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Amrit Mahotsav: मधुपुर के तिलक विद्यालय में बनती थी क्रांति की रणनीति, गांधी का भी प्राप्त हुआ सानिध्य

मधुपुर में जो राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक हैं। उनमें संभवत तिलक विद्यालय ही ऐसा स्थल है जिसे आज राष्ट्रीय आंदोलन के अमूल्य धरोहर के रूप में बचाने की सख्त जरूरत है। यहां एक संग्रहालय की आवश्यकता है। जहां स्वतंत्रता संग्राम की निशानियों को सुरक्षित रखा जा सके।

By MritunjayEdited By: Updated: Thu, 12 Aug 2021 05:45 PM (IST)
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देश की आजादी का अमृत महोत्सव ( सांकेतिक फोटो)।

बाल मुकुंद शर्मा, मधुपुर(देवघर)। ऐतिहासिक तिलक विद्यालय हमारी राष्ट्रीय चेतना का अमूल्य धरोहर है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का गौरवपूर्ण अध्याय है। यहीं 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान संताल परगना के महान क्रांतिकारी अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए रणनीति बनाते थे। तप:पूत विप्लवी बाल गंगाधर तिलक के नाम पर 1922 में स्थापित मधुपुर के इस विद्यालय के प्रांगण में 1925 में स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आगमन हुआ। बाद में लोकनायक जयप्रकाश नारायण, प्रभावती जी, बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह, कृष्ण वल्लभ सहाय, देशरत्न डाक्टर राजेंद्र प्रसाद व अन्य महान स्वतंत्रता सेनानियों का आगमन इस विद्यालय के प्रांगण में हुआ। उल्लेखनीय है कि इसी विद्यालय के शिक्षक एवं स्वतंत्रता सेनानी विधाकर कवि स्वतंत्रता पश्चात बिहार के शिक्षा मंत्री बने।

मधुपुर के प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानियों ज्वाला प्रसाद राय, द्वारिका प्रसाद गुटगुटिया, पंडित अनंत शर्मा, पंडित उपेंद्र झा आदि का कर्म क्षेत्र तिलक विद्यालय ही था। इसी विद्यालय में 1942 के आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार करने आई अंग्रेज पुलिस ने विफल होकर एवं बौखलाकर तिलक विद्यालय के समृद्ध पुस्तकालय को ही जला डाला। आज भी कुछ धार्मिक व देशभक्तिपूर्ण पुस्तकें अधजली व जर्जर अवस्था में दशकों से विद्यालय के आलमारी में पड़ी हैं। उनमें प्रमुख हैं 'ऋग्वेद संहिता' ( भाग- 99 से 112), ऋग्वेद संहिता (भाग- 65 से 80), दयानंद ग्रंथमाला (शताब्दी संस्करण), श्रीमद् भागवत गीता (शक- 1943), मदनमोहन मालवीय संग्रह, दयानंद ग्रंथ (माला द्वितीय) संवत 1981 विक्रमीय, सन 1925 ईस्वी आदि प्रमुख हैं।

वक्त के साथ धूमिल पड़ती राष्ट्रीय चेतना की गरिमा

वक्त के साथ धूमिल पड़ती तिलक विद्यालय की राष्ट्रीय चेतना और गरिमा, अधजली व जर्जर पुस्तकों-ग्रंथों को संयोजित सुरक्षित करने के लिए युवा साहित्यकार डा. उत्तम कुमार पीयूष व उनकी पत्नी पुनीता पीयूष आगे आए। विगत वर्षों में लगातार प्रयास कर अधजली, जर्जर पुस्तकों व ग्रंथों को यत्न पूर्वक संरक्षित कर विद्यालय को समर्पित किया गया। जन सहयोग से विद्यालय भवन के मुख्य द्वार के सामने एक शिलापट्ट लगवाकर श्री तिलक विद्यालय में समय समय पर पधारने वाले विभूतियों के नाम अंकित करवाए हैं।

सुरक्षा और संरक्षण की है आवश्यकता

मधुपुर में जो राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक हैं। उनमें संभवत तिलक विद्यालय ही ऐसा स्थल है जिसे आज राष्ट्रीय आंदोलन के अमूल्य धरोहर के रूप में बचाने की सख्त जरूरत है। यहां एक संग्रहालय की आवश्यकता है। जहां स्वतंत्रता संग्राम की निशानियों को सुरक्षित रखा जा सके। जो मधुपुर सहित पूरे राष्ट्र की धरोहर है। 1938 में काका कालेलकर ने तिलक विद्यालय की असीम राष्ट्र भक्ति को देखकर कहा था कि एक दिन तिलक विद्यालय में श्रद्धा की बाढ़ आएगी। लेकिन उसके बाद इसकी सुरक्षा व संरक्षण की कभी पहल नहीं हुई। 1922 से 1947 तक तिलक कला विद्यालय मधुपुर स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण केंद्र था। श्री तिलक विद्यालय में आकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नौ अक्टूबर 1935 को, काका कालेलकर ने 25 सितंबर 1938, स्वामी सहजानंद सरस्वती ने 20 मई 1938 को तथा विधाकर कवि सहित अन्य विभूतियों ने श्री तिलक विद्यालय के संदर्भ में जो लिखित टिप्पणियां दी हैं। उससे आम जनता तथा युवा पीढ़ी को अवगत कराना ही होगा। ये हमारी अनमोल विरासत हैं।

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