स्कूल हर वर्ष अभिभावकों को लगा रहे 24 करोड़ की चपत, ऐसे चल रहा है कमीशन का पूरा खेल; जानकर हो जाएंगे हैरान
निजी स्कूल हर साल अभिभावकों को 24 करोड़ से अधिक का चपत लगा रहे हैं। निजी प्रकाशकों से मिलकर कमीशन के लिए हर वर्ष स्कूल कोर्स की किताबें बदल देते हैं। स्कूल निजी प्रकाशकों को लाभ पहुंचाने और खुद के कमीशन के चक्कर में महंगी किताबें चला रहे हैं। सीबीएसई के अनुसार स्कूलों में सिर्फ एनसीईआरटी की की पुस्तकें चलाई जानी हैं जबकि ऐसा हो नहीं रहा है।
अभिभावकों को लग रहा हर साल करोड़ों की चपत
ऐसे समझें कमीशन का पूरा खेल
750 की किताब निजी स्कूल में चार हजार
सीबीएसई पैटर्न का पाठ्यक्रम एक समान होता है, लेकिन निजी स्कूलों में पब्लिशर्स राइटर्स की संख्या सैंकड़ों में है। यानी जितने स्कूल उतने प्रकाशक। एक ही कक्षा, लेकिन स्कूल अलग तो किताब भी अलग। जरा गौर करें, केंद्रीय विद्यालयों में सीबीएसई पैटर्न पर पढ़ाई होती है।यहां पूरी किताबें एनसीईआरटी की लगी हैं। सातवीं कक्षा के पूरे कोर्स की किताबों का मूल्य मात्र 750 रुपये है। जबकि निजी स्कूलों में यह दो से साढ़े चार हजार रुपये में है। एक बुक डीलर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स्कूल निजी प्रकाशकों की किताबें इसलिए चलाते हैं क्योंकि उन्हें 30 से 40 प्रतिशत कमीशन मिलता है। सत्र शुरू होने से पहले ही दिसंबर से फरवरी के बीच डीलर के एजेंट सब तय कर चुके होते हैं।स्कूलों में निजी प्रकाशकों की संचालित पुस्तकों का मूल्य
- कक्षा-एक : 2000 से 3000
- कक्षा-दो : 2000 से 3000
- कक्षा-तीन : 2000 से 3500
- कक्षा-चार : 3000 से 4000
- कक्षा-पांचवीं : 3000 से 4500
- कक्षा-छठी : 4000 से 4500
- कक्षा-सातवीं : 4000 से 5000
- कक्षा-आठवीं : 4000 से 5500
- कक्षा-नौवीं : 5000 से 6000
- कक्षा-दसवीं : 5000 से 6000
- कक्षा-11वीं : 3000 से 4000
- कक्षा-12वीं : 3000 से 4500
एनसीईआरटी पुस्तकों का मूल्य (अधिकतम)
- कक्षा-एक : 550
- कक्षा-दो : 550
- कक्षा-तीन : 550
- कक्षा-चार : 650
- कक्षा-पांचवीं : 650
- कक्षा-छठी : 700
- कक्षा-सातवीं : 750
- कक्षा-आठवीं : 800
- कक्षा-नौवीं : 800
- कक्षा-दसवीं : 850
- कक्षा-11वीं : 900 से 1000
- कक्षा-12वीं : 900 से 1000
आरटीई का नियम
- स्कूल के एक किमी के दायरे में किताब की दुकान नहीं चला सकते।
- स्कूलों में किताबों की सूची ओपन टू आल होनी चाहिए।
- तीन वर्ष से पहले किसी कोर्स की पुस्तकों में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
- स्कूल किसी भी अभिभावक को किसी विशेष पुस्तक विक्रेता के यहां से पुस्तक खरीदने को बाध्य नहीं कर सकते हैं।
एनसीईआरटी किताब न चलाने के स्कूलों के बहाने
स्थानीय दुकानों में किताबें नहीं मिलती।
वर्षों पुराना चैप्टर पढ़ाया जा रहा है।
कंटेंट ठीक नहीं होता है।
बच्चों को बुछ नया नहीं मिलता।
एनसीईआरटी की किताब के साथ रेफरेंस बुक की जरूरत पड़ती है।
मैटेरियल हल्का व प्रिंट कमजोर होता है।
ये भी पढ़ें:खुशखबरी: कस्तूरबा विद्यालयों में अब दूसरे राज्यों से अभ्यर्थी भी बन सकेंगे शिक्षक, लेकिन इस शर्त को करना होगा पूराNEET UG 2024: पांच मई को ही होगी नीट-यूजी की परीक्षा, NTA ने की अफवाहों पर ध्यान न देने की अपीलकोर्स बदलने से पहले स्कूलों को शिक्षा विभाग को जानकारी देनी होती है। एक भी स्कूल ऐसा नहीं कर रहा है। स्कूलों को अपने यहां चलने वाली स्कूलों की सूची भी शिक्षा विभाग को बतानी होती है। न तो स्कूल ऐसा कर रहे हैं और न ही शिक्षा विभाग जांच करता है। नतीजा यह निकल रहा है कि हर वर्ष अभिभावकों की जेब कट रही है- मनोज मिश्रा, महासचिव झारखंड अभिभावक महासंघ।