समाधि स्थल पर आज हजारों लोग देंगे श्रद्धांजलि, लगेगा मेला

बिनोद बिहारी महतो की समाधि बलियापुर कालेज परिसर में है। इसे बिनोद धाम के नाम से भी जाना जाता है। उनकी पुण्यतिथि के मौके पर 18 दिसंबर को समाधि पर हजारों लोग माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि देंगे। समाधि पर रविवार से बिनोद मेला लगेगा जो 24 दिसंबर तक चलेगा। बिनोद बाबू के पोते एवं युवा अधिवक्ता राहुल कुमार महतो ने बताया कि सुबह दस बजे से श्रद्धांजलि का कार्यक्रम शुरू होगा। इसके बाद श्रद्धांजलि सभा होगी। प्रत्येक दिन शाम को यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। राहुल महतो ने बताया कि श्रद्धांजलि सभा के मुख्य अतिथि प्रदेश के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो हैं। वह हेलीकाप्टर से रांची से सीधे बलियापुर पहुंचेंगे।

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