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Dhanbad: अपनों की राह देखते-देखते पथरा गई आंखें लेकिन..., SNMMCH में सालों से लावारिस पड़े बुजुर्गों की कहानी

धनबाद के शहीद निर्मल महतो मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में लावारिस पड़े छह बुजुर्ग सालों से अपनों का इंतजार कर रहे हैं। उपचार कराने के बहाने संवेदनहीन संतानों ने उन्हें यहां लाकर छोड़ दिया। पर्ची में पता भी गलत दे दिया इसलिए अस्पताल प्रबंधन अब तक इन असहायों के स्वजन को नहीं खोज पाया है। इन बुजुर्गों का अब अस्पताल ही ठिकाना है।

By Jagran NewsEdited By: Mohit TripathiUpdated: Sat, 21 Oct 2023 11:20 PM (IST)
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एसएनएमएमसीएच में वर्षों से लावारिस हैं पांच बुजुर्ग। (फाइल फोटो)
मोहन गोप, धनबाद। धनबाद स्थित शहीद निर्मल महतो मेमोरियल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SNMMCH) में अपनों की आस में छह बुजुर्गों की आंखें पथरा गई हैं। ये बुजुर्ग सालों से अपने परिवार के सदस्यों की राह तक रहे हैं, ताकि कोई उन्हें आकर अस्पताल से ले जाए। इनमें यहां कोई तीन तो कई पांच वर्षों से पड़े हैं।

उपचार कराने के बहाने संवेदनहीन संतानों ने उन्हें यहां लाकर छोड़ दिया है। पर्ची में पता भी गलत दे दिया, इसलिए अस्पताल प्रबंधन अबतक इन असहायों के स्वजन को नहीं खोज पाया। इन बुजुर्गों का अब अस्पताल ही ठिकाना है। यहां इनके लिए अलग लावारिस वार्ड बना दिया गया है।

2022 में एक बुजुर्ग को उनके घर वाले दुर्गापूजा में घर ले गए थे। शेष छह इसी उम्मीद में हैं कि उनकी भी याद उनके बेटे-बेटियों को कभी आएगी। ऐसे बुजुर्ग मानसिक परेशानी के कारण ठीक से अपनों के नाम-पते भी नहीं बता पा रहे हैं।

अपनों की राह देखते-देखते पथरा गई आखें

एसएनएमएमसीएच के लावारिस वार्ड में भर्ती 72 वर्षीय बानो की आंखें वर्षों से अपनों के आने की आस में पथरा गईं हैं। जब कोई पुकारता है, तो तुरंत नजरें चारों तरफ घुमाने लगती हैं। अपने नहीं दिखते तो फिर धीरे से आंखें मूंद लेती हैं।

बानों यहां तीन वर्षों से पड़ी हैं। पर्ची में उनके स्वजन ने यही नाम लिखाया था। पहले किसी तरीके से बांग्ला भाषा में बोल पाती थी, लेकिन तीन माह से चुपचाप रहती हैं।

यही हाल लावारिस वार्ड में भर्ती चार अन्य वृद्धों का भी है। इनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए कुछ याद नहीं रहा है।

दरअसल, बीमार होने पर बुजुर्ग माता-पिता को उनकी संतानों ने बोझ समझ कर अस्पताल में छोड़ दिया। नाम, पता और मोबाइल नंबर भी गलत लिखाया। इसलिए कोई तीन तो कोई तीन वर्ष से लावारिस की तरह अस्पताल में हैं।

दुर्गापूजा में बढ़ जातीं उम्मीदें

वर्ष 2022 के दुर्गोत्सव में इस वार्ड में रह रहे 65 वर्षीय सुजीत कुमार को उसके स्वजन घर ले गए थे। उस समय खुशी से उनकी आंखें भर आई थीं।

काफी प्रयास के बाद अस्पताल प्रबंधन ने सुजीत के स्वजन को खोजा था। घरवालों ने गलती मानी और बेटे और बहू घर ले गए। इसके बाद से वार्ड में भर्ती अन्य बुजुर्गों को भी दुर्गापूजा में अपनों के आने की उम्मीद बढ़ जाती है।

तीन दिनों से नहीं खा रहीं चांदमुनि

यहां 75 वर्षीय चांदमुनि की स्थिति गंभीर है। तीन दिनों से भोजन नहीं कर रही है। बार-बार अपनों को पुकार रही है। अस्पतालकर्मी बताते हैं कि एक संस्था के सदस्य ने चांद मुनि को यहां छोड़ा था। उनका भरा पूरा परिवार है, लेकिन स्वजन ने संस्था में रख दिया।

लगातार बीमार रहने लगीं तो तीन महीने पहले अस्पताल में लाकर छोड़ दिया गया। अब उनका एक ही सपना है कि प्राण निकलने से पहले अपने बेटे-बहू को देख लें।

पास में ही इलाजरत हैं कतरास के रमेश कुमार गुप्ता। 65 वर्षीय रमेश बताते हैं कि उनका कोई नहीं है। काफी बीमार हो गए थे। उन्हें एक वर्ष पहले अस्पताल में लाया गया। अब यहां से कहां जाएं, शरीर भी साथ नहीं दे रहा।

न सही पता, न ही आधार कार्ड

इन बुजुर्गों के स्वजन को तलाशने को प्रयास अस्पताल प्रबंधन ने जारी रखा है, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली। इनका न सही पता है और न ही आधार कार्ड बना है।

अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अनिल कुमार कहते हैं कि चार मरीजों को भर्ती कराया गया, लेकिन घर वाले नाम, पता और मोबाइल नंबर गलत लिख कर चले गए।

एक महीने तक जब इन्हें कोई लेने नहीं आया, तब तलाश शुरू की। कागजात पर लिखे गए पते पर कर्मचारियों को भेजा गया, लेकिन फर्जी निकला। मोबाइल नंबर भी गलत था।

इन लावारिसों के बारे में प्रशासन और स्थानीय पुलिस को सूचना दी गई है। उनके अपने पहुंच जाएं इसके लिए प्रयास जारी है।

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