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8 माह तक छुपे रहे, हाथों में पड़ गए थे छाले; बाबरी विध्वंस और राम मंदिर निर्माण को लेकर कार सेवक ने सुनाई अनसुनी कहानी

अयोध्या में राम मंदिर का सपना करोड़ों हिंदुओं ने देखा था अब वह सकार होने जा रहा है। ऐसे में राम मंदिर आंदोलन बाबरी विध्वंस कार सेवकों पर चली गोलियां आंदोलन समेत तमाम तरह की घटनाएं एक बार फिर से नजरों के सामने घुमने लगी हैं। धनबाद से भी कई लोग थे जो 1990 से लेकर 6 दिसंबर 1992 तक अयोध्या समेत देश भर में जो हुआ उसमें शामिल हुए।

By Balwant Kumar Edited By: Shashank ShekharUpdated: Wed, 10 Jan 2024 06:03 PM (IST)
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बाबरी विध्वंस और राम मंदिर निर्माण को लेकर कार सेवक ने सुनाई अनसुनी कहानी

बलवंत कुमार, झरिया। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का जो सपना करोड़ों हिंदुओं ने देखा था। अब वह सकार होने जा रहा है। ऐसे में श्रीराम मंदिर आंदोलन, बाबरी विध्वंस, कार सेवकों पर चली गोलियां, आंदोलन समेत तमाम तरह की घटनाएं एक बार नजरों के सामने घुमने लगी हैं।

धनबाद जिले से भी कई लोग थे, जो 1990 से लेकर 6 दिसंबर 1992 तक अयोध्या समेत देशभर में जो हुआ उसमें शामिल हुए और गवाह भी बने। ऐसी ही हैं झरिया के प्रेस गली में रहने वाले 80 वर्षीय बलदेव पांडेय हैं, जिन्होंने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में भाग लिया, कार सेवक बने, आठ माह तक अज्ञातवास काटा, मंदिर निर्माण के लिए ईंट भी ढोया।

छिल गए थे हाथ 

बलदेव पांडेय ने बताया कि छह दिसंबर 1992 को वे भी अयोध्या में मौजूद थे। दोपहर बाद जब बाबरी को गिरा दिया गया था तब कारसेवक ईंट ढोने का काम करने लगे थे। इसमें वे खुद शामिल थे। बाबरी के गिरने के बाद कार सेवकों ने मंदिर निर्माण के लिए ईंटें लानी शुरू कर दी थी।

ईंट ढ़ोने का यह काम सात दिंसबर तक चलता रहा। लेकिन इसके बाद जब कर्फ्यू लगा तो पुलिस ने कार सेवकों को बसों में भर कर उनके राज्य वापस भेजने लगे थ। उन्होंने बताया कि ईंट ढ़ाने के कारण उनके हाथ में कई खरोंच भी आ गई थी। 1992 में उनके साथ धनबाद बैंक मोड़ स्थित मंदिर के पुजारी द्वारिका दास भी थे।

धनबाद पहुंचने पर पैदल निकल पड़े झरिया के लिए 

पांडेय ने बताया कि बाबरी विध्वंस के बाद वे और ट्रेन से धनबाद पहुंचे थे। धनबाद स्टेशन के बाहर पुलिस ने अपनी बस लगा रखी थी। उन्हें भय था कि बाहर निकलने पर पुलिस उन्हें पकड़ लेगी। इस कारण वे स्टेशन से रेलवे लाइन के किनारे बरमसिया तक पैदल आए और फिर यहां से पैदल झरिया स्थित अपने घर पहुंचे।

1990 में आठ माह तक थे अज्ञातवास में

बलदेव पांडेय ने कहा कि जब अयोध्या के लिए पहली बार कार सेवा 1990 में हुई थी तो वे उसमें शामिल थे। इस दौरान उनके साथ झरिया लाल बाजार के राम अवतार कटेसरिया भी थे। अयोध्या से कार सेवा कर लौटने पर पुलिस उन्हें खोजने लगी।

उन्होंने अपने बेटे सत्यदेव पांडेय को झरिया निवासी अपने मित्र श्रीराम गुप्ता के पास छोड़ा और पत्नी को पटना में एक रिश्तेदार के यहां। इसके बाद वे लापता हो गए। उन्होंने बताया कि आठ माह तक वे अधिकांश समय वे धनबाद व झरिया में ही अलग-अलग जगहों पर रहे। इस दौरान परिवार से कोई संपर्क नहीं था। पुत्र सत्यदेव पांडेय बताते हैं कि उन लोगों को यह लगने लगा था कि अब उनके पिता कभी वापस लौट कर नहीं आएंगे।

बनारस के गदौलिया चौक पर हुई गिरफ्तारी 

राम मंदिर निर्माण आंदोलन जैसे-जैसे तेज होता गया, वैसे-वैसे देशभर में कार सेवकों को गिरफ्तारी होने लगी थी। इसी कड़ी में नवंबर 1990 को उत्तर प्रदेश पुलिस ने बनारस के गदौलिया चौक पर उनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार कर उन्हें सेंट्रल जेल वाराणसी में रखा गया। सात दिनों तक वे जेल में थे।

अब बस राम के दर्शन की इच्छा 

22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम का प्राण प्रतिष्ठा होनी है। मंदिर निर्माण का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। बलदेव पांडेय की इच्छा है कि बस अब भगवान राम के दर्शन हो जाएं। उन्होंने बताया कि 18 जनवरी को वे अयोध्या जा रहे हैं और 24 जनवरी को उनकी वापसी है।

उन्होंने कहा कि केवल एक जन्म में ही उन्हें कार सेवा करने से लेकर भगवान राम का मंदिर व उनके दर्शन करने का सपना साकार हो रहा है।

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