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इत‍िहास के झरोखे से: नौशाद के सामने लता मंगेशकर हुई बेहोश...जब गाते हुए ज़ख्मी हुए मुहम्मद रफ़ी

मुंबई आ कर नौशाद साहब उस्ताद झंडे खान के यहां 40 रुपये महीने की तनख़्वाह पर काम करने लगे। झंडे खां साहब के सितारे उन दिनों बुलंदी पर थे..... बहरहाल कुछ दिनों के बाद एक पियानोवादक के रूप में वो मुश्ताक हुसैन की आॉरकेस्ट्रा में काम करने लगे

By Atul SinghEdited By: Updated: Mon, 16 May 2022 01:55 PM (IST)
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मुंबई आ कर नौशाद उस्ताद झंडे खान के यहां 40 रुपये महीने की तनख़्वाह पर काम करने लगे। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)
बाकी फिर कभी (कॉलम): (भाग -2 नौशाद) मुंबई आ कर नौशाद साहब उस्ताद झंडे खान के यहां 40 रुपये महीने की तनख़्वाह पर काम करने लगे। झंडे खां साहब के सितारे उन दिनों बुलंदी पर थे..... बहरहाल कुछ दिनों के बाद एक पियानोवादक के रूप में वो मुश्ताक हुसैन की आॉरकेस्ट्रा में काम करने लगे और उनके सहायक के रूप में अधूरी फ़िल्म "स्काॅर्पियो” को भी पूरा किया।

इसके बाद मशहूर संगीतकार खेमचंद्र प्रकाश ने 60 रुपये की माहवारी तनख़्वाह पर रंजीत स्टूडियो में फ़िल्म "कंचन” के लिए अपने सहायक के तौर पर रख लिया..... जिसके लिए नौशाद ताउम्र ना सिर्फ़ उनके एहसानमंद रहे बल्कि उन्हें अपना गुरु भी माना।

देखते -देखते साल 1944 आ पहुँचा और इस साल में वो कारनामा कर दिया नौशाद साहब ने जिसके लिए सारी दुनिया ....ता -क़यामत उनकी एहसानमंद रहेगी।

उन्होंने एक ऐसे गायक की प्रतिभा को पहचान कर समूहगान ( कोरस ) में गाने का मौका दिया ......आगे चलकर जिसके गानों को सुनकर विश्व भर के लोग सोने -जागने लगे। जिसका नाम ही सर्वोच्च गायकी का प्रतीक बन गया । जिसकी आवाज़ कानों के ज़रिए दिल में नहीं सीधे रूह में उतर जाती है... मैं बा-अदब ज़िक्र कर रहा हूँ विश्व रत्न मुहम्मद रफ़ी साहब का । फिल्म का नाम "पहले आप " ...गाने के बोल हैं "हिंदुस्ताँ के हम हैं-हिंदुस्तान हमारा " । इस गीत को मुहम्मद रफ़ी, श्याम कुमार, अल्लाउद्दीन नावेद और बी. एम व्यास ने मिलकर गाया था और गीतकार का नाम है डी. एन. मधोक। इस गीत में सैनिकों के मार्च पास्ट के ध्वनि प्रभाव के लिए नौशाद साहब ने सारे गायकों को मिलट्री बूट पहानए और गाने के ताल के साथ पैर पटकते रहने का भी निर्देश दिया। जब गाना रिकाॅर्ड हो गया तो गायकों ने बूट उतारे.... सबके पैरों में छाले पड़ गए थे.. और मुहम्मद रफ़ी साहब के तो पैरों से ख़ून भी बह रहा था।

संगीत निर्देशक के रूप में सन् 1940 में आई "प्रेम नगर " उनकी पहली फिल्म और सन् 2005 में रिलीज़ हुई फ़िल्म " ताजमहल :- एन इटरनल लव स्टोरी " उनकी आख़िरी फ़िल्म थी। उन्होंने इतने लंबे अरसे में कुल 67 फ़िल्मों में संगीत दिया।

सन् 1944 में ही ए. आर. कारदार की बनाई हुई नौशाद के सुपरहिट संगीत से सजी वो फ़िल्म "रतन ” रिलीज़ हुई थी जिसके गाने पूरे मुल्क के साथ -साथ नौशाद साहब की शादी में भी धूम मचा रहे थे। ख़ास कर ज़ोहरा बाई अंबालेवाली का गाया हुआ गीत "अँखियाँ मिला के -जिया भरमा के " ऐसा हिट हुआ कि नौशाद साहब के संगीत का जादू लोगों के सर चढ़ कर बोलने लगा।

इस फ़िल्म का निर्माण उस ज़माने में 75 हज़ार रुपये में हुआ था। यह रकम उन दिनों में कितनी बड़ी रकम थी इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि तब 10 ग्राम सोने की क़ीमत 80 से 85 रुपये के बीच रहती थी। फ़िल्म कंपनी को इस फ़िल्म के गानों के रिकॉर्ड की बिक्री से सिर्फ़ 6 महीनों में ही साढ़े तीन लाख रुपये की राॅयल्टी प्राप्त हुई थी। नौशाद साहब की तूती बोलने लगी थी और 600 रुपये की माहवारी तनख़्वाह पर काम करने वाले नौशाद अली को अब एक फ़िल्म के लिए 25000 रुपये मिलने लगे थे।

उनके संगीत से सजी सभी 67 फिल्मों में से 50 से ज़्यादा फ़िल्में जुबली हिट रही हैं। 35 सिल्वर जुबली, 12 गोल्डन जुबली और 3 डायमंड जुबली एक ग़ैरमामूली कीर्तिमान है। उनके यादगार संगीत से सजी फ़िल्मों की फ़ेहरिस्त में रतन, अनमोल घड़ी, नई दुनिया, आन, संजोग, तेरी पायल मेरे गीत, बैजू बावरा, मुग़ल -ए-आज़म, मदर इंडिया, गंगा जमुना, लीडर, साथी, राम और श्याम, आदमी, संघर्ष का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। राजेन्द्र कुमार और वैजयंती माला अभिनीत फ़िल्म " साथी ” के गाने हिंदुस्तानी संगीत की शास्त्रीयता और पाश्चात्य संगीत की हारमनी के संतुलित मिश्रण का नायाब नमूना हैं। इसी फ़िल्म में मुकेश जी के गाए हुए गीत " हुस्न -ए- जाना इधर आ आईना हूँ मैं तेरा ” में गीत के मुखड़े में ही स्पैनिश गिटार का जैसा काॅर्ड प्रोगरेशन ( स्वर समूह प्रगति पथ) इस्तेमाल किया गया है कि उसकी दीग़र मिसाल पूरे भारतीय संगीत में कहीं नहीं है। इसी फ़िल्म में मुकेश जी और सुमन कल्याणपुर जी के गीत " मेरा प्यार भी तू है -ये बहार भी तू है ” में स्ट्रिंग सैक्शन (वायलिन समूह), सैक्सोफ़ोन और स्पैनिश गिटार का विलक्षण स्ट्रमिंग पैटर्न ( गिटार पर काॅर्ड बजाने के लिए दाहिने हाथ को विशेष तरह से हिलाते हुए तारों को छेड़ने का तरीका) अतुलनीय, अविश्वसनीय, अद्भुत और अविस्मरणीय है। मेरी तरफ़ से और आप सभी वास्तविक संगीतप्रेमियों की तरफ़ से हज़ारों सलाम।

नौशाद साहब का संगीतबद्ध किया हुआ फ़िल्म " बैजू बावरा का गीत "ओ दुनिया के रखवाले" एक अनमोल और ऐसा कालजयी गीत है जिसमें शहंशाह -ए- तरन्नुम मुहम्मद रफ़ी की जज़्बातों से तर-ब-तर आवाज़ को नौशाद साहब नें पांचवें सप्तक के पाँचवें काले सुर तक बख़ूबी... रिकॉर्ड किया है। नौशाद साहब के बेहतरीन सुर संयोजन और रफ़ी साहब के बेमिसाल दम -ख़म का ऐसा नमूना है ये गीत जिसकी दीगर मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलती है ।

काम की बेहतरी के लिए नौशाद साहब किस कदर पाबंद थे आप इस वाक़ये से समझ लीजिए कि एक गाने की रिकाॅर्डिंग के वक्त स्टूडियो में लता मंगेशकर जी को एक बार और -एक बार और कह कर मुतमईन (संतुष्ट) ना होने पर लगातार गवाते जा रहे थे। बिना एयरकंडीन मशीन और बिना पंखे के... एयरटाईट छोटे से गायन कक्ष में बंद लता जी भीषण गर्मी से बेहाल हो कर लगातार सत्रहवीं बार गाने को गाते हुए बेहोश हो गईं। बहरहाल जब लता जी को होश आया तो फिर से अठारहवीं बार रिकाॅर्डिंग चालू हुई और गाना फ़ाईनल रिकॉर्ड हुआ। ये बेहतरीन नग़मा "तेरे सदक़े बलम " सन् 1954 में रिलीज़ हुई फ़िल्म "अमर " का है और इसके नग़मानिगा़र ( गीतकार) हैं ...शकील बदायूंनी।

नौशाद साहब को उनके उतकृष्ट संगीत रचना की ख़ातिर फ़िल्मों के सर्वोच्च पुरस्कार "दादा साहब फ़ाल्के अवार्ड " और भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से नवाज़ा जा चुका है। कई फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड, लता मंगेशकर अवार्ड सहित और ढेर सारे अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है.... लेकिन सबसे बड़ा अवार्ड उन्हें और उनके संगीत को लोगों के प्यार के रूप में मिला है। लिखने के लिए तो इतना है कि पूरा शोध प्रबंध तैयार हो जाएगा । क्या लिखूँ और क्या नहीं कुछ समझ ही पा रहा हूँ। इसलिए मुख़्तसरन (संक्षेप में) इतना ही कि ......बाकी फिर कभी।

जैसा संगीत निर्देशक शेखर श्रीवास्तव ने धनबाद संवाददाता आशीष सिंह को बताया।

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