नेताजी ने अंग्रेजों के खिलाफ झारखंड के इस घर में बनाई थी रणनीति, स्वतंत्रता सेनानी की बहू का हैरान करने वाला खुलासा
Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज जयंती है। इस मौके पर उनकी जिंदगी से जुड़े कई किस्सों में से एक वह है जब दुमका के स्वतंत्रता सेनानी स्व.डा.अशोक बोस के घर उनका आना हुआ था। नेताजी 1940 में यहां आए थे। इसी घर में उस वक्त अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनी थी। आजादी से जुड़ी यादें आज भी इस घर में ताजा हैं।
जागरण संवाददाता, दुमका। दुमका के बाबूपाड़ा में स्वतंत्रता सेनानी स्व.डा.अशोक कुमार बोस का जीर्ण-शीर्ण घर आज भी विराजमान है। देश की आजादी के दौर में वर्ष 1940 में इसी मकान में नेताजी सुभाषचंद्र बोस का आगमन हुआ था। तब उनके घर पर आंदोलन की रणनीति भी बनी थी। इस घर से उनकी यादें आज भी जुड़ी है, लेकिन अब यहां रहने वाले स्व.डा.अशोक के स्वजन दूसरे घर में शिफ्ट हो गए हैं।
भागलपुर सेंट्रल जेल में कैद थे अशोक बोस
स्व.अशोक उस दौर में पेशे से चिकित्सक थे, लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। ब्रिटिश हुकूमत ने गिरफ्तार कर इन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल में रखा था।
डा.अशोक के पुत्र स्व. अजित कुमार बोस की पत्नी शुक्ला बोस देश की आजादी में अपने ससुर के योगदानों को याद करते हुए उन चिठ्ठियों को दिखातीं जो वह जेल में रहकर लिखा करते थे। यह तमाम चिठ्ठियां बांग्ला भाषा में लिखी गई हैं जिसमें कोड वर्ड के जरिए कई बातों को साझा किया गया है।
इंदिरा गांधी ने ताम्र पत्र देकर की थीं सम्मानित
शुक्ला बताती हैं कि जब वह ब्याह कर आईं तब भारत आजाद हो चुका था। देश की प्रधानमंत्री स्व.इंदिरा गांधी ने उनके ससुर को 15 अगस्त, 1972 में ताम्र पत्र देकर सम्मानित की थीं।
कहतीं है कि उनके ससुर आजादी के आंदोलन के दौरान ही नेताजी के संपर्क में आए थे। तब देश को आजाद करने का धुन सब पर सवार था। नेताजी उनके ससुर से मुलाकात की चर्चा उनके पति स्व.अजित कुमार बोस व घर के दूसरे सदस्य अक्सर किया करते थे। कहते हैं कि उस वक्त किसी से भी मुलाकात करना सहज नहीं था। सब गुपचुप तरीके से मिलते थे।
शुक्ला बोस और अमरेश बोस की फोटो।
अंग्रेजी अफसर आंदोलनकारियों को सताते थे
पौत्री मधुमिता बोस कहती हैं कि एक स्वतंत्रता सेनानी के घर में जन्म लेना ही सौभाग्य की बात है। दादा जी उस दौर में चिकित्सक ही नहीं एक बेहतरीन कलाकार और संगीतज्ञ भी थे। दुमका में बनाया गया पोपुलर क्लब की बुनियाद में उनकी सबसे अहम भूमिका थी। उस क्लब का नाम नेताजी सुभाषचंद्र बोस क्लब रखा गया है।
मधुमिता कहती है कि पिताजी बताते थे कि अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा आजादी की लड़ाई लड़ने वालों को काफी सताया जाता था। कहते थे कि उनका बचपन काफी संघर्ष करते हुए बीता क्योंकि दादा जी देश की आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत कर रहे थे। कहा कि जब देश आजाद हुआ तब इसी घर में चरखा और कतली से तैयार तिरंगा दुमका में फहराया गया था।
पौत्र अमरेश बोस कहते हैं कि देश की आजादी के बाद हम लोग काफी गौरवान्वित जरूर महसूस करते हैं लेकिन आज भी युवाओं में भटकाव को देखकर मन व्यथित होता है। देश के युवा पाश्चात्य संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। कहा कि बस यही मंशा है कि हमारे देश के युवा बदलाव के वाहक बनें और भारत के अखंड, विकसित व मजबूत राष्ट्र बनने का सपना सच हो।
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