बतखों ने रोके पलटन के कदम
बासुकीनाथ : लगातार एक दशक तक पलायन का दंश झेल चुके पलटन मुर्मू और उसकी पत्नी मनोदी हा
बासुकीनाथ : लगातार एक दशक तक पलायन का दंश झेल चुके पलटन मुर्मू और उसकी पत्नी मनोदी हांसदा के जीवन को बतखों ने नई दिशा दे दी है। जरमुंडी प्रखंड के खरबिल्ला पंचायत के आदिवासी बाहुल्य भि¨रडा टोला निवासी पलटन मुर्मू और उसकी पत्नी जीवन बसर के लिए प्रत्येक साल दूसरे प्रदेशों में पलायन कर जाते थे। अबकी बार उसकी राह बदल गई है। वह अपने घर में ही बतख पालन की शुरुआत कर चुका है। पलटन मुर्मू ने बताया कि वह बतख के 600 छोटे-छोटे चूजे लाया था जिसकी बदौलत अब उसे रोज आमदनी हो रही है। चूजे अब बड़े हो चुके हैं। इनके अंडों से प्रतिदिन 500 से 1000 रुपये की आमदनी हो रही है।
पलटन ने कुछ इस तरह से की शुरुआत
पलटन ने बताया कि पलायन करते-करते तंग आ चुका था। इसलिए पति-पत्नी ने मिलकर कुछ ऐसा काम करने का फैसला लिया कि बिना पलायन किए जीवन बसर हो सके। काफी सोचने के बाद बतख पालन करने का निर्णय लिया। इसके बाद तकरीबन 40 रुपये की दर से एक साथ 600 चूजे खरीद कर घर ले आया। पांच-छह माह के परिश्रम के बाद बतख बड़े हो गए और अभी 200 से लेकर 350 रुपये तक प्रति बतख बेच रहा है। कहा कि दो माह बाद ही बतखों के अंडों से प्रतिदिन 500 से 1000 रुपये की आमदनी हो रही है।
अन्य किसानों के लिए बने प्रेरणास्त्रोत :
पलटन से बताया कि उससे प्रेरित होकर घोरटोपी गांव के किसान भी बतख पालन में रुचि ले रहे हैं। घोरटोपी निवासी एलएन दर्वे भी 50 बतख पलटन से ही खरीदकर ले गया है।
सरकारी मदद मिल जाए तो गांव की बदल सकती है सूरत
पलटन मुर्मू ने कहा कि जब उसने अपने घर के अहाते में बतख पालन का व्यवसाय शुरू किया तो अधिकांश ग्रामीण उसका मजाक उड़ा रहे थे। पलटन ने कहा कि उसने इसकी कतई परवाह नहीं की। सीमित संसाधन और कम पूंजी में उसने बतखों को रखने के लिए काफी मशक्कत से बाड़ी का निर्माण किया। एक गड्ढानुमा डोभा बनाया। डोभा में अनवरत पानी रहे इसके लिए उसने गांव के बीच में चलने वाले चापाकल से बहने वाले गंदा पानी का रुख अपनी बाड़ी की ओर मोड़ दिया और तमाम प्रतिकूल परिस्थिति में भी संघर्ष कर बतखपालन से आमदनी का मार्ग प्रशस्त किया। पलटन मुर्मू ने कहा कि अगर सरकार के स्तर से बतख को रखने के लिए सरकार से एक शेड का निर्माण हो जाए तो उसे काफी सहूलियत होगी। पलटन ने कहा कि उसकी मंशा है कि आधुनिक तकनीक के तहत नीचे डोभा में मछलीपालन भी करे और उसके ऊपर एक जालीनुमा लेयर बनाकर बतख पालन भी। पलटन ने कहा कि बतखपालन के संघर्ष में उसकी पत्नी मनोदी के अलावा बलि हांसदा, छोटका हांसदा, कैलू हेंब्रम, लखीराय मरांडी, लाल हेंब्रम समेत कई ने भरपूर सहयोग दिया है।
अब मदद का मिलने लगा भरोसा
पलटन मुर्मू के मेहनत से मिली सफलता के बाद अब उसकी मदद के लिए कई स्तर पर भरोसा मिलने लगा है। जिला परिषद सदस्य जयप्रकाश मंडल, आत्मा के उप परियोजना निदेशक संजय मंडल ने हरसंभव मदद का भरोसा दिया है। जयप्रकाश मंडल ने कि कहा कि उनके स्तर से बतखों के लिए बेहतर चारा उपलब्ध कराने के लिए संबंधित विभागों से संपर्क किया जाएगा। आत्मा के उप परियोजना निदेशक संजय कुमार मंडल ने कहा कि गांव में बकरी पालन, बतख पालन, मुर्गीपालन को बढ़ावा देने के लिए आत्मा द्वारा एक कृषक पाठशाला की स्थापना की जाएगी।