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पाकुड़: पहाड़ पर नहीं ठहर रही पहाड़ियों की जवानी, इस गांव में 40 पार के सिर्फ पांच

Pahadia primitive tribe गांव के बमना पहाडिय़ा कहते हैं कि हमारे गांव में बुधू पहाडिय़ा बामरी पहाडिऩ मुरकी पहाडिऩ व दो अन्य लोग हैं जो 40 साल की उम्र पार कर गए हैं। तीन चार साल में गांव के पांच लोग पीलिया व टाइफाइड से मर गए।

By MritunjayEdited By: Updated: Tue, 15 Feb 2022 08:54 AM (IST)
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पहाड़िया आदिम जनजाति कुपोषण की शिकार ( फाइल फोटो)।

रोहित कुमार, पाकुड़। आदिम जनजाति पहाडिय़ा समुदाय के लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं। पाकुड़ के बमनी पहाडिय़ा गांव को ही लें, यहां 40 साल से अधिक उम्र के केवल पांच लोग हैं। पौष्टिक भोजन की कमी, अधिक शराब का सेवन व स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव इनकी जिंदगी ले रहा है। जिला मुख्यालय से 25 व हिरणपुर प्रखंड मुख्यालय से आठ किमी दूर इस गांव का जीवन बेहद दुरूह है। पहाडिय़ा समुदाय के इस गांव में 35 परिवार हैं। आबादी 160 है। पढ़े-लिखे लोग एक भी नहीं हैं। न स्कूल, न स्वास्थ्य केंद्र और न यहां तक पहुंचने के लिए अच्छी सड़क। ये हालात यहां के ग्रामीणों का दर्द बयां करते हैं।

कुपोषण और एनीमिया की शिकार पहाड़िया

गांव के बमना पहाडिय़ा कहते हैं कि हमारे गांव में बुधू पहाडिय़ा, बामरी पहाडिऩ, मुरकी पहाडिऩ व दो अन्य लोग हैं, जो 40 साल की उम्र पार कर गए हैं। तीन चार साल में गांव के पांच लोग पीलिया व टाइफाइड से मर गए। गांव में स्वास्थ्य केंद्र होता तो उनकी जान बच सकती थी। यहां के लोग अस्पताल तभी जाते हैं जब बीमारी बढ़ जाती है। क्या करें साहब, दूर तक मरीज को ले जाने में खर्च भी तो होता है। पौष्टिक भोजन की बात डाक्टर करते हैं, हम गरीब कहां से करें। कुपोषित हो जाते हैं, एनीमिया के शिकार भी।

सरकारी अनाज पर निर्भर दो वक्त की रोटी

कुछ परिवार खेती कर लेते हैं तो कुछ कभी कभार जंगलों से लकड़ी काटकर बेचते हैं। सरकार की ओर से मिलने वाले अनाज से भोजन का इंतजाम होता है। गुहिया पहाडिऩ कहती हैं- कैसे जिंदगी कटती है, बता नहीं सकते। अभाव ही मुकद्दर बन गए। दो माह से पेंशन भी नहीं मिली।

गांव में एक चापाकल, स्वास्थ्य केंद्र नहीं

मुरकी पहाडिऩ ने बताया कि गांव में पानी की किल्लत है। स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल व आंगनबाड़ी भी नहीं है। बीमार हुए तो हिरणपुर के डांगापाड़ा स्वास्थ्य केंद्र जाना होता है। गांव से स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने की कोई सुविधा नहीं। गांव आने को पथरीला मार्ग है। इस पर चार पहिया वाहन नहीं चल सकता।

पहाडिय़ा समुदाय हो जागरूक : डा. शंकर

सदर अस्पताल के चिकित्सक डा. शंकर लाल मुर्मू कहते हैं कि जागरूक होना होगा ताकि सरकार की योजनाओं का ये लाभ ले सकें। ये बीमार पडऩे पर बिना परामर्श खुद जड़ी-बूटी से इलाज करते हैं जो खतरनाक होता है। अधिकतर लोग कुपोषण व एनीमिया से ग्रस्त हैं। जब तक डाक्टर के पास पहुंचते हैं, स्थिति बिगड़ जाती है।

पहाडिय़ा जनजाति पर सरकार दे ध्यान

सामाजिक कार्यकर्ता शिवचरण मालतो कहते हैं कि पहाडिय़ा समाज के लोगों की उम्र कम होने का कारण कुपोषण है। 40 साल के ऊपर कम ही लोग पहुंच पाते हैं। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने सर्वे किया, पता चला कि पाकुड़ में करीब 12 हजार परिवार हैं, आबादी करीब 50 हजार। जिस रफ्तार से दूसरी जातियों की आबादी बढ़ रही, वैसी पहाडिय़ा की नहीं बढ़ रही। सरकारी योजनाएं भी सही तरीके से नहीं पहुंचती हैं।

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