World Mental Health Day: लोगों को तेजी से नोमोफोबिया की चपेट में ले रहा मोबाइल, कहीं आप भी तो नहीं हैं शिकार
जयप्रकाश नगर में रहने वाले 14 वर्षीय विपुल कुमार के व्यवहार में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। विपुल अधिकांश समय अकेले रहना चाह रहा है। स्वभाव में चिड़चिड़ापन गुस्सा और बेचैनी भी तेजी से बढ़ रही है। किसी भी शर्त पर मोबाइल से दूर नहीं होना चाह रहा है।
By Jagran NewsEdited By: Deepak Kumar PandeyUpdated: Mon, 10 Oct 2022 09:00 AM (IST)
धनबाद [मोहन गोप]: जयप्रकाश नगर में रहने वाले 14 वर्षीय विपुल कुमार (बदला हुआ नाम) के व्यवहार में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। विपुल अधिकांश समय अकेले रहना चाह रहा है। उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन, गुस्सा और बेचैनी भी तेजी से बढ़ रही है। किसी भी शर्त पर मोबाइल से दूर नहीं होना चाह रहा है। फिलहाल सदर अस्पताल के युवा मैत्री केंद्र में विपुल की काउंसलिंग कराई जा रही है।
मेडिकल जांच में पता चला है कि यह बच्चा मोबाइल की वजह से होने वाली बीमारी नोमोफोबिया (नो मोबाइल फोन फोबिया) का शिकार हो गया है। दरअसल, कोरोना संक्रमण काल के दौरान बीते दो वर्षों में लोगों की मोबाइल पर निर्भरता बढ़ी है। जिला गैर संचारी विभाग की मानें तो लगभग 22 प्रतिशत लोग नोमोफोबिया के शिकार हो गए हैं। इसमें 50 प्रतिशत संख्या वैसे बच्चों की है, जिनकी उम्र 20 वर्ष से कम है। इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर डब्ल्यूएचओ ने इसे ही अपना थीम चुना है। इस थीम का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य एवं सभी के कल्याण को एक वैश्विक प्राथमिकता बनाना है। इसमें मोबाइल के प्रभाव को अहम माना गया है। 10 अक्टूबर को पूरी दुनिया में वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे मनाया जा रहा है।
मोबाइल या इंटरनेट से अत्यधिक लगाव की बीमारी है नोमोफोबिया
युवा मैत्री केंद्र की काउंसलर रानी प्रसाद बताती हैं कि नोमोफोबिया विशेष रूप से मोबाइल इंटरनेट से लगाव की बीमारी है। इसमें हमेशा यह डर लगा रहता है कि कहीं मोबाइल फोन से दूर ना हो जाएं। मोबाइल के बिना एक पल भी नहीं रह पाना, मोबाइल खराब अथवा खो जाने का डर बना रहना आदि इस बीमारी के लक्षण हैं। लगातार मोबाइल पर गेम खेलने अथवा इंटरनेट मीडिया पर अधिकांश समय बिताने की वजह से यह बीमारी पनपती है।
क्या हो रहा प्रभाव
-सबसे ज्यादा डिप्रेशन के मरीज- मोबाइल से एंजायटी डिसऑर्डर के शिकार हो रहे- शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध या प्रभावित हो रहा- चिड़चिड़ापन, गुस्सा, घबराहट, अकेलापन जैसी चीजें हो रही- एकाग्रता में कमी, पढ़ाई में रुचि नहींइन बातों का रखें ध्यान
- छोटे बच्चों को स्मार्टफोन ना दें
- बच्चों को आउटडोर गेम्स के लिए ले जाएं- रात में सोने से कम से कम आधे घंटे पहले मोबाइल से दूर हो जाएं- ऐसे बच्चों की नियमित काउंसिलिंग कराएंजिला एनसीडी के अनुसार धनबाद की स्थिति
- विभाग में हर दिन 50 से ज्यादा मरीज आ रहे। - इसमें 15 से ज्यादा बच्चे भी 20 वर्ष से कम उम्र के हैं। - 6 से 7 लोग मोबाइल इंटरनेट के लत शिकार हैं।
- 14 से 35 वर्ग के लोग ज्यादा मानसिक परेशान हैं।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।