अपनी बुद्धि को बढ़ाने के लिए ले रहे मैना की जान
काठीकुंड : काठीकुंड और गोपीकांदर में पाई जाने वाली देसी व पहाड़ी मैना अब विलुप्ति के
काठीकुंड : काठीकुंड और गोपीकांदर में पाई जाने वाली देसी व पहाड़ी मैना अब विलुप्ति के कगार पर हैं। जानकार बताते हैं कि हू-ब-हू इंसान की तरह बोल पाने की उसकी दुर्लभ क्षमता ही उनकी जान का दुश्मन साबित हुई है। मैना को ¨पजरे में कैद कर मन बहलाने वालों ने उसे पाने की चाहत में आगे-पीछे कुछ नहीं सोचा और लगातार उसका शिकार करते चले गए। गोपीकांदर व काठीकुंड के महुवागढ़ी, मुरगुजा, कोरचो, कुलकांट, बालीडीह, पोखरिया, काता पहाड़, अंबाजोड़ा, तालडीह, पूजाडीह, बंदोबेड़ा, चिचरो, बरमसिया, बेलबुनी, शिलंगी, मुहूलडाबर, भिलाईघाटी, जडोरपानी, समेत कई जंगलों में पहले इस मैना की आवाज सुनाई पड़ती थी। अब तो इसका दिखना भी दूभर हो गया है।
दरअसल इसकी विलक्षणता पर एक बार तो सहसा यकीन नहीं होता कि वह सबकी आवाज की नकल हू-ब-हू करती है। यह तोते की तरह अपनी आवाज में नहीं बल्कि मनुष्यों की आवाज में बोलती है। इंसान की आवाज को उसी आरोह-अवरोह व ध्वनि बल से बोलने वाली इस मैना का लोग जमकर शिकार कर रहे हैं। ग्रामीण व शिकारी के मन में बैठ गया कि मैना का शिकार कर खाने से बुद्धि का विकास होगा। इसके कारण लगातार मैना का शिकार किया जा रहा है।
वन विभाग इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा। विशेषज्ञ बताते हैं कि मैना का प्रजनन काल फरवरी से मई के बीच होता है। यह बैंगनी-गुलाबी रंग के अंडे देती है। मैना के प्रजनन के लिए वन विभाग ने इसके लिए कोई आवश्यक कदम नहीं उठाया है। मैना की विलुप्ति का कारण अत्यधिक शिकार किया जाना है। लोगों ने अपनी बुद्धि के विकास के लिए मैना का शिकार कर रहे हैं।
पुष्प परिमल सिन्हा, वन क्षेत्र पदाधिकारी