पाकुड़: दिल है झारखंडी, रहन-सहन बंगाली
वर्ष 1994 में तत्कालीन बिहार सरकार ने पाकुड़ को अलग जिले का दर्जा दिया। यहां के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि बंगाल के वीरभूम व मुर्शिदाबाद जिले से सटे होने के कारण वर्षों से बंगाल का प्रभाव पाकुड़ जिले पर पड़ता रहा है।
By MritunjayEdited By: Updated: Mon, 14 Feb 2022 11:01 AM (IST)
गणेश पांडेय, पाकुड़। 1757 में पलासी की लड़ाई के बाद पाकुड़ राज और महेशपुर राज नामक दो छोटी रियासतें अस्तित्व में आईं। पलासी युद्ध के समय महेशपुर राज का शासन बाकू सिंह के वंशज गर्जन सिंह संभाल रहे थे। महेशपुर को उस समय सुल्तानाबाद के नाम से जाना जाता था। पाकुड़ राज का इतिहास महेश से जुड़ा हुआ है। पलासी की लड़ाई के बाद विजयी अंग्रेजों ने अपने प्रशासनिक तंत्र को विकसित किया, ताकि पश्चिम बंगाल के बीरभूम, मुर्शिदाबाद जिले के माध्यम से वे इन क्षेत्रों को नियंत्रित कर सकें। अंग्रेजी शासन के समाप्त होते ही बंगाल से सटे जिले विकसित होने लगे।
12वीं शताब्दी में राजमहल के अंतर्गत पाकुड़ एक नगर था। वर्ष 1994 में तत्कालीन बिहार सरकार ने पाकुड़ को अलग जिले का दर्जा दिया। यहां के बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि बंगाल के वीरभूम व मुर्शिदाबाद जिले से सटे होने के कारण वर्षों से बंगाल का प्रभाव पाकुड़ जिले पर पड़ता रहा है। वर्षों से यहां के लोग बंगाली परिवेश में जी रहे हैं। पाकुड़ जिला झारखंड में है, परंतु यहां के सामाजिक जीवन बिल्कुल बंगाल का है। खान-पान पर बंगाल का असर दिखता है तो रहन-सहन व जुबान पर भी।
मुस्लिम आबादी अधिक है। इसलिए लोग यही समझते हैं कि मुस्लिम है तो उनकी जुबान पर उर्दू होगी, मगर पाकुड़ में ऐसा नहीं है। एकबारगी ऐसा लगेगा कि बंगाल में आ चुके हैं। मुसलमान इस अंदाज में बांग्ला बोलते हैं कि अगर उनके पहनावे पर गौर न करे तो ऐसा लगेगा कि किसी बाबू मोशाय से बातें हो रही हैं। पाकुड़ शहर ही नहीं बल्कि महेशपुर, हिरणपुर, पाकुडिय़ा में भी 90 फीसद से अधिक लोग बांग्ला बोलते समझते हैं। रहन-सहन भी बंगाली जैसा ही है। सेवानिवृत्त प्राचार्य डा. त्रिवेणी भगत कहते हैं कि पाकुड़ जिले में बांग्ला परिवेश साफ झलकता है। इसकी प्रमुख वजह पाकुड़ का बंगाल से सटा होना है।
राजघराना में भी बांग्ला का असरपाकुड़ राजबाड़ी कभी अंबार स्टेट के नाम से जाना जाता था। उस समय अंबार स्टेट बादशाह अकबर के अंदर था। दिल्ली से जुड़ा हुआ था। सिराजुदल्ला के शासन काल में बंगाल का बहरमपुर राजधानी हुआ करता था। राजबाड़ी का लगाव कोलकाता से भी था। पाकुड़ में बांग्ला परिवेश का यह भी एक प्रमुख कारण है। राजघराने के लोग भी परिवार में बांग्ला भाषा का उपयोग करते हैं। ङ्क्षहदी भी बोली जाती है। राजीव पांडेय ने बताया कि हमलोग के यहां बांग्ला-हिंदी संयुक्त रूप से बोली जाती है।
पूजा-पाठ पर भी बंगाल का असरबासंतिक नवरात्र के समय पाकुड़ जिले के विभिन्न मंदिरों व पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। अधिकतर मंदिरों में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना बांग्ला विधि से होती है। बंगाल से पुरोहितों को बुलाया जाता है। बंगाल के अलावा स्थानीय पुरोहित भी बांग्ला से मंत्रोच्चार कर पूजा कराते हैं। दुर्गा पुजा के पांच दिन बाद जिलेभर में लक्खी पूजा भी होती है। बंगाल में लक्खी पूजा का काफी प्रचलन है। ङ्क्षहदू समुदाय के लोग घर-घर लक्खी पूजा करते हैं। पाकुड़ जिले में भी अधिकतर घरों में लक्खी पूजा होती है।
पाकुड़ आइए तो रसगुल्ला व रसकदम जरूर खाइएपाकुड़ के लोग रसगुल्ला व रसकदम के काफी शौकीन हैं। यह काफी स्वादिष्ट भी होती है। ढाका दुकान की रसकदम का तो जवाव ही नहीं है। यह विभिन्न राज्यों में जा चुकी है। पाकुड़ से बाहर जाने वाले लोग संदेश के रूप में रसकदम ही ले जाते हैं।
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