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विश्व आदिवासी दिवस 2023: बांस पर कला बिखेर आदिवासी ला रहे समृद्धि, देश भर में पहचान दिलाने की तैयारी

धनबाद के बेलगड़िया घोंघाबाद टुंडी समेत अनेक इलाकों में आदिवासी समाज के लोग बांस पर अपनी कला बिखेर एक से एक आकर्षक सामान बना रहे हैं। कभी सूप और डलिया बनाने तक सीमित रहे आदिवासी पुरुष व महिलाएं अब ऐसी कलात्मक व सजावटी वस्तुएं बांस से तैयार कर रहे हैं। इस कला को बेंगलुरु मुंबई कोलकाता तक के लोग पसंद कर रहे।

By Rakesh Kumar MahatoEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Wed, 09 Aug 2023 09:13 AM (IST)
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बांस पर कला बिखेर आदिवासी ला रहे समृद्धि
राकेश कुमार महतो, धनबाद: धनबाद के बेलगड़िया, घोंघाबाद, टुंडी समेत अनेक इलाकों में आदिवासी समाज के लोग बांस पर अपनी कला बिखेर एक से एक आकर्षक सामान बना रहे हैं। कभी सूप और डलिया बनाने तक सीमित रहे आदिवासी पुरुष व महिलाएं अब ऐसी कलात्मक व सजावटी वस्तुएं बांस से तैयार कर रहे हैं। इस कला को बेंगलुरु, मुंबई, कोलकाता तक के लोग पसंद कर रहे।

आदिवासियों की कला को निखारने को भारत सरकार हस्त शिल्प समर्थ योजना से प्रशिक्षण दिला रही है ताकि उनके द्वारा बनाई सामग्री में हस्तशिल्प का ऐसा सटीक प्रयोग हो कि वह बेमिसाल बनें। दुनिया भर तक यहां के उत्पाद पहुंचें और पसंद किए जाएं।

हस्तशिल्प के दम पर आदिवासी अपने जीवन में समृद्धि का रंग भर रहे हैं। बांस से बनी इस सामग्री को टिंकर हाट फाउंडेशन बिक्री के लिए प्लेटफार्म दे रहा है। इन वस्तुओं को रंगों के अनूठे संयोजन से आकर्षक बनाकर बाजार दिलाया जा रहा है।

फाउंडेशन के कोफाउंडर कुणाल भास्कर व प्रियंका सिंह बताया कि बांस की सामग्री की हस्तशिल्प मेला में स्टॉल लगाकर बिक्री की जाती है। कई दुकानदार आदिवासियों से सीधे भी सामग्री लेते हैं। अगस्त के तीसरे सप्ताह से जिले के बाजारों में भी ऐसे स्टॉल लगाएंगे। हमारा मकसद है कि धनबाद को कोयले के साथ आदिवासियों के हुनर के लिए भी जाना जाए।

देश भर में 250 हस्तशिल्प मेला की तैयारी

वस्त्र मंत्रालय ने देशभर में 69 फील्ड ऑफिस खोले हैं। झारखंड के रांची व देवघर में भी फील्ड ऑफिस है। देवघर कार्यालय के माध्यम से धनबाद के बेलगड़िया, सिरसाकुड़ी व घोंघाबाद के लोगों को प्रशिक्षण दिया जाता है। घोंघाबाद गांव को मॉडल गांव बनाया जाएगा।

हस्तशिल्प के सहायक निदेशक भुवन भास्कर ने बताया कि जल्द ही देश भर में 250 हस्त शिल्प मेले लगाएंगे। यहां आदिवासियों के हाथों की बनी वस्तुएं बिक्री को उपलब्ध होंगी। यहां तक इन्हें आने-जाने के लिए ट्रेन में थर्ड एसी का टिकट व खाने-पीने व रहने का खर्च भी सरकार देगी।

समर्थ योजना के तहत मार्च से अप्रैल के बीच घोंघाबाद के आदिवासियों को बांस से कृतियां बनाने का प्रशिक्षण दिया गया था। इस मद में यहां के 30 ग्रामीणों को 15-15 हजार रुपये भी दिए गए। उन्होंने कहा कि जल्द ही बेलगड़िया के 30 आदिवासी ग्रामीणों को भी प्रशिक्षण मिलेगा। उनको 320 घंटे का प्रशिक्षण देने की योजना है।

आदिवासियों को पलायन से रोकना लक्ष्य

आदिवासियों की बनाई सामग्री की उचित दर यहीं मिलने लगे तो वे काम के लिए पलायन नहीं करेंगे। हुनर निखरने पर महिलाओं की आय भी बढ़ेगी इसलिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

इस समय बांस की सामग्री बनाने वाला हर आदिवासी महीने में पांच हजार से अधिक कमा रहा है। आईआईटी आईएसएम में मिला सम्मान आदिवासी बांस से ऐसी सामग्रियां बना रहे, जो इको फ्रेंडली भी है।

आईआईटी आईएसएम ने भी किया सम्मानित

बांस के लैंप, पेन स्टैंड, ट्रे और घरेलू सामग्री रखने के स्टैंड आदि प्लास्टिक की वस्तुओं का बढ़िया विकल्प है। घरों की आभा भी ये बढ़ा देते हैं। इन सामग्रियों को आईआईटी आईएसएम में भी प्रस्तुत किया गया। वहां आदिवासी कलाकारों को सम्मानित भी किया गया था।

बकौल कुणाल जल्द ही बांस के उत्पादों को ऑनलाइन बिक्री का प्लेटफॉर्म दिलाएंगे। बांस के बैग, लाइट लैंप, कुर्सी, टेबल भी इन कलाकारों से बनवाएंगे।

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