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बबुआ की राजनीति के पीछे काैन ? क्या भाईजी को सफल होने देगी बहना ?

इन दिनों बाबा कुछ ज्यादा ही चौकन्ना हो गए हैं। इसमें गलत कुछ नहीं है। चुनाव के समय होना ही चाहिए।

By mritunjayEdited By: Updated: Mon, 04 Mar 2019 09:41 AM (IST)
बबुआ की राजनीति के पीछे काैन ? क्या भाईजी को सफल होने देगी बहना ?
धनबाद, जेएनएन। शक्ति प्रदर्शन करने के बाद बबुआ चुप हैं। अब आगे क्या करेंगे? क्या सचमुच चुनाव लड़ेंगे या चचा के हाथी की तरह बैठ जाएंगे? सब लोग जानना चाहते हैं। इसका जवाब तो एक महीने बाद ही मिल पाएगा। लेकिन, इस राजनीति को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। गरमागरम चर्चा यह है कि बबुआ की राजनीति के पीछे भाईजी हैं। वह बबुआ को आगे कर टिकट बचाने के लिए प्रेशर पॉलीटिक्स कर रहे हैं। दरअसल, भाईजी का टिकट खतरे में हैं। वह बचाने के लिए किसिम-किसिम का जतन कर रहे हैं। इसी की एक कड़ी बबुआ भी हैं। पार्टी को संकेत दे रहे हैं कि उनका टिकट कटा तो खतरा कम नहीं होगा। पार्टी के लिए खतरा बढ़ जाएगा। बबुआ चुनाव लड़ेंगे। वोट बिखर जाएगा। पार्टी हार जाएगी। उन्हें टिकट मिला तो मैनेज कर लेंगे। जैसे चचा का हाथी बैठ गया था उसी तरह बबुआ भी बैठ जाएंगे। बबुआ ने भी संदेश दिया ही है कि बाहरी उम्मीदवार होगा तो वे लोग विरोध करेंगे। वैसे इस राजनीति में बहना भी एक पेंच हैं। वह चाहती हैं कि बबुआ लोकसभा चुनाव लड़ें। वह लड़ लेंगे तो उनका रास्ता साफ होगा। विधानसभा चुनाव के समय दावेदारी नहीं कर पाएंगे। किसी कारण युवराज नहीं लड़े तो बहना लड़ेंगी चुनाव! 

चुगलखोरों की चंगुल में बाबाः इन दिनों बाबा कुछ ज्यादा ही चौकन्ना हो गए हैं। इसमें गलत कुछ नहीं है। चुनाव के समय होना ही चाहिए। चतुर और चौकन्ना राजनीति की बदौलत ही तो देश की सबसे पुरानी पार्टी से रातों-रात केसरिया ब्रिगेड में शामिल होकर पांच दफा लोकसभा का सफर कर चुके हैं। और छठे सफर की तैयारी में जुटे हैं। लेकिन, चौकन्ना होने के चक्कर में बाबा कुछ ज्यादा ही चुगलखोरों के चंगुल में फंसते जा रहे हैं। इस चक्कर में प्रतिष्ठा भी खो रहे हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में ऑनलाइन शिलान्यास-उद्घाटन के लिए पधारे थे। कार्यक्रम का समय तो दस बजे तय था लेनिक बाबा दो बजे पहुंचे। विलंब से पहुंचना उनकी आदत भी है। वे पहुंचे तो नेताओं-कार्यकर्ताओं के इंतजार की घडिय़ां समाप्त हुई। हालांकि बाबा चरण छूने वालों की तरफ देख भी नहीं रहे थे। इस रूखे व्यवहार से कई नाराज हो गए। तीन दिन बाद बाबा फिर दूसरे गांव में पहुंचे। मुखियाजी भड़क गए। बाबा के सामने ही चुगलखोरों की पोल खोल कर रख दी। बाबा को भी संभल जाने की चेतावनी दी। कह दिया-वरिष्ठ कार्यकर्ता अपमानित महसूस कर रहे हैं। चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। बाबा चुपचाप सुनते रहे। आखिर चुनाव जो लडऩा है। 

... और अंत मेंः वे अपने को राजनीति में खूब जीनियस समझते हैं। वैसे हैं नहीं। टिकट की आस में देश की सबसे पुरानी पार्टी में शामिल होने के लिए गए तो प्रभारी ने पूछ डाला, कौन सी राजनीति करते हैं? जवाब मिला तरल पदार्थ की। यह सुन प्रभारी नाक-भौं सिकोडऩे लगे। यह देख शागिर्दों ने पूछा क्या करना है? कहा, कर लो पार्टी में शामिल। चुनाव का समय है। उछल-कूद करने वाले आदमी भी तो चाहिए। माहौल बनाएंगे।

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