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धनबाद में 250 साल पुराना मां काली का है एक ऐसा मंदिर, जहां पांच पीढि़यों से दलित पुजारी करा रहे पूजा

मां काली का ढाई सौ साल पुराना मंदिर। धनबाद शहर से चंद कदमों की दूरी पर है दामोदरपुर। यहां मां काली की आराधना दलित पुजारी करते हैं। इस प्राचीन काली मंदिर की परंपरा है कि इसका पुजारी इलाके के दलित परिवार का ही कोई एक सदस्य होता है।

By Jagran NewsEdited By: Deepak Kumar PandeyUpdated: Fri, 21 Oct 2022 06:37 PM (IST)
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प्रत्येक वर्ष मां काली की आराधना दलित पुजारी ही करते आ रहे हैं।
धनबाद [राकेश कुमार महतो]: मां काली का ढाई सौ साल पुराना मंदिर। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं, बस धनबाद शहर से चंद कदमों की दूरी पर है दामोदरपुर। यहां मां काली की आराधना दलित पुजारी करते हैं। इस प्राचीन काली मंदिर की परंपरा है कि इसका पुजारी इलाके के दलित परिवार का ही कोई एक सदस्य होता है। पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है। मंदिर में पूजा अर्चना अब दलित परिवार की पांचवीं पीढ़ी कर रही है।

गांव में दलितों को दिया गया है उच्च कोटि का दर्जा

स्थानीय निवासी साधन मंडल बताते हैं कि दामोदरपुर गांव में स्वर्गीय गिरीश चंद मंडल ने ढाई सौ साल पहले छोटे स्तर पर मां काली की पूजा की शुरुआत की थी। तब उस मंदिर में गिरीश चंद्र मंडल के साथ गांव के एक दलित व्यक्ति मां काली की पूजा आराधना करते थे। बताया जाता है कि गिरीश ने अपनी अंतिम सांस लेते हुए कहा था कि दलितों को इस मंदिर में पूजा करने का अधिकार दिया जाए। तब से गांव में दलितों को उच्च कोटि का दर्जा दिया गया और प्रत्येक वर्ष मां काली की आराधना दलित पुजारी ही करते आ रहे हैं।

मंदिर निर्माण में अपने पूर्वजों के नाम से लोगों ने जमकर दिया चंदा

पूर्व में काली पूजा के दौरान पंडाल निर्माण कर सादगी से पूजा का आयोजन किया जाता था। बाद में दामोदरपुर निवासियों ने 2009 से 2014 के बीच मंदिर को भव्य रूप दिया गया। मंदिर की ऊंचाई 60 फीट व चौड़ाई 40 फीट है। मंदिर के प्रति गांव वालों की आस्था इतनी गहरी है कि इसके निर्माण के समय लोगों ने अपने व अपने पूर्वजों के नाम से भी भारी भरकम सहयोग राशि दी। वर्ष 2014 में मंदिर निर्माण के कार्य में तकरीबन 14 लाख 45 हजार रुपए खर्च किए गए थे। जिन्‍होंने सहयोग राशि दी, मंदिर की दीवार पर उनका नाम और राशि भी अंकित है।

रात में की जाती है मां काली की आराधना

यहां वर्षों से काली पूजा की रात श्रद्धालु मां काली की आराधना कर मन्‍नतें मांगते हैं। मन्‍नत पूरी होने पर चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। मंदिर को प्रत्येक वर्ष आकर्षक तरीके से सजाया जाता है। काली पूजा के दूसरे दिन भगवती जागरण का आयोजन किया जाता है, जिसमें मां काली की झांकी व गीत प्रस्तुत किए जाते हैं।

ग्रामीण साधन मंडल बताते हैं कि मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। यहां प्रत्येक वर्ष मां काली की आराधना दलित पुजारी करते हैं। जिले के अलग-अलग जगहों से सैकड़ों लोग पूजा में शामिल होते हैं। स्‍थानीय सुरेश मंडल बताते हैं कि मां काली की आराधना के साथ श्रद्धालुओं के बीच दलित पुजारी पूजा कर प्रसाद वितरण करते हैं। श्रद्धालु पुजारी को नमन कर सुख समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं। अपनी इच्छा के अनुसार दान भी करते हैं।

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