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जानलेवा हमले के बाद बढ़ता गया था लाला भैया का कद

कतरास ओपी लाल का कोयलांचल की राजनीति में अभ्युदय उस समय हुआ जब बाघमारा क्षेत्र में माफि

By JagranEdited By: Updated: Mon, 23 Nov 2020 07:45 AM (IST)
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जानलेवा हमले के बाद बढ़ता गया था लाला भैया का कद

कतरास : ओपी लाल का कोयलांचल की राजनीति में अभ्युदय उस समय हुआ जब बाघमारा क्षेत्र में माफिया ताकतें हावी थीं। शुरुआती दौर में लाल सामाजिक व सांस्कृति गतिविधियों में सक्रिय रहे। इसी बीच पूर्व विधायक, पूर्व सांसद व मंत्री रहे शंकर दयाल सिंह व उनके अनुज सत्यदेव सिंह के सानिध्य में आए। उन्होंने माफिया का विरोध शुरू किया। 80 के दशक में उन पर जानलेवा हमला हुआ, वे बाल बाल बचे थे। उनको रिक्शे पर बैठाकर कतरास के लोगों ने शहर में विरोध जुलूस निकाला। इसके बाद से लाल की लोकप्रियता में दिनोंदिन बढ़ती गई। शहर में लाला भैया के नाम से वे प्रसिद्ध हो गए।

इस घटना के बाद सांसद स्व. बिदेश्वरी दूबे का इन्हें भरपूर सहयोग मिला। नतीजा सयासी गलियारे में उनकी पैठ बढ़ती गई। 1985 के विधानसभा चुनाव में पूर्व सांसद स्व. शंकर दयाल सिंह व पार्षद स्व. सत्यदेव सिंह के विरोध के बावजूद उनको बाघमारा विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी घोषित किया गया। जनता पार्टी के प्रत्याशी रघुवंश सिंह को पराजित कर लाल विजयी हुए। बिदेश्वरी दूबे का साथ मिला तो उन्होंने माफिया गढ़ को ध्वस्त कर दिया। 1990 के चुनाव में पुन: कांग्रेस प्रत्याशी घोषित हुए। तब जलेश्वर महतो को शिकस्त दी। 1995 में फिर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लड़े और जलेश्वर को हराया। 2000 में हुए चुनाव में जलेश्वर महतो ने उन्हें पराजित कर दिया। नहीं किया दूसरे दल का रुख :

दलीय निष्ठा की मिसाल रहे ओपी लाल कांग्रेस के ही सिद्धांतों व विचारधारा पर चलते रहे। कभी दूसरे दल की ओर रुख नही किया। इंटक के वरीय नेता केबी सिंह कहते हैं कि कांग्रेस की नीतियों पर वे हमेशा चलते रहे। इंटक के राष्ट्रीय महामंत्री व झारखंड के अध्यक्ष रहे स्व. राजेंद्र सिंह भी उनका सम्मान करते थे। प्रदेश से लेकर केंद्र तक राजनीतिक गलियारे में इनकी मजबूत पकड़ थी। इंटक के केंद्रीय अध्यक्ष संजीवा रेड्डी से उनके मधुर संबंध थे। लाल की ट्रेड यूनियन की पारी कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के पश्चात 1973 में उन्होंने ट्रेड यूनियन से नाता जोड़ा। रामकनाली कोलियरी में इंटक से संबद्ध कोलियरी मजदूर संघ का शाखा सचिव बने। उन दिनों माइकेल जॉन संघ के केंद्रीय अध्यक्ष थे। 1978 में बेरमो में राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के अधिवेशन में संगठन मंत्री बने। मंत्रित्व काल में भी इस पद का दायित्व संभाला। बाद में इन्हें राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ का संयुक्त महामंत्री बनाया गया। बाद में वे संघ के कार्यकारी अध्यक्ष बने। उनके अनुभव व सूझ बूझ को देखते हुए केंद्र सरकार ने इन्हें नगदा खान दुघर्टना जांच समिति में मानक सदस्य बनाया। यह श्रमिक नेता मजदूरों के काम के लिए कोलियरी के पीओ से लेकर सीएमडी के पास तक स्वयं जाते थे। वे जीवन काल के दौरान डीएवी संस्थान, भारतीय पुस्तकालय, गंगा गोशाला कतरास, आर्य व्यायाम मंदिर, सूर्य मंदिर कतरास सहित कई संस्थाओं से जुडे़ रहे। बाघमारा अनुमंडल धनबाद में रहे इसके लिए भी वे हमेशा प्रयत्नशील रहे। धनबाद-चंद्रपुरा रेल लाइन बंद होने पर 20 माह तक चले आंदोलन को इन्होंने गति दी।

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