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Jharkhand: हथेली पर जान ले मौत से छीनीं तीन जिंदगियां, जांंबाज युवकों ने बचाई धधकती गोफ में गिरे लोगों की जान

Jharkhand News in Hindi सोमवार देर रात को जब कतरास के जोगता 11 नंबर बस्‍ती में अचानक से गोफ बन गया तो उसमें एक मकान और मंदिर भरभराकर समा गया। मकान में सोए तीन लोग उसमें गिर गए। इन्‍हें बचाने के लिए पड़ोस के तीन युवकों ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी। इन्‍होंने जैसे-जैसे तीनों को उसके अंदर से बाहर निकाला।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Thu, 17 Aug 2023 08:23 AM (IST)
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जख्मी तरूण कुमार, श्याम बहादुर भुइयां और अरूण कुमार।
संवाद सहयोगी, कतरास। Jharkhand News in Hindi: सोमवार की रात बारिश बंद हो चुकी थी। जोगता 11 नंबर बस्ती के लोग घरों में सो रहे थे। तभी अचानक धमाका हुआ, जमीन थरथराने लगी, गोफ बना और उसका दायरा बढ़ने लगा। एक मकान और मंदिर भरभराकर उसमें समा गया।

जान हथेली पर लेकर तीन युवकों ने बचाई तीन जिंदगी

मकान में सोया 43 साल का श्याम बहादुर, उनका बेटा 14 साल का अरुण कुमार व नौ वर्षीय तरुण कुमार भी उसमें गिर गए। चीख पुकार मच गई। पड़ोसी जाग गए, वे भी जान बचाने को बाहर भागे, वहां का नजारा देखा तो हड़कंप मच गया।

बावजूद अपने पड़ोसियों को जमीन में दफन होते देख मोहल्ले के तीन युवकों ने जान हथेली पर ली और दौड़ पड़े उनको बचाने। फिर क्या था, सामूहिक कोशिश रंग लाई, तीन जिंदगियों को ये मौत के मुंह से बचा लाए।

न आव देखा न ताव बस गोफ में कूद गए तीनों

उनको बचाने वाले राम बहादुर ने बताया कि रात सवा दो बजे थे। हम भी बाहर निकले थे, भाई का मकान गोफ में गिर गया था। तब भाई और बच्चों का नाम लेकर चिल्लाए। वे दिखे, एक दीवार के मलबे में दबे हुए। तब कलेजा मुंह को आ गया।

तब तक पड़ोसी धनपत भुइयां और विनोद भी आ गए। तीनों ने तय किया कि जो होगा देखा जाएगा, गोफ से इनको निकाल कर रहेंगे। बस गोफ में कूद गए। जमीन दरक रही थी, न जाने कहां से ताकत आ गई, डर भी भाग गया था, हम तीनों किसी प्रकार मलबे से तीनों को निकाल लाए। उनकी हालत खराब थी, तुरंत अस्पताल ले गए।

धधकती आग पर रह रही 13 सौ की आबादी

धनपत व राम बहादुर ने बताया कि जोगता 11 नंबर बस्ती के नीचे आग धधक रही है। पूर्व में हुए खनन के कारण यहां धंसान कई बार हो चुका है, भूमिगत आग भी बढ़ रही है।

यहां 13 सौ की आबादी है, जो जमीन से निकलती गैस के बीच जीवन गुजार रही। काल के साए में यहां जिंदगी रोज दौड़ती है, आखिर जाएं तो कहां जाएं। कई साल से पुनर्वास की मांग उठा रहे, बावजूद कोई सुन नहीं रहा।

झरिया पुनर्वास विकास प्राधिकार के प्लान में बस्ती का भी नाम है। इधर बीसीसीएल एजीएम संजय कुमार का कहना है कि राष्ट्रीयकरण के पूर्व यहां से कोयला निकाला गया था। इधर बारिश भी हुई इसलिए जमीन धंस गई। यहां से लोगों को हटने के लिए कई बार नोटिस दिया गया। पुनर्वास के लिए आवास दिखाए, मगर लोग जाने को तैयार नहीं है।

पांच परिवार के सिर से छिन गई छत

इस घटना में राम बहादुर का घर दरक गया है।  वह परिवार के साथ नीम के पेड़ के नीचे छावनी बनाकर रह रहे हैं। विनोद भी बच्चों के साथ पड़ोसी के घर शरण लिए है। धनपत बगल की एक दुकान की छावनी में अपना सामान रखे हैं। इनके घर ऐसे दरक गए हैं कि वहां रहना खतरे से खाली नहीं।

श्याम बहादुर का घर तो ढह ही चुका है। कारू भुइयां अंगारपथरा रिश्तेदार के यहां परिवार को लेकर चला गया। कारू ने बताया कि मजदूरी करके जी लेंगे। यहां रहना तो खतरे से खाली नहीं। बीसीसीएल कर्मी सरयू भुइयां को निचितपुर टाउनशिप में घर मिल गया है।

गांव में बिजली नहीं है। धुआं और गैस से आंख में जलन होती है। हमारे पुनर्वास की व्यवस्था हो- हरिचरण बाउरी, मजदूर, जोगता 11 नंबर बस्ती।  

मेरा घर सबसे खतरनाक जगह पर है। पहले पुनर्वास की व्यवस्था कराएं तभी यहां गोफ की भराई करने देंगे- -धनपत भुइयां, मजदूर, जोगता 11 नंबर बस्ती।

उस भयावह दृश्य को याद कर कलेजा कांपता है। तीन आदमी मिलकर तीन जिंदगियों को निकाल रहे थे। डर लग रहा था कि क्या होगा। अब वैसी घटना नहीं हो, प्रबंधन इंतजाम करें- बिनोद भुइयां, मजदूर, जोगता 11 नंबर बस्ती।

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