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किसानों की चमकेगी किस्मत! बस लगाएं धान की ये किस्म, हाथ से न जानें दें बंपर कमाई का मौका

सूखारोधी धान की उन्नत किस्म से किसानों की किस्मत चमकने वाली है। धान की यह किस्म न सिर्फ सूखारोधी है बल्कि अधिक पानी में भी उत्पादन पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा। दुमका में इस साल लैम्पस के जरिए 150 क्विंटल धान का बीज उपलब्ध कराया जा चुका है। बता दें कि चावल देश की खाद्य सुरक्षा का आधार है। राज्य की खेती भी धान की खेती पर ही निर्भर है।

By Rohit Kumar MandalEdited By: Shashank ShekharUpdated: Wed, 15 Nov 2023 03:34 PM (IST)
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किसानों की चमकेगी किस्मत, बस लगाएं धान की ये किस्म
जागरण संवाददाता, दुमका। सूखारोधी धान की उन्नत किस्म सहभागी से दुमका के किसानों की किस्मत चमकेगी। धान की यह प्रभेद न सिर्फ सूखारोधी है, बल्कि अधिक पानी में भी इसकी उत्पादकता पर कोई अंतर नहीं पड़ता है। दुमका जिले में इस वर्ष लैम्पस के जरिए किसानों के बीच 150 क्विंटल सहभागी धान का बीज उपलब्ध कराया जा चुका है।

आने वाले दिनों में कृषि विभाग समेत विभिन्न माध्यमों से भी सहभागी धान का बीज किसानों तक पहुंचा कर परंपरागत धान की खेती के बजाए उन्नत किस्म की धान की खेती करने के लिए प्रेरित किया जाएगा।

देश की खाद्य सुरक्षा का आधार माना जाता है चावल

दरअसल, चावल को देश की खाद्य सुरक्षा का आधार माना जाता है। झारखंड की कृषि व अधिकांश कृषक धान की खेती पर ही निर्भर हैं। मौसम के बदलते मिजाज व वर्षा आधारित धान की खेती किसानों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है।

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि धान की खेती क्षेत्र को बढ़ाने की गुंजाइश लगभग नगण्य है। ऐसे में चावल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाना ही विकल्प है।

'धान की खेती अनेक चुनौतियों से जूझ रही'

दुमका के कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. श्रीकांत कहते हैं कि वर्तमान में धान की खेती अनेक चुनौतियों से जूझ रही है। सबसे प्रमुख समस्या सिंचाई के लिए पानी की कमी है। एक किलो चावल के उत्पादन में लगभग ढ़ाई से तीन हजार लीटर पानी की खपत होती है।

गांवों में श्रमिकों की कमी और जोत-आकार का लगातार सिकुड़ते जाना भी कठिन चुनौतियां हैं। इसके साथ ही धान की खेती में अब उतना मुनाफा भी नहीं रहा जो पहले होता था। इसलिए, राष्ट्रीय ही नहीं अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर धान की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने के लिए संगठित प्रयास किया जा रहा है।

'धान की जीन कुंडली बनाकर तैयार किए जा रहे उन्नत प्रभेद'

डॉ. श्रीकांत बताते हैं कि धान की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्नत किस्म के बीजों में कुछ ऐसी खूबियां डाली जा रही हैं कि कीड़ा, रोग तथा प्राकृतिक आपदाओं से फसल को बचाया जा सके।

इतना ही नहीं, इसका पोषण मान भी पहले से बेहतर हो। कृषि वैज्ञानिक जीन इंजीनियरिंग के मौजूदा युग में धान की जीन-कुंडली बनाकर यानि इसके जीनोम को जानकर उन्नत किस्म के प्रभेद तैयार करने में जुटे हैं।

अंतरर्राष्ट्रीय प्रयासों के तहत जापान की अगुवाई में अमेरिका, चीन, फ्रांस, ताईवान, भारत, कोरिया, ब्राजील और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने सन 1998 में धान के जीनोम को जानने के लिए प्रयास शुरू कर चुके हैं। इसके लिए जापान की लोकप्रिय किस्म निप्पनबेयर को चुना गया है।

धान के जीनोम का 2005 में उद्घाटन किया गया

सात साल के कठिन प्रयास के बाद वैज्ञानिकों ने धान के जीनोम का सन 2005 में अनावरण कर दिया। भारत में यह कार्य जैव प्रौद्योगिकी विभाग और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नेतृत्व में दिल्ली विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय पौध-जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है।

इनके द्वारा धान के गुणसूत्र संख्या 11 के एक भाग पर स्थित जीनों का अनुक्रमण करने में कामयाबी हासिल की गई। इसी शोध से पता चला है कि धान के जीनोम में 32000 से 56000 सक्रिय जीन मौजूद हैँ। इसमें हेरफेर करके या नया जीन शामिल कर धान की खूबियों और गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है।

सूखे का मुकाबला करने के लिए सहभागी धान नाम से एक किस्म विकसित की गई है, जिसे 2009 से ही झारखंड और ओडिशा के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में किसानों तक पहुंचाने का प्रयास शुरू है। यह किस्म सूखा सहते हुए 68 से 110 दिनों में तैयार होकर 3.8 से 4.5 टन प्रति हेक्टेयर की उपज देता है। इसे कई प्रमुख रोगों और कीड़ों के लिए प्रतिरोधी पाया गया है। इसके दाने लंब मोटे और पकने में बेहतरीन होते हैं।- डॉ. श्रीकांत सिंह, वरीय कृषि वैज्ञानिक, केवीके दुमका

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