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स्कूल हर वर्ष अभिभावकों को लगा रहे 24 करोड़ की चपत, ऐसे चल रहा है कमीशन का पूरा खेल; जानकर हो जाएंगे हैरान

निजी स्‍कूल हर साल अभिभावकों को 24 करोड़ से अधिक का चपत लगा रहे हैं। निजी प्रकाशकों से मिलकर कमीशन के लिए हर वर्ष स्कूल कोर्स की किताबें बदल देते हैं। स्कूल निजी प्रकाशकों को लाभ पहुंचाने और खुद के कमीशन के चक्कर में महंगी किताबें चला रहे हैं। सीबीएसई के अनुसार स्कूलों में सिर्फ एनसीईआरटी की की पुस्तकें चलाई जानी हैं जबकि ऐसा हो नहीं रहा है।

By Ashish Singh Edited By: Arijita Sen Updated: Fri, 12 Apr 2024 02:34 PM (IST)
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स्कूल हर वर्ष अभिभावकों को लगा रहे 24 करोड़ की चपत।
आशीष सिंह, धनबाद। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और आइसीएसई से स्कूलों को संबंद्धता एवं सचालन की अनुमति इसी शर्त पर मिलती है कि स्कूल नो प्राफिट नो लाॅस में चलेंगे यानी शिक्षा सेवा करेंगे। इसके लिए बायलाज तक बनाया गया है।

अभिभावकों को लग रहा हर साल करोड़ों की चपत

सीबीएसई के अनुसार, स्कूलों में सिर्फ एनसीईआरटी की की पुस्तकें चलाई जानी हैं। अब तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी इस बात पर जोर दिया गया है। यही कारण है कि इसी वर्ष तीसरी और छठी का पाठ्यक्रम पूरी तरह से एनसीईआरटी आधारित बदल दिया गया।

इन सबके बाद भी निजी स्कूल और प्रकाशक अपने हितों की पूर्ति के लिए अभिभावकों को अच्छी खासी चपत लगा रहे हैं। स्कूल निजी प्रकाशकों को लाभ पहुंचाने और खुद के कमीशन के चक्कर में महंगी किताबें चला रहे हैं। आपको जानकार हैरानी होगी कि एनसीईआरटी की पुस्तकें नहीं लगने की वजह से स्कूल प्रबंधन अभिभावकों को प्रतिवर्ष 24 करोड़ से अधिक की चपत लगा रहे हैं।

ऐसे समझें कमीशन का पूरा खेल

जिले में सीबीएसई से संबद्ध 80 और आइसीएसई के 11 स्कूल हैं। 800 से अधिक गैर मान्यता प्राप्त और लगभग 450 प्ले स्कूल हैं। सिर्फ सीबीएसई से संबद्ध 80 स्कूलों की ही बात करें तो यहां अध्ययनरत छात्रों की संख्या एक हजार से छह हजार तक है। 60 बड़े स्कूलों में औसतन दो हजार भी छात्र पढ़ रहे हैं तो यह संख्या एक लाख 20 हजार हो जाती है।

मार्च-अप्रैल में सत्र प्रारंभ होता है और इसी से साथ किताबें खरीदने की बारी आती है। अब अगर एक छात्र औसतन दो हजार की किताब निजी प्रकाशक की लेता है तो एक वर्ष में छात्रों की संख्या एक लाख 20 हजार के आधार पर 24 करोड़ रुपये हो जाती है। यह निचली कक्षाओं में किताब खरीदने की राशि है, जैसे-जैसे उपरी कक्षा में बढ़ते जाएंगे किताब का दाम भी बढ़ता जाएगा।

छठी-सातवीं में तो पूरी किताब का सेट पांच से छह हजार रुपये में मिल रहा है। यही अगर स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें चलतीं तो औसतन 500 से एक हजार में हो जाता है। गैर मान्यता प्राप्त और प्ले स्कूलों में लगभग 60 हजार छात्र अध्ययनरत हैं। छात्रों की कुल संख्या एक लाख 80 हजार हो जाती है। अब आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि निजी प्रकाशक स्कूल प्रबंधन संग मिलकर किस तरह अभिभावकों की जेब पर चोट कर रहे हैं।

750 की किताब निजी स्कूल में चार हजार

सीबीएसई पैटर्न का पाठ्यक्रम एक समान होता है, लेकिन निजी स्कूलों में पब्लिशर्स राइटर्स की संख्या सैंकड़ों में है। यानी जितने स्कूल उतने प्रकाशक। एक ही कक्षा, लेकिन स्कूल अलग तो किताब भी अलग। जरा गौर करें, केंद्रीय विद्यालयों में सीबीएसई पैटर्न पर पढ़ाई होती है।

यहां पूरी किताबें एनसीईआरटी की लगी हैं। सातवीं कक्षा के पूरे कोर्स की किताबों का मूल्य मात्र 750 रुपये है। जबकि निजी स्कूलों में यह दो से साढ़े चार हजार रुपये में है।

एक बुक डीलर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स्कूल निजी प्रकाशकों की किताबें इसलिए चलाते हैं क्योंकि उन्हें 30 से 40 प्रतिशत कमीशन मिलता है। सत्र शुरू होने से पहले ही दिसंबर से फरवरी के बीच डीलर के एजेंट सब तय कर चुके होते हैं।

स्कूलों में निजी प्रकाशकों की संचालित पुस्तकों का मूल्य

  • कक्षा-एक : 2000 से 3000
  • कक्षा-दो : 2000 से 3000
  • कक्षा-तीन : 2000 से 3500
  • कक्षा-चार : 3000 से 4000
  • कक्षा-पांचवीं : 3000 से 4500
  • कक्षा-छठी : 4000 से 4500
  • कक्षा-सातवीं : 4000 से 5000
  • कक्षा-आठवीं : 4000 से 5500
  • कक्षा-नौवीं : 5000 से 6000
  • कक्षा-दसवीं : 5000 से 6000
  • कक्षा-11वीं : 3000 से 4000
  • कक्षा-12वीं : 3000 से 4500

एनसीईआरटी पुस्तकों का मूल्य (अधिकतम)

  • कक्षा-एक : 550
  • कक्षा-दो : 550
  • कक्षा-तीन : 550
  • कक्षा-चार : 650
  • कक्षा-पांचवीं : 650
  • कक्षा-छठी : 700
  • कक्षा-सातवीं : 750
  • कक्षा-आठवीं : 800
  • कक्षा-नौवीं : 800
  • कक्षा-दसवीं : 850
  • कक्षा-11वीं : 900 से 1000
  • कक्षा-12वीं : 900 से 1000

आरटीई का नियम

  • स्कूल के एक किमी के दायरे में किताब की दुकान नहीं चला सकते।
  • स्कूलों में किताबों की सूची ओपन टू आल होनी चाहिए।
  • तीन वर्ष से पहले किसी कोर्स की पुस्तकों में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  • स्कूल किसी भी अभिभावक को किसी विशेष पुस्तक विक्रेता के यहां से पुस्तक खरीदने को बाध्य नहीं कर सकते हैं।

एनसीईआरटी किताब न चलाने के स्कूलों के बहाने

स्थानीय दुकानों में किताबें नहीं मिलती।

वर्षों पुराना चैप्टर पढ़ाया जा रहा है।

कंटेंट ठीक नहीं होता है।

बच्चों को बुछ नया नहीं मिलता।

एनसीईआरटी की किताब के साथ रेफरेंस बुक की जरूरत पड़ती है।

मैटेरियल हल्का व प्रिंट कमजोर होता है।

कोर्स बदलने से पहले स्कूलों को शिक्षा विभाग को जानकारी देनी होती है। एक भी स्कूल ऐसा नहीं कर रहा है। स्कूलों को अपने यहां चलने वाली स्कूलों की सूची भी शिक्षा विभाग को बतानी होती है। न तो स्कूल ऐसा कर रहे हैं और न ही शिक्षा विभाग जांच करता है। नतीजा यह निकल रहा है कि हर वर्ष अभिभावकों की जेब कट रही है- मनोज मिश्रा, महासचिव झारखंड अभिभावक महासंघ।

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