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लालू ने फौजदारी दरबार में लगाई अर्जी: भोले के भक्‍त यहां से नहीं जाते हैं खाली हाथ, जानिए मंदिर की मान्‍यता

झारखंड के देवघर में दर्शन के लिए हर साल करोड़ों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। सोमवार को आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी यहां पहुंचे। कहा जाता है कि देवघर में दर्शन के बाद बाबा बासुकीनाथ के दरबार में भी हाजिरी के लगानी होती है तभी बाबा बैद्यनाथ धाम की पूजा पूरी होती है। जानिए इस चर्चित मंदिर की क्या है मान्यता?

By Jagran NewsEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Mon, 11 Sep 2023 02:24 PM (IST)
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बासुकीनाथ मंदिर के बाद ही बाबा बैद्यनाथ धाम की पूजा होती है पूरी। (Pic Credit- Baba Basukinath Dham )
जागरण डिजिटल डेस्क, दुमका: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव सोमवार को बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और पत्‍नी राबड़ी देवी के साथ झारखंड दौर पर पहुंचे, जहां उन्होंने पहले देवघर में बाबा बैद्यनाथ और बासुकीनाथ में पूजा अर्चना की।

इसके साथ ही उन्होंने भोले के फौजदारी दरबार में अर्जी लगाई। इसके बाद से फौजदारी दरबार चर्चा में आ गया। आइए जानते हैं कि क्या इस मंदिर से जुड़ी मान्यता, जहां लालू और राबड़ी ने मांगी है मन्नत...

बासुकीनाथ के दरबार में भक्त नहीं भूलते हाजिरी लगाना

झारखंड के देवघर में बाबा बैजनाथ के दर्शन के लिए हर साल करोड़ों की संख्या में भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। देवघर में बाबा के दर्शन के बाद भक्त बाबा बासुकीनाथ के दरबार में हाजिरी लगाना नहीं भूलते हैं।

मान्‍यता है कि बासुकीनाथ मंदिर में हाजिरी लगाए बिना बाबा बैद्यनाथ धाम की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है। सोमवार को लाल यादव ने पत्नी राबड़ी देवी के साथ पहले देवघर में दर्शन में किए और फिर बाबा बासुकीनाथ के दरबार में भी हाजिरी लगाई।

फौजदारी मामलों की लगती है अर्जी

बासुकीनाथ मंदिर के पास ही रहने वाले किशोर सिंह बताते हैं, देवघर में बाबा बैद्यनाथ के दरबार में दीवानी मुकदमे की सुनवाई होती है, जबकि बासुकीनाथ मंदिर में फौजदारी मामलों की अर्जी लगती है।

ऐसी भी मान्यता है कि बासुकीनाथ में फौरी सुनवाई होती है और भक्त नेक नीयत से जो मनोकामनाएं लेकर आते हैं, वो पूरी होती हैं। इसलिए इसे 'भोले का फौजदारी दरबार' भी कहा जाता है।

किशोर सिंह बताते हैं, ''मंदिर को लेकर एक मान्यता यह भी है कि बासुकीनाथ के दर्शन के बिना बैद्यनाथ धाम की पूजा अधूरी मानी जाती है।''  

पहले कहा जाता था दारूक वन

बताया जाता है कि बासुकीनाथ प्राचीन काल में घने जंगलों से घिरा हुआ था, तब उसे दारुक वन कहा जाता था। पौराणिक कथाओं में भी इसका जिक्र मिलता है।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दारुक वन में एक दारुक नाम के राक्षस रहता था। बासु नाम का एक व्यक्ति कंद मूल की तलाश में वन में भटक रहा था।

बासु ने एक जगह रुक कर कंद निकालने के लिए भूमि को खोदना शुरू किया तो उसकी कुदाल भूमि में दबे शिवलिंग से टकरा गई और वहां से दूध निकलने लगा। यह दृश्य देखकर वह घबरा गया और वहां से भागने लगा।

तभी आकाशवाणी हुई, ''ठहरो,..यह मेरा स्थान है। तुम यहां पूजा करो।" इस आकाशवाणी के बाद बासु वहां पूजा करने लगा। तब से लेकर आज तक वहां शिव की पूजा हो रही है और मौजूदा भक्‍त में यहां शिव और पार्वती का एक भव्‍य मंदिर है। भक्‍त बासु के नाम पर ही इस देवस्थान का नाम बासुकीनाथ पड़ा है।

मंदिर प्रबंधन के अनुसार, यहां हर साल करोड़ों की संख्या में भक्त देशभर के कोने-कोने से हाजिरी लगाते हैं। वहीं, सावन माह में दुनिया भर से श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए यहां पहुंचते है। मन्नत मांगते हैं और पूरी हो जाने पर बाबा को भेंट चढ़ाने आते हैं।

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