Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

त्योहार मनाने नहीं, जान बचाने के लिए लौट रहे गुजरात से वापस

गुजरात से लौटने वाले हिंदी भाषियों के चेहरे पर मायूसी है, क्योंकि उनकी वापसी पर संकट के बादल हैं। इस बार त्योहार मनाने नहीं बल्कि डर के कारण गुजरात से नाता तोड़ कर आना पड़ा है।

By Deepak PandeyEdited By: Updated: Fri, 12 Oct 2018 12:45 PM (IST)
Hero Image
त्योहार मनाने नहीं, जान बचाने के लिए लौट रहे गुजरात से वापस

जागरण संवाददाता, धनबाद: नवरात्र की छुट्टियों में लोग घर वापसी कर रहे हैं। छुट्टियां खत्म होते ही फिर अपने-अपने कर्मभूमि में लौटेंगे। पर गुजरात से लौटने वाले हिंदी भाषियों के चेहरे पर मायूसी है, क्योंकि उनकी वापसी पर संकट के बादल हैं। इस बार त्योहार मनाने नहीं बल्कि डर के कारण गुजरात से नाता तोड़ कर आना पड़ा है।

गुरुवार को दोपहर जब भावनगर से आसनसोल जानेवाली पारसनाथ एक्सप्रेस धनबाद पहुंची तो उसके जनरल कोच यात्रियों के अटे पड़े थे। वहां के तनावपूर्ण माहौल से बचने के लिए जिसे जहां जगह मिली, वह वहीं सवार हो गये थे। इनमें झारखंड के विभिन्न शहरों में रहने वाले हिंदी भाषी थे, जिनके चेहरे पर बेबशी झलक रही थी। जब उनसे गुजरात के माहौल के बारे में पूछा गया तो बस इतना ही कहा, कि अभी तो छुट्टी मनाने आए हैं। सब ठीक हो जाएगा तो वापस जाएंगे या फिर यहीं कोई काम-धंधा तलाशेंगे।

गिरिडीह, बोकारो, देवघर, जामताड़ा और दुमका के ज्यादातर यात्री: पारसनाथ एक्सप्रेस के जनरल कोच में परिवार और छोटे बच्चे के साथ भी काफी तादाद में यात्री लौटे थे। इनमें गिरिडीह, बोकारो, देवघर, जामताड़ा और दुमका सहित राज्य के अन्य जिलों के ङ्क्षहदी भाषी थे। इन यात्रियों में अधिकतर मजदूर वर्ग के थे जो सालोंभर पसीना बहाकर काम करते हैं और पर्व-त्योहरों में अपने घर लौटते हैं।

यात्रियों के बोल

"गुजरात में काम कर रहा था। अभी तो दुर्गापूजा में घर लौट रहा हूं। दीपावली-छठ के बाद वहां का माहौल जैसा रहेगा, उसके बाद वापसी का निर्णय लूंगा।"

नरेश कुमार, दुमका

-----------

"गुजरात में काम कर रहा था। वहां हिंदी भाषियों के बारे में सुना तो है। हमारे साथ उस तरह की कोई परेशानी तो नहीं हुई। अब पूजा की छुट्टियों के बाद वहां का ठीक रहा तो लौटूंगा।"

श्रवण कुमार

-----------

"गुजरात के मैसाना में कैंपस इंटरव्यू के लिए गया था। इंटरव्यू तो हो गया पर वहां के माहौल को देखकर लौट गया हूं। स्थिति में सुधार हुआ तो जाएंगे या स्थानीय स्तर की नौकरी ढूंढ़ेंगे।"

रंजीत कुमार पाल, बोकारो

-----------

"गुजरात की सुजूकी कंपनी में कैंपस के लिए गया था। वहां हिंदी भाषियों के साथ हो रही घटना के बारे में सुना है। मैं जहां गया था, वहां ऐसी स्थिति नहीं थी।"

वीरेंद्र पांडेय, चंदकियारी