Shaheed Randhir Prasad Verma: यह तो समरभूमि, मुट्ठी भर मिट्टी जिसने चूमी, जीता...
किसी सिविलियन की शहादत के बाद राष्ट्रपति से लेकर हिंदुस्तान की नामचीन हस्तियां जिस तरह उद्वेलित हुई थीं यह अपने आप में अनोखा इतिहास है।
By MritunjayEdited By: Updated: Fri, 03 Jan 2020 10:31 AM (IST)
धनबाद [ जागरण स्पेशल]। 'खूबी इतनी कि दिल में घर कर जाएंगे, भुलाना आसान नहीं, ऐसा कुछ कर जाएंगे'-ये पंक्तियां धनबाद के जांबाज पुलिस अधीक्षक शहीद रणधीर वर्मा के संदर्भ में बेहद प्रासंगिक है। धनबाद के बैंक आफ इंडिया की हीरापुर शाखा में पंजाब के भगोड़े आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो जाने के 29 वर्षों बाद भी वह धनबाद कोयलांचल की जनता के दिलो-दिमाग में छाए हुए हैं तो यह उनके विशाल हृदय, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का प्रमाण है। वरना हृदयहीन सरकारी तंत्र में धनबाद के इतिहास का यह स्वर्णिम अध्याय कब का नष्ट हो चुका होता।
अशोक-चक्र से सम्मानित होने वाले पहले सिविलियन
शहीद रणधीर वर्मा ने अपने प्राण की आहुति देकर न केवल पुलिस के लिए अनुकरणीय मिसाल कायम की थी, बल्कि अशोक-चक्र पदक के दिए जाने के मामले में भी इतिहास बनाया। वह पहले सिविलियन थे, जिन्हें मरणोपरांत 26 जनवरी 1991 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरामन ने शांतिकाल में वीरता के लिए दिए जाने वाले सर्वश्रेष्ठ पदक अशोक-चक्र सम्मानित किया था। वेंकटरामन ने अपने संदेश में कहा था –श्री रणधीर प्रसाद वर्मा ने देश के पुलिसकर्मियों के लिए साहस, नेतृत्व और निस्वार्थ कर्तव्यपरायणता का महान उदाहरण पेश किया। यद्यपि श्री वर्मा और उनके सुरक्षा गार्ड संख्या में कम थे। फिर भी उन्होंने बैंक लुटेरों से से मुकाबला करने का साहसिक निर्णय लिया और अपने जीवन का बलिदान देकर असाधारण वीरता का परिचय दिया।
शहादत के बाद उद्वेलित हुई थीं नामचीन हस्तियांशहादत के बाद राष्ट्रपति से लेकर हिंदुस्तान की नामचीन हस्तियां जिस तरह उद्वेलित हुई हुई थीं, यह अपने आप में अनोखा इतिहास है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था – श्री रणधीर वर्मा निस्वार्थ कर्तव्यपरायणता और साहस की प्रतिमूर्ति थे। उनका वास्तविक सम्मान तभी होगा, जब पुलिस के लोग उनके बलिदान से प्रेरणा लेकर अपने कर्तव्य का पालन करेंगे। राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे सिकंदर बख्त ने कहा था - हमारे देश को, हमारी आरक्षी सेवा को शहीद रणधीर वर्मा की कर्तव्यनिष्ठा पर फक्र है। जीवन से बड़ा बलिदान और कुछ नहीं हो सकता। देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए भारतीय पुलिस सेवा को रणधीर वर्मा जैसे सपूतों की आवश्यकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरलीमनोहर जोशी कहा था कि रणधीर वर्मा एक ऐसे देशभक्त वीर थे, जिन्होंने आतंकवाद के विरूद्ध संघर्ष में अपना जीवन होम कर दिया। अपने बलिदान द्वारा प्रशासनिक सेवाओं के लिए उन्होंने अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किया था। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ एवं देशभक्त नरपुंगव को श्रद्धांजलि। भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिहं ने कहा था – देश के मौजूदा हालात को देखते हुए शहीद रणधीर वर्मा जैसे वीरों की याददाश्त ताजी रखना व्यक्ति पूजा नहीं, देश को सही मूल्यों के प्रति सचेत रखने की दिशा में एक आवश्यक कदम हो।
आज के दाैर में युवा-युवतियों के लिए प्रेरणास्रोतआज जब चारों ओर स्वार्थसिद्धि की दिखती है, रणधीर वर्मा का बलिदान व उनकी कर्तव्यपरायणता नवयुवको व नवयुवतियों के लिए प्रेरणात्मक होगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह कहा था – आज के युग में जहां मानवता और राष्ट्रीयता की भावना संकीर्ण होती जा रही है, उसी की वेदी पर अपने प्राण को अर्पित कर रणधीर वर्मा ने आरक्षी सेवा के इतिहास में एक नए युग का सृजन किया। उनकी शौर्यगाथा को लिपिबद्ध करने की जरूरत है। बिहार कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे पूर्व सांसद विजय शंकर मिश्र रणधीर वर्मा की कर्तव्यनिष्ठा के बड़े दीवने हैं। उन्होंने बिहार राज्य टेनिस संघ के अध्यक्ष की हैसियत से रणधीर वर्मा की शहादत के बाद उनकी याद में पूरे बिहार में पांच मेजर टेबुल टेनिस प्रतियोगिता और एक राज्यस्तरीय टेबुल टेनिस प्रतियोगिता आयोजित करवाई थी। उन्होंने शहीद वर्मा के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था – रणधीर वर्मा की शहादत शताब्दियों तक राष्ट्र की युवा-शक्ति का पथ आलोकित करती रहेगी।
भावुक हो गए थे कवि ह्रदय अटल बिहारी वाजपेयीभारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रणधीर प्रसाद वर्मा की शहादत की खबर सुनकर भाजपा के संस्थापक कवि अटल बिहारी वाजपेयी भावुक हो गए थे। धनबाद के रणधीर वर्मा चाैक पर जब शहीद की प्रतिमा स्थापित करने की बात आई तो वाजपेयी भी अपने को रोक नहीं पाए। लोकसभा में विपक्ष के नेता रहते हुए वाजपेयी 3 जनवरी 1994 को हावड़ा से ट्रेन पकड़कर धनबाद पहुंंचे। उन्होंने प्रतिमा का अनवारण किया।
मरते हैं डरपोक घरों में बांध गले रेशम का फीताअविभाजित बिहार के आरक्षी महानिरीक्षक रहे श्री गजेंद्र नारायण को जब रणधीर वर्मा की शहादत की खबर मिली थी तो सहसा उनके जुबान पर हिंदी के स्वनामधन्य कवि गोपाल सिंह नेपाली की लोकप्रिय पंक्तियां आ गई थीं –मरते हैं डरपोक घरों में बांध गले रेशम का फीता, यह तो समरभूमि, मुट्ठी भर मिट्टी जिसने चूमी, जीता। उन्होंने कहा था कि रणधीर वर्मा ने जीते जी और शहादत को गले लगाकर भी गोपाल सिंह नेपाली की इन पंक्तियों को अक्षरश: चरितार्थ कर दिया। उन्होंने उस धरती को अपने महान पराक्रम से चूम लिया, जो कर्तव्य, सेवा और समर्पण की धरती है। बिहार के ही एक अन्य वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी श्री विजयानंद पांडेय अपने सेवाकाल में रणधीर वर्मा की कार्यशैली के कायल हो गए थे। जब उन्हें शहादत की खबर मिली तो तुरंत ही शहीद वर्मा की पत्नी प्रो.रीता वर्मा को खत भेजा, जिसमें रणधीर वर्मा से अपने जुड़ाव की चर्चा करते हुए लिखा था – रणधीर वर्मा मेरे सहकर्मी थे और एस साथ कंधे से कंधा मिलाकर हमने काम किया था।
रणधीर की शहादत पर धनबाद गर्वान्वित स्मृति पटल पर रणधीर के व्यक्तित्व के कई पहलू आकाश गंगा की तरह देदीप्यमान प्रकाशपुंज की तरह प्रकट होते हैं और किनकी चर्चा की जाए, यह विचार करना कठिन हो गया है। झारखंड काडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी तथा भारत सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव एसएन प्रधान भी शहीद रणधीर वर्मा की बहादुरी और न्यायप्रियता के कायल हैं। उन्होंने रणधीर वर्मा के शहादत दिवस पर पुरानी यादों को साझा करते हुए कहा था कि उन्हें 4 जनवरी 1991 को धनबाद में आईपीएस प्रोवेशन के रूप में योगदान करना था। इसके एक दिन पहले ही जब वह भुवनेश्वर में अपने घर के पास ही सैलून में बाल बनवा रहे थे रेडियो से खबर प्रसारित की गई कि रणधीर वर्मा मुठभेड़ में मारे गए हैं। यह सुनते ही काठ मार गया। वह रणधीर वर्मा की न्यायप्रियता, सहृदयता और कर्तव्यनिष्ठा के बारे में जानते थे। आनन-फानन में जब वह धनबाद पहुंचे तो एसपी साहब की अंतिम यात्रा शुरू हो चुकी थी। चारों ओर जन सैलाब उमड़ा हुआ था। आज भी उस घटना को याद करना किसी बुरे सपने की तरह लगता है। वाकई, रणधीर वर्मा के गुजरे 29 साल बीतने के बावजूद वह लोगों के दिलो-दिमाग पर एक लिजेंड की तरह छाए हुए हैं। भारत माता के ऐसे वीर सपूत को नमन।
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